टाटा ग्रुप के बड़े अधिकारी से हुई ‘चूक’, हितों के टकराव का केस, समीक्षा के लिए हो रहीं मीटिंग पर मीटिंग

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टाटा ग्रुप को भारत में सिर्फ एक कारोबारी घराना नहीं, बल्कि भरोसे और नैतिकता की मिसाल के रूप में देखा जाता है. दशकों से इस समूह ने अपने फैसलों और कार्यशैली से यह साबित किया है कि कॉरपोरेट गवर्नेंस और पारदर्शिता उसके मूल सिद्धांत हैं. ऐसे में जब टाटा संस के एक वरिष्ठ अधिकारी से जुड़ा ‘हितों के टकराव’ जैसा मामला सामने आता है, तो यह स्वाभाविक रूप से लोगों का ध्यान खींचता है. फिलहाल टाटा ट्रस्ट्स और टाटा संस की महत्वपूर्ण बैठक में उस रिपोर्ट की समीक्षा होनी है, जिसमें कंपनी सेक्रेटरी सुप्रकाश मुखोपाध्याय द्वारा एक निजी निवेश फर्म से संबंध की जानकारी समय पर न देने की बात स्वीकार की गई है. मामला भले ही आंतरिक हो, लेकिन इससे टाटा ग्रुप की पारदर्शिता और जवाबदेही की नीति पर सवाल जरूर उठे हैं. अब सबकी निगाहें इस पर हैं कि टाटा समूह इस स्थिति से किस तरह निपटता है और क्या यह केवल एक ‘चूक’ मानी जाएगी या फिर बड़ी कार्रवाई देखने को मिलेगी.

बता दें कि टाटा ट्रस्ट्स और टाटा संस की बोर्ड मीटिंग बुधवार और गुरुवार को होने जा रही हैं. इस मीटिंग में उस रिपोर्ट की समीक्षा की जाएगी, जिसमें टाटा संस के कंपनी सेक्रेटरी सुप्रकाश मुखोपाध्याय द्वारा जानकारी देने में हुई चूक को स्वीकार किया गया है. यह चूक उनकी फैमिली के स्वामित्व वाली वेल्थ मैनेजमेंट कंपनी डिविनियन एडवाइजरी सर्विसेज (Divinion Advisory Services) से उनके जुड़ाव को लेकर है.

चेयरमैन चंद्रशेखरन ने तब बनवाई रिपोर्ट

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, यह रिपोर्ट टाटा संस के चेयरमैन एन चंद्रशेखरन ने तब बनवाई, जब यह चिंता सामने आई कि क्या सुप्रकाश मुखोपाध्याय का डिविनियन से जुड़ाव उनके टाटा ग्रुप की जिम्मेदारियों के साथ टकराव पैदा कर सकता है. टाटा ट्रस्ट्स के कार्यकारी ट्रस्टी मेहली मिस्त्री ने कहा, “मुझे चंद्रा (टाटा संस के चेयरमैन) पर पूरा भरोसा है कि वे इस मामले को उचित ढंग से संभालेंगे.”

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टाटा संस के तीन अधिकारियों द्वारा तैयार की गई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि मुखोपाध्याय का काम जानबूझकर टाटा के आचार संहिता का उल्लंघन नहीं लगता, लेकिन उन्होंने डिविनियन के लिए टाटा के पूर्व कर्मचारियों और बाहरी निवेशकों से निवेश दिलवाने में अपनी भूमिका का खुलासा नहीं किया. टाटा की आचार संहिता के अनुसार, जब कोई कर्मचारी खुद या अपने परिवार के लिए अनुचित लाभ पाता है, तो इसे हितों का टकराव माना जाता है. यदि यह टकराव छिपाया जाए और बाद में सामने आए, तो उस पर कार्रवाई की जा सकती है. सूचीबद्ध कंपनियों के लिए सेबी (SEBI) भी ऐसे मामलों में जुर्माना लगा सकता है.

टाटा अधिकारियों ने किया निवेश

टाटा के कुछ अधिकारियों ने बताया कि उन्होंने डिविनियन में निवेश तब किया, जब मुखोपाध्याय की बेटी ने उन्हें उनके पिता के माध्यम से संपर्क किया, लेकिन उन्हें नहीं पता था कि मुखोपाध्याय का इस कंपनी से सीधा संबंध है. यह रिपोर्ट सभी टाटा संस बोर्ड सदस्यों को दी गई है.

यह मामला भले ही आंतरिक हो, लेकिन टाटा ट्रस्ट्स बोर्ड भी इसमें शामिल होगा, क्योंकि वह टाटा संस का सबसे बड़ा शेयरधारक है. अभी यह स्पष्ट नहीं है कि सभी बोर्ड के सदस्य इस बात से सहमत हैं या नहीं कि यह जानबूझकर किया गया उल्लंघन नहीं था.

मिस्त्री ने यह भी कहा कि न तो मुखोपाध्याय और न ही उनके परिवार ने उनसे Divinion में निवेश के लिए संपर्क किया. उन्होंने कहा, “मेरे, मेरे परिवार या हमारी कंपनियों के Divinion में कोई निवेश नहीं है.” बाकी ट्रस्टी और टाटा संस बोर्ड सदस्यों ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की.

90 करोड़ से ज्यादा की संपत्तियों का मैनेजमेंट

Divinion कंपनी दिसंबर 2020 में शुरू हुई और अब इसके पास 90 करोड़ रुपये से ज्यादा की संपत्तियों का प्रबंधन है. यह मुखोपाध्याय की पत्नी और दो बेटियों के नाम पर है. कंपनी के प्रबंधन और बोर्ड में टाटा ग्रुप के कई पूर्व कर्मचारी और प्रोफेशनल शामिल हैं.

चार्टर्ड अकाउंटेंट टी पी ओस्तवाल Divinion के निदेशक हैं. उनके टाटा कंपनियों से लंबे समय से प्रोफेशनल संबंध हैं. उनकी फर्म ने FY21 में Divinion का ऑडिट किया और FY23 व FY24 में टाटा संस का भी ऑडिट किया. अभी Divinion का ऑडिट KBJ & Associates कर रही है, जिसने FY24 में टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेस (TCS) की कुछ सहायक कंपनियों का ऑडिट भी किया है.

मुखोपाध्याय 1988 में टाटा में शामिल हुए और नवंबर 2024 में रिटायर हुए. फिर भी वे एक्सटेंशन पर अपनी भूमिका निभा रहे हैं और FY24 में उन्होंने लगभग 10.4 करोड़ रुपये कमाए. डिविनियन फाउंडेशन ट्रस्ट (Divinion Foundation Trust) को उनके परिवार द्वारा संचालित किया जाता है. FY24 और FY25 में डिविनियन को टाटा इन्वेस्टमेंट कॉर्पोरेशन से CSR (कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी) के तहत 10 लाख और 20 लाख रुपये मिले. मुखोपाध्याय इस कंपनी के निदेशक भी हैं.

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