नई दिल्ली. स्विट्जरलैंड ने भारत के साथ 1994 में हुए डबल टैक्सेशन अवॉइडेंस एग्रीमेंट (DTAA) में मौजूद मोस्ट-फेवर्ड-नेशन (MFN) क्लॉज को 1 जनवरी 2025 से सस्पेंड करने का फैसला किया है. यह कदम भारत के सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के बाद उठाया गया है, जिसमें कहा गया था कि DTAA तब तक लागू नहीं होगा जब तक इसे इनकम टैक्स एक्ट के तहत अधिसूचित नहीं किया जाता. इस फैसले का सीधा असर स्विस कंपनियों जैसे नेस्ले पर पड़ेगा, जिन्हें अब डिविडेंड पर अधिक टैक्स चुकाना होगा.
स्विस सरकार ने अपने बयान में कहा है कि MFN क्लॉज को सस्पेंड करने का मुख्य कारण “रेसिप्रोसिटी” यानी पारस्परिकता की कमी है. अब 1 जनवरी 2025 के बाद से, डिविडेंड पर सोर्स स्टेट में 10% तक का टैक्स लगाया जा सकता है. स्विस सरकार का यह कदम भारतीय बाजार में स्विस निवेश को प्रभावित कर सकता है, जिसमें $100 अरब का निवेश यूरोपियन फ्री ट्रेड एसोसिएशन (EFTA) के तहत प्रस्तावित है.
क्या है मामला?स्विट्जरलैंड का यह कदम भारत की सुप्रीम कोर्ट के 2023 के फैसले के जवाब में है. इस फैसले में कोर्ट ने कहा था कि MFN क्लॉज स्वत: लागू नहीं होता और इसके लिए भारत द्वारा अलग से अधिसूचना की आवश्यकता होती है. कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि DTAA के तहत कोई देश तब तक लाभ नहीं ले सकता जब तक कि उसकी शर्तें पूरी न हों.
स्विस अधिकारियों का मानना है कि भारत ने स्विट्जरलैंड को उन देशों के समान लाभ नहीं दिया है, जिनके साथ भारत के अधिक अनुकूल टैक्स समझौते हैं. इस सस्पेंशन का असर 2025 से लागू होने वाले टैक्स नियमों पर पड़ेगा और स्विस कंपनियों को डिविडेंड पर अधिक टैक्स देना पड़ सकता है.
भारतीय निवेश और टैक्स पर असरटैक्स विशेषज्ञ अमित माहेश्वरी ने कहा कि यह कदम भारतीय बाजार में स्विस निवेश को प्रभावित कर सकता है, क्योंकि अब डिविडेंड पर उच्च टैक्स लागू होगा. उन्होंने यह भी कहा कि इस फैसले के बाद अन्य देश भी स्विट्जरलैंड की तरह भारत के साथ अपने टैक्स समझौतों की समीक्षा कर सकते हैं.
टैक्स विशेषज्ञ संदीप झुनझुनवाला ने कहा कि स्विट्जरलैंड का यह फैसला भारत के साथ द्विपक्षीय कर संबंधों में बदलाव का संकेत है. यह अंतरराष्ट्रीय कर व्यवस्था में बढ़ती जटिलताओं और कर संधियों के सख्त होते प्रावधानों की ओर इशारा करता है.
नेस्ले मामला और इसके प्रभावनेस्ले और अन्य बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी थी कि नीदरलैंड, स्विट्जरलैंड और फ्रांस OECD सदस्य हैं, इसलिए उन्हें स्लोवेनिया, लिथुआनिया और कोलंबिया के साथ हुए DTAA के तहत 5% की कम टैक्स दर का लाभ मिलना चाहिए. लेकिन कोर्ट ने यह दलील खारिज कर दी. अब अगर नेस्ले को अधिक टैक्स चुकाना पड़ा तो हो सकता है कि वह उस टैक्स का भार अपने प्रोडक्ट्स के जरिए ग्राहकों पर डाले.
निवेशकों और कंपनियों के लिए संदेशयह घटनाक्रम उन भारतीय और विदेशी कंपनियों के लिए महत्वपूर्ण है जो अंतरराष्ट्रीय टैक्स संधियों पर निर्भर हैं. यह दिखाता है कि अब कंपनियों को अपने निवेश और टैक्सेशन स्ट्रेटेजी में बदलाव करने की आवश्यकता है.
Tags: Business newsFIRST PUBLISHED : December 13, 2024, 19:36 IST
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