गेमिंग सेक्टर की तरक्की के लिए केंद्र और राज्य कानूनों में तालमेल जरूरी: बृजेश सिंह

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Storyboard18 के डिजिटल एंटरटेनमेंट समिट 2025 में महाराष्ट्र सरकार के प्रिन्सिपल सेक्रेटरी बृजेश सिंह (डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ इंफॉर्मेशन एंड पीआर) ने बताया कि कैसे महाराष्ट्र साइबर क्राइम से लड़ने और इल-लीगल बेटिंग और गैम्बलिंग प्लेटफॉर्म्स पर कार्रवाई करने में सबसे आगे रहा है.

बढ़ते साइबर खतरों, क्रॉस-बॉर्डर गैम्बलिंग ऐप्स और ऑनलाइन गेमिंग से जुड़ी रेगुलेशन की जटिलता ने भारत के राज्यों पर एक साथ काम करने का दबाव बढ़ा दिया है. सिंह ने यह बताया कि हार्मोनाइजेशन, इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश और इंडस्ट्री के साथ पार्टनरशिप करना ज़रूरी है ताकि डिजिटल क्राइम से पहले ही निपटा जा सके.

उन्होंने कहा, “सभी राज्यों में एक यूनिफॉर्म पॉलिसी होनी चाहिए.” उन्होंने समझाया कि कैसे 1850 के दशक का इंडियन गैम्बलिंग एक्ट आज एक पैचवर्क की तरह बन गया है जिसमें हर राज्य ने अपनी-अपनी गाइडलाइंस बना ली हैं.

उन्होंने कहा, “तो नागालैंड कुछ अलग बना रहा है, हरियाणा कुछ और, महाराष्ट्र कुछ और. इसलिए हमें इसे हार्मोनाइज़ करना ही पड़ेगा.”

सिंह ने इस बात पर ज़ोर दिया कि जब कोई क्राइम यूरोप, स्कैंडेनेविया या अन्य देशों के सर्वर पर बंटा हो, तो उसका ज्यूरिस्डिक्शन तय करना और इन्वेस्टिगेशन करना मुश्किल और महंगा हो जाता है.

एक नेशनल फ्रेमवर्क होना जरूरी

उन्होंने कहा कि “सारी चीज़ों को सैनिटी में लाने के लिए एक नेशनल फ्रेमवर्क होना जरूरी है.” उन्होंने सुझाव दिया कि ऐसा कोई मॉडल तैयार किया जाए जिसे सारे राज्य फॉलो करें.

उन्होंने यह भी कहा कि इंडियन गैम्बलिंग एक्ट जो पहले स्टेट लॉज़ के लिए एक टेम्पलेट की तरह काम करता था, वो अब पुराना हो चुका है क्योंकि ऑनलाइन गेमिंग पूरी तरह से अलग है और इसके लिए एक नया ऐक्ट बनाना ज़रूरी है. “इस पैचवर्क गवर्नेंस की बजाय पूरे देश में एक यूनिफाइड लॉ होना चाहिए.”

सिंह ने बताया कि महाराष्ट्र ने साइबर इन्फ्रास्ट्रक्चर में सबसे पहले कदम बढ़ाया था. “महाराष्ट्र पहला राज्य था जिसने एक ही बार में 47 साइबर लैब्स शुरू कीं. मैं सौभाग्यशाली था कि 2015 में मैं पहला साइबर चीफ़ बना.”

तत्कालीन मुख्यमंत्री से ₹1,000 करोड़ के एलोकेशन के साथ, “हम दुनिया में जाकर बेस्ट टेक्नोलॉजी देख सके और महाराष्ट्र में बेस्ट लैब्स बना सके.” इससे लाखों लोगों को ट्रेनिंग मिली और जनता में अवेयरनेस बढ़ी.

बैंक्स और रेगुलेटर्स के साथ फीडबैक लूप्स भी बनाए गए: “अगर हमें यह दिखा कि केवाईसी की कमज़ोरी से क्राइम हो रहा है, तो हम रेगुलेटर्स को फीडबैक दे सकते थे और सही पॉलिसी बना सकते थे.”

सेंट्रल कोऑर्डिनेशन टूल्स की तारीफ

सिंह ने सेंट्रल कोऑर्डिनेशन टूल्स जैसे I4C और 1930 की तारीफ़ की. “1930 एक ऐसा नंबर है जिसे हर किसी को याद रखना चाहिए क्योंकि जैसे ही कोई साइबर क्राइम का शिकार होता है, वो इस नंबर पर कॉल कर सकता है जिससे पैसों को रोका जा सकता है.”

ज़्यादातर साइबर क्राइम में पैसे तुरंत अलग-अलग अकाउंट्स में भेज दिए जाते हैं. “1930 के पास यह अथॉरिटी है कि वो पैसों की फ्लाइट को रोक सके. क्योंकि क्राइम में हम अक्सर कहते हैं: ‘फॉलो द मनी’.”

उन्होंने cybercrime.gov.in का भी ज़िक्र किया जहाँ विक्टिम अनॉनिमस कम्प्लेंट्स दर्ज कर सकते हैं. “पुलिस फोर्स की क्षमता, स्किल्स और इन्वेस्टिगेशन की ताक़त बढ़ाने के लिए बहुत कुछ किया गया है.”

उन्होंने महाराष्ट्र साइबर डिजिटल क्राइम यूनिट (जो बाद में इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी क्राइम यूनिट बना) का उदाहरण दिया कि कैसे एक यूनिक पार्टनरशिप के ज़रिए इंडस्ट्री ने इन्फ्रास्ट्रक्चर, मैनपावर और एक्सपर्टीज़ दी और सरकार ने लॉ एन्फोर्समेंट की ताकत दी.

इस कोलैबोरेशन से हर महीने करोड़ों पाइरेसी हिट्स को ब्लॉक किया गया. “सिर्फ 14% पाइरेसी ट्रैफिक इंडिया में था और 16% ओवरसीज़.” उन्होंने कहा कि भारत की आईपी एन्फोर्समेंट की आलोचना अब सही नहीं है.

उन्होंने पब्लिक-प्राइवेट मॉडल्स की वकालत की ताकि थ्रेट इंटेलिजेंस शेयरिंग हो सके—चाहे वो क्रिप्टो फ्लोज़, मालवेयर, इल्लीगल ट्रांज़ैक्शन्स या कुछ और हो.

उन्होंने कहा कि “एक ग्लोबल साइबर क्राइम कन्वेंशन की ज़रूरत महसूस की जा रही है,” और बताया कि भारत ने बुडापेस्ट कन्वेंशन पर साइन नहीं किया क्योंकि उससे सॉवरेनिटी पर सवाल उठते थे.

उन्होंने कहा, “आप दुनिया के सबसे बड़े डेमोक्रेसी को ये नहीं कह सकते कि वो खुद को कैसे चलाए.”

लेकिन अब जब साइबर क्राइम की ग्लोबल कॉस्ट $10.5 ट्रिलियन तक पहुंच रही है, यूनाइटेड नेशंस ने एक नया ग्लोबल साइबर क्राइम कन्वेंशन बनाने का काम शुरू कर दिया है.

उन्होंने यह भी कहा कि जीडीपीआर जैसे लॉज़ से इन्वेस्टिगेशन में मुश्किल होती है क्योंकि उससे टाइम पर डेटा नहीं मिलता, जबकि “बैड गाइज तो रियल टाइम में कोऑपरेट करते हैं.”

सिंह ने बताया कि पोलिसिंग संविधान के अनुसार एक स्टेट सब्जेक्ट है, इसलिए इन्वेस्टिगेशन, एविडेंस कलेक्शन, अरेस्ट्स—सभी राज्य के अधीन आते हैं.

मगर उन्होंने यह भी कहा कि कैपेसिटी अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है: “छत्तीसगढ़, बिहार, ओडिशा, महाराष्ट्र, कर्नाटका—हर राज्य की ताकत अलग है.” स्किल्स, फॉरेंसिक कैपेसिटी और एविडेंशियरी प्रोसेसेज़ में इन्वेस्टमेंट की ज़रूरत है.

जब राज्य इल्लीगल ऐप्स को पकड़ते हैं जो पीएमएलए जैसे कानूनों का उल्लंघन करते हैं, तो उन्हें सेंट्रल मिनिस्ट्रीज़ से अपील करनी पड़ती है कि वह इन ऐप्स को नेशनल लेवल पर ब्लॉक करें. लेकिन वीपीएन और प्रॉक्सीज़ के ज़रिए इनका बायपास हो जाता है.

उन्होंने कहा, “डिजिटल स्पेस को कंट्रोल करना फिजिकल स्पेस से कहीं ज़्यादा मुश्किल है. इसलिए सिर्फ रेगुलेशन से काम नहीं चलेगा. प्लेटफॉर्म रिस्पॉन्सिबिलिटी और सेल्फ-रेगुलेशन बहुत ज़रूरी हैं.”

सिंह ने माना कि भारतीय कोर्ट्स अब ज्यादा प्रोएक्टिव हो गई हैं, जैसे कि ब्रॉड ब्लॉकिंग और जॉन डो ऑर्डर्स दिए गए हैं. “लेकिन लीगल प्रोसीजर अभी भी स्लो है. खासतौर पर जब डेटा ओवरसीज़ सर्वर्स से जुड़ा हो.”

उन्होंने कहा कि इन्क्रिप्शन और एंटी-फॉरेंसिक्स इन्वेस्टिगेशन को मुश्किल बना देते हैं, चाहे डेटा रिकवर हो भी जाए.

“इन्क्रिप्शन एक डबल-एज्ड स्वॉर्ड है. यह सीक्रेसी को तो प्रोटेक्ट करता है, लेकिन लॉ एन्फोर्समेंट को भी रोकता है.”

उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा, “हमें हार्मोनाइजेशन की ज़रूरत है, और वो भी तुरंत.”

क्लैरिटी नहीं तो बिजनेस करना मुश्किल

इंडस्ट्री और एन्फोर्समेंट दोनों की तरफ से बोलते हुए सिंह ने कहा कि अगर रेगुलेटरी क्लैरिटी नहीं होगी तो बिज़नेस करना मुश्किल हो जाएगा.

उन्होंने यह भी कहा कि भले ही गेमिंग संविधान के अनुसार एक स्टेट सब्जेक्ट है, लेकिन इंटरनेट पर लैंड-बेस्ड मॉडल लागू करना ठीक नहीं है. “इंटरनेट पर कोई बॉर्डर्स नहीं होते.”

उन्होंने अंत में कहा, “महाराष्ट्र भारत की गेमिंग कैपिटल बनना चाहता है,” और इसका ज़िक्र वेव्स 2025 और प्रधानमंत्री के सेक्टर को मिले सपोर्ट से किया. “लेकिन इसके लिए हमें पूरे देश में कानूनों को हार्मोनाइज़ करना ही होगा.”

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