नई दिल्ली. हाल ही में भारतीय शेयर बाजार में अच्छी-खासी गिरावट देखने को मिली. विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) द्वारा की गई भारी बिकवाली के चलते छोटे निवेशकों को पेन फील करना पड़ा. यह सवाल उठता है कि क्या उस गिरावट के पीछे केवल अमेरिका में बढ़ते बॉन्ड यील्ड और भारतीय कंपनियों के कमजोर नतीजे हैं? नहीं, केवल इतनी ही वजह नहीं है. विशेषज्ञों की मानें तो इसका एक बड़ा कारण खुद सेबी (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) का एक सर्कुलर है, जो अगस्त 2023 में जारी किया गया था.
SEBI ने उस सर्कुलर का उद्देश्य भारतीय कंपनियों द्वारा मिनिमम पब्लिक शेयरहोल्डिंग (MPS) के नियमों का उल्लंघन रोकना था. MPS का मतलब है कि किसी सूचीबद्ध कंपनी में कम से कम 25 फीसदी शेयर पब्लिक के पास होने चाहिए. इसके तहत, 50 फीसदी से अधिक भारतीय इक्विटी में निवेश रखने वाले या 25,000 करोड़ रुपये (लगभग 3 बिलियन डॉलर) से अधिक असेट अंडर मैनेजमेंट (AUM) वाले विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) को 9 सितंबर 2024 तक अपनी हिस्सेदारी का पूरा ब्यौरा देना था. जो FPIs इन मानकों का पालन नहीं कर सके, उन्हें अपनी हिस्सेदारी बेचकर बाजार से बाहर निकलने का निर्देश दिया गया.
तो इस सर्कुलर से बाजार कैसे गिरा?इस सर्कुलर के कारण विदेशी निवेशकों, खासकर ग्लोबल और उभरते बाजार फंड्स (GEMs) ने बड़े स्तर पर बिकवाली शुरू कर दी. अक्टूबर-नवंबर के दौरान FPIs ने कुल 1.16 लाख करोड़ रुपये (13.75 बिलियन डॉलर) के शेयर बेचे. इनमें से 25,000-42,000 करोड़ रुपये (लगभग 3-5 बिलियन डॉलर) की बिकवाली केवल SEBI के नए नियमों के चलते हुई.
इसके अलावा, MSCI इंडेक्स में बदलाव के दौरान HDFC बैंक जैसे बड़े शेयरों में भी भारी बिकवाली देखी गई. HDFC बैंक को जहां 16,032 करोड़ रुपये का निवेश मिलना था, वहीं उसी दिन 31,088 करोड़ रुपये की डिलीवरी देखनी पड़ी. यह दर्शाता है कि GEMs और ग्लोबल फंड्स ने इस वजह से अपनी हिस्सेदारी बेचना ही ठीक समझा.
FPIs के कारण बाजार में भारी उतार-चढ़ाव देखने को मिला. सितंबर 2023 से नवंबर 2024 के बीच FPIs का भारतीय इक्विटी बाजार में कुल निवेश 930.36 बिलियन डॉलर से घटकर 823.77 बिलियन डॉलर पर आ गया. इस दौरान निफ्टी ने 6.5 फीसदी की गिरावट दर्ज की, जो उभरते बाजारों में सबसे खराब प्रदर्शन था.
नए आईपीओ से भी पड़ा एक्सट्रा बोझदूसरी ओर, घरेलू संस्थागत निवेशकों (DIIs) ने 1.52 लाख करोड़ रुपये की खरीदारी की, लेकिन नए आईपीओ, और नए इश्यू के चलते आपूर्ति बढ़ गई. ऐसा होने से बाजार को स्थिरता नहीं मिलती और ऐसा ही हुआ. उदाहरण के लिए, अक्टूबर और नवंबर में हुंडई (Hyundai) और स्विगी (Swiggy) के आईपीओ के जरिए 39,197 करोड़ रुपये के शेयर जारी हुए, जिसने बाजार पर अतिरिक्त दबाव डाला.
भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत है, और वैश्विक निवेशकों के लिए लॉन्ग टर्म अवधि के लिए आकर्षक बनी हुई है. लेकिन शॉर्ट टर्म अनिश्चितताओं ने निवेशकों को सतर्क कर दिया है. कोटक महिंद्रा के सीईओ नितिन जैन का कहना है कि भारत की विकास दर भले ही आकर्षक हो, लेकिन सरकार की वित्तीय घाटा नियंत्रित करने की कोशिश और प्राइवेट निवेश में अपेक्षित तेजी न आना बाजार की चाल को प्रभावित कर सकता है.
Tags: Share market, Stock marketFIRST PUBLISHED : December 4, 2024, 15:13 IST
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