नई दिल्ली. देश में हर घर की तरह भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) भी सोने की अहमियत को अच्छे से समझता है. यही कारण है कि वह 1991 के आर्थिक संकट से सबक लेकर अब वह अपने स्वर्ण भंडार को कई गुणा बढ़ा चुका है. वर्तमान में भारत का स्वर्ण भंडार 870 टन है. केंद्रीय बैंक ने पहली बार अपने ‘गोल्ड वॉल्ट’को दिखाया है. ‘आरबीआई अनलॉक्ड: बियॉन्ड द रुपी’ शीर्षक से जारी पांच भाग वाली एक डॉक्यूमेंट्री में आरबीआई के गुप्त खजाने की झलक मिली है. यह डॉक्यूमेंट्री जियो हॉटस्टार के साथ मिलकर शुरू की गई है. खास बात यह है कि केंद्रीय बैंक सोने को ईंटों के रूप में विभिन्न जगहों पर रखता है. आरबीआई के स्वर्ण भंडार में रखी सोने की एक ईंट का भार 12.5 किलोग्राम है.आरबीआई ने अपने कामकाज और भूमिकाओं को लोगों के सामने लाने के लिए इस को जारी किया है. इसमें यह भी बताया है कि भारत दुनिया में करेंसी नोट के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है. जहां अमेरिका में यह लगभग 5,000 करोड़ इकाई, यूरोप में 2,900 करोड़ इकाई है वहीं भारत में यह 13,000 करोड़ इकाई है.
बहुत कम लोगों की सोने की तिजोरियों तक पहुंच
वृत्त चित्र में दी गयी जानकारी के अनुसार, ‘‘केंद्रीय बैंक 1991 के आर्थिक संकट के बाद सोने का भंडार कई गुणा बढ़ा चुका है और देश में स्वर्ण भंडार के संरक्षक के रूप में लगभग 870 टन सोना काफी सुरक्षित स्थानों पर रखा है. बहुत कम लोगों को ही सोने की तिजोरियों तक पहुंच है. केंद्रीय बैंक के अधिकारी कहते हैं, ‘‘सोना केवल धातु नहीं बल्कि देश की ताकत है. देश बनते रहेंगे, बिगड़ते रहेंगे. अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव होता रहेगा लेकिन सोना हमेशा अपना मूल्य बनाये रहेगा.’’ आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार, 20 जून को समाप्त सप्ताह में स्वर्ण भंडार का मूल्य 57.3 करोड़ डॉलर घटकर 85.74 अरब डॉलर रहा. वहीं विदेशी मुद्रा भंडार इस दौरान 1.01 अरब डॉलर घटकर 697.93 अरब डॉलर रहा.
पूरी तरह मेड इन इंडिया है करंसी नोट
वृत्त चित्र में दी गई जानकारी के अनुसार, ‘‘आज करेंसी नोट की छपाई में इस्तेमाल होने वाली मशीन, इंक से लेकर सभी प्रकार की चीजों का विनिर्माण भारत में ही होता है.’’ उल्लेखनीय है कि पहले, आयातित कागज से नोटों की छपाई होती थी. यह कागज दुनिया की कुछ कंपनियां ही बनाती थीं, जिससे बाजार में इन कंपनियों का दबदबा रहता था और इस कारण बाजार में नकली नोट आने की आशंका बनी रहती थी.
आरबीआई की पूर्व डिप्टी गवर्नर ऊषा थोराट कहती हैं, ‘‘हमें करेंसी नोट के लिए कागज आयात करना पड़ता था. नासिक और देवास में आयातित कागज से नोटों की छपाई होती थी. ये कागज कुछ ही इकाइयां विनिर्माण करती थीं…. वर्ष 2010 में पाया गया कि कई नकली नोट अच्छी गुणवत्ता के थे और वो देखने में बिल्कुल यहां छपे नोट की तरह थे.’’
लगाए अपने कारखाने
इस स्थिति को देखते हुए आरबीआई ने अपनी मुद्रा के लिए कागज बनाने को लेकर देवास (मध्य प्रदेश), सालबोनी (पश्चिम बंगाल) , नासिक (महाराष्ट्र) और मैसूर (कर्नाटक) में कारखाने लगाए. आज जो भी करेंसी में कागज का उपयोग हो रहा है, वह भारत में ही विनिर्मित हो रहा है. वर्तमान में करेंसी नोट में इस्तेमाल होने वाले कागज के अलावा छपाई, इंक समेत सभी चीजें घरेलू स्रोत से ही ली जा रही हैं, जो ‘मेक इन इंडिया’ का अच्छा उदाहरण है.
केंद्रीय बैंक के अनुसार, ‘‘बैंक नोट में 50 से अधिक सुरक्षा विशेषताएं होती हैं. इनमें से सुरक्षा धागा, लैटेंट इमेज आदि की जानकारी लोगों को होती हैं लेकिन कई सुरक्षा विशेषताएं छिपी होती हैं, जिन्हें केवल विशेषीकृत उपकरणों के जरिये ही देखा जा सकता है.
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