नई दिल्ली. इसे रणनीति कहें या राजनीतिक दूरदर्शिता, आप नाम जो चाहे दे दीजिए लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभालने के बाद से जो रणनीति अपनाई, उसका सीधा लाभ आज सबके सामने है. पीएम मोदी जबसे सत्ता में आए हैं, उन्होंने भारत की निर्भरता और व्यापार दोनों को ही मिडिल ईस्ट व उत्तरी अफ्रीकी देशों पर कम करना शुरू कर दिया था. इसका फायदा आज दिख रहा है, जब ईरान और इजराइल एक दूसरे को तबाह करने पर आमादा हैं. इस संघर्ष की वजह से मध्य एशियाई और उत्तरी अफ्रीकी देशों के साथ कारोबार अब आसान नहीं दिख रहा है.मौजूदा संघर्ष से इतना तो साफ है कि अगर आज भारत 10 साल पहले की तरह ही मिडिल ईस्ट और उत्तरी अफ्रीकी देशों पर निर्भर होता तो मुश्किलें काफी बढ़ सकती थीं. लेकिन, मोदी सरकार ने साल 2014 के बाद से ही इन देशों पर अपनी व्यापारिक निर्भरता को कम करना शुरू कर दिया था. साल 2013 में इन देशों से भारत का आयात जहां कुल इम्पोर्ट का 31 फीसदी से भी ज्यादा रहता था, वहीं 2024 में यह गिरकर 21 फीसदी के आसपास आ गया है. जाहिर है कि 10 फीसदी की यह कमी आर्थिक लिहाज से काफी मायने रखती है.
अब कितना होगा असर
भारत भले ही पिछले एक दशक में मध्य एशियाई और उत्तरी अफ्रीकी देशों के साथ अपने कारोबार को सीमित किया है, फिर भी ईरान-इजराइल युद्ध की वजह से कुल व्यापार के 20 फीसदी हिस्से पर असर पड़ सकता है. यह करीब 224 अरब डॉलर (करीब 19.26 लाख करोड़ रुपये) के द्विपक्षीय कारोबार पर असर पड़ने की आशंका है. लेकिन, 10 साल पहले के आंकड़े देखें तो साफ पता चलता है कि भारत ने कितनी तेजी से अपने व्यापारिक साझेदारी में बदलाव किया है.
2013 में कितना कारोबारभारत और मिडिल ईस्ट व उत्तरी अफ्रीकी देशों के बीच साल 2013 में कुल द्विपक्षीय कारोबार 217 अरब डॉलर था, जो 2024 तक महज 224 अरब डॉलर तक पहुंचा है. इसका मतलब हुआ कि 11 साल में महज 7 अरब डॉलर का व्यापार ही इस क्षेत्र में बढ़ा है. इस दौरान भारत का कुल कारोबार इस क्षेत्र के साथ 27 फीसदी से नीचे गिरकर महज 19.8 फीसदी पर आ गया है.
क्रूड पर सबसे बड़ा पैंतरा
भारत ने सबसे बड़ा पैंतरा क्रूड के आयात को लेकर खेला है. 11 साल पहले जहां भारत का क्रूड आयात मिडिल ईस्ट देशों पर 31 फीसदी से ज्यादा था, अब गिरकर 21 फीसदी के आसपास आ गया है. इसमें भी सबसे बड़ी कमी भारत ने खाड़ी देशों के साथ दर्ज की है. इन देशों की हिस्सेदारी भारत के तेल आयात में 21.4 फीसदी से गिरकर 16.1 फीसदी पर आ गई है. इस क्षेत्र में ईरान, इजराइल, यूएई और अल्जीरिया जैसे देश आते हैं. इन देशों की भारत के क्रूड आयात में हिस्सेदारी 2014 में 21.8 फीसदी थी, जो 2024 में 17.1 फीसदी पर आ गई है.
व्यापार का तरीका भी बदलाभारत ने सिर्फ निर्भरता को कम किया है, बल्कि व्यापार का तरीका भी बदला है. पहले जहां इस क्षेत्र से ज्यादातर क्रूड का आयात करता था, वहीं 10 साल में इसे खनिजों पर शिफ्ट कर दिया. एक दशक पहले जहां भारत अपनी 60 फीसदी ईंधन की जरूरत इसी क्षेत्र से पूरी करता था, अब यह आंकड़ा 43.8 फीसदी रह गया है. दूसरी ओर, सोडा, फ्लाई ऐश, कमोडिटी जैसे कोयले का आयात 2013 के 12.7 फीसदी से बढ़कर 26.6 फीसदी पहंच गया है.
क्या है इस बदलाव के मायनेभारत सरकार के इस ट्रेड बदलाव के आखिर मायने क्या हैं, इसे जानने के लिए यह समझना होगा कि ईरान-इजराइल युद्ध किस तरह वर्ल्ड ट्रेड पर असर डाल रहा है. ईरान ने होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने की चेतावनी दी है, जो दुनिया के 20 फीसदी क्रूड सप्लाई का एकमात्र रास्ता है. इसके बंद से भारत के ट्रेड पर भी बड़ा असर पड़ेगा. ईरान का ऐसा कोई भी कदम भारत में कच्चे तेल की कीमतों को बढ़ा सकता है, जो कई तरह से प्रतिकूल असर डाल सकता है.
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