Last Updated:February 09, 2025, 12:35 IST1993 में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 70 में से 49 सीटें जीतीं थी. पांच साल में भाजपा ने तीन मुख्यमंत्री बनाए, लेकिन प्याज के आसमान छूते दामों ने उसे सत्ता से बाहर कर दिया.
1998 में दिवाली के पास तो प्याज की खुदरा कीमत आसमान छूने लगी.हाइलाइट्स1993 में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 70 में से 49 सीटें जीतीं थी.1998 में हुए चुनाव में भाजपा बुरी तरह हारी और सत्ता कांग्रेस के हाथ लगी. भाजपा की हार के पीछे मुख्य कारण प्याज की कीमतों में आया उछाल था. नई दिल्ली. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को 27 साल बाद दिल्ली की सत्ता फिर नसीब हुई है. पार्टी ने जोरदार प्रदर्शन करते हुए 70 में से 48 सीट जीती हैं. दिल्ली की सत्ता पर 10 साल तक राज करने वाली अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी मात्र 22 सीट पर सिमट गई. भाजपा को दिल्ली में सत्ता से बाहर करने में प्याज ने अहम भूमिका निभाई थी. 1998 में भाजपा सरकार के कार्यकाल में राष्ट्रीय राजधानी में प्याज की कीमत 60 रुपये किलो तक पहुंच गई थी. उस समय की महंगाई दर के हिसाब से ये दाम बहुत ज्यादा थे. अब भाजपा की दिल्ली की सत्ता में वापसी हुई तो दिल्ली में प्याज का थोक मूल्य अधिकतम 27 रुपये प्रति किलोग्राम मिल रहा है, जबकि रिटेल में भाव 35 रुपये किलोग्राम तक है. इस चुनाव में प्याज कोई चुनावी मुद्दा नहीं था.
1993 में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 70 में से 49 सीटें जीतीं थी. भाजपा ने मदन लाल खुराना को मुख्यमंत्री बनाया. 1995 में हवाला कांड में नाम आने के बाद खुराना को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा और पार्टी ने साहिब सिंह वर्मा को मुख्यमंत्री बनाया. 1997 के आखिर में दिल्ली में प्याज की कीमत बढनी शुरू हो गई. विपक्षी दलों ने सरकार को घेरना शुरू किया. 1998 में दिवाली के पास तो प्याज की खुदरा कीमत 60 रुपये किलो तक हो गई. विपक्षी पार्टियों के साथ ही आम लोगों में भी आक्रोश बढ गया. इसे देखते हुए विधानसभा चुनाव से ठीक पहले साहिब सिंह वर्मा को हटाकर सुषमा स्वराज सीएम बनाया. प्याज की कीमतों पर काबू पाने के लिए सुषमा ने कई कदम उठाए, लेकिन वे प्याज को चुनावी मुद्दा बनाने से नहीं रोक पाईं. आखिरकार प्याज बड़ा चुनावी मुद्दा बना और भाजपा को हार का सामना करना पड़ा.
70 में से 52 सीटें जीती थीं कांग्रेसकांग्रेस ने 1998 का विधानसभा चुनाव शीला दीक्षित के नेतृत्व में लड़ा. पार्टी ने प्याज और सरसों के तेल में मिलावट से फैली ड्रॉप्सी बीमारी को चुनावों में खूब भुनाया. महंगे प्याज की मार से बेहाल जनता ने भाजपा को पूरी तरह नकार दिया और कांग्रेस को 70 में से 52 सीटें दे दी. उसके बाद से साल 2025 तक भाजपा हमेशा विपक्ष में ही बैठती रही. अब 27 साल बाद भाजपा को फिर दिल्ली की सत्ता हासिल हुई है.
पहले भी चुनावी मुद्दा बनता रहा है प्याजदेश में प्याज कई बार चुनावी मुद्दा बना है. पहली बार 1980 में प्याज की कीमतें चुनावी मुद्दा बनीं. तब केंद्र में जनता पार्टी की सरकार थी और कांग्रेस विपक्ष में थी. इंदिरा गांधी चुनाव प्रचार के दौरान प्याज की माला पहनकर घूमीं. नतीजों के बाद यही कहा गया कि जनता पार्टी प्याज की कीमतों के चलते चुनाव हारी. 1998 की दिवाली में महाराष्ट्र में प्याज की भारी किल्लत हो गई और इसकी कीमत बढ़ गई.
कांग्रेसी नेता छगन भुजबल ने इस पर तंज कसने के लिए महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर जोशी को मिठाई के डिब्बे में प्याज रखकर भेजी थी.1998 में ही राजस्थान विधानसभा चुनाव में भी प्याज मुद्दा बना. भाजपा के मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत ने विधानसभा चुनाव हारने के बाद कहा- प्याज हमारे पीछे पड़ा था.
Location :New Delhi,New Delhi,DelhiFirst Published :February 09, 2025, 12:35 ISThomebusiness1998 में प्याज के दाम ने दिल्ली से बीजेपी को कर दिया था आउट, तब कितना था भाव
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