मुंबई. नौकरी को लेकर हम हमेशा लोगों का एक ही सपना रहता है कि सैलरी और ओहदा अच्छा मिले. लेकिन, वक्त बदल रहा है इसलिए युवाओं की सोच भी बदल रही है और वे शुरुआती दौर में सैलरी व पोस्ट के बजाय लर्निंग पर फोकस कर रहे हैं. दरअसल, प्रोफेशनल सर्विस कंपनी डेलॉयट के एक सर्वे में यह बात सामने आई है. डेलॉयट इंडिया की ‘चीफ हैप्पीनेस ऑफिसर’ सरस्वती कस्तूरीरंगन ने कहा, ‘‘ भारत के ‘जेन-जी’ और ‘मिलेनियल्स’ न केवल भविष्य के अनुरूप काम करने के तरीकों के हिसाब से खुद को ढाल रहे हैं, बल्कि वे इसे आकार भी दे रहे हैं.
85 प्रतिशत लोग साप्ताहिक ‘अपस्किलिंग’ में लगे हुए हैं और नौकरी के दौरान सीखने को प्राथमिकता दे रहे हैं, वे जेनएआई जैसी टेक्नोलॉजी के साथ मिलकर चुस्त, उद्देश्य-संचालित करियर बना रहे हैं.’’ ‘जेन-जी’ 1997 से 2012 के बीच और ‘मिलेनियल्स’ 1981 से 1996 के बीच जन्म लेने वाले लोगों को कहा जाता है.
सर्वे की बड़ी बातें
-सर्वेक्षण में पाया गया कि करियर की प्रगति और सीखने के अवसर उन शीर्ष कारकों में से हैं जो युवा कार्यबल के लिए नौकरी के फैसले को प्रभावित करते हैं. हालांकि, ‘मेंटरशिप’ (अनुभवी व्यक्ति के मार्गदर्शन) की कमी है क्योंकि लगभग आधे युवा मैनेजर्स से सक्रिय ‘मेंटरशिप’ चाहते हैं, लेकिन बहुत कम को यह मिलती है. यह ‘2025 डेलॉयट ग्लोबल जेन-जी एंड मिलेनियल्स सर्वे’ ग्लोबल नजरिये पर आधारित है. इसमें 809 भारतीय पेशेवरों की प्रतिक्रियाएं शामिल हैं जिनमें से 505 जेन-जी और 304 मिलेनियल्स थे.
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-सर्वे में पारंपरिक स्कूली शिक्षा को लेकर भी कुछ चिंताएं सामने आईं, क्योंकि कई लोगों ने सवाल उठाया कि क्या तेजी से बदलते जॉब मार्केट में केवल औपचारिक डिग्री ही पर्याप्त है? इसमें 94 प्रतिशत से ज्यादा ‘जेन-जी’ और 97 प्रतिशत से अधिक मिलेनियल्स ने कहा कि वे किताबी शिक्षा से ज्यादा प्रैक्टिल अनुभव को महत्व देते हैं.
-इसके अलावा, सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि 52 प्रतिशत जेन-जी और 45 प्रतिशत मिलेनियल्स उच्च शिक्षा की गुणवत्ता से असंतुष्ट हैं. साथ ही 36 प्रतिशत जेन-जी और 40 प्रतिशत मिलेनियल्स ने लागत संबंधी चिंताओं की बात कही.
इस बीच, भारत में 33 प्रतिशत जेन-जी और 29 प्रतिशत मिलेनियल्स ने कहा कि वे हर समय या अधिकतर समय तनावग्रस्त या चिंतित महसूस करते हैं. भारत में 36 प्रतिशत से अधिक जेन-जी और 39 प्रतिशत मिलेनियल्स ने कहा कि उनकी नौकरी उनकी चिंता या तनाव की भावनाओं के लिए काफी हद तक जिम्मेदार है.
सरस्वती ने कहा, ‘‘ संगठनों को इस बात पर दोबारा सोचने की जरूरत है कि वे कर्मचारियों की खुशी और बेहतरी को किस तरह प्राथमिकता देते हैं. ’’
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