मखाना बोर्ड : उम्‍मीदें हैं हजार, चुनौतियां भी कम नहीं

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Last Updated:March 08, 2025, 15:26 ISTकेंद्र सरकार ने मखाना बोर्ड की घोषणा की है जिसका उद्देश्य मखाना उत्पादन, वितरण, मूल्य स्थिरीकरण और वैश्विक बाजार में स्थान दिलाना है.भारत के 90% मखाना उत्पादन का स्रोत बिहार का मिथिला क्षेत्र है.हाइलाइट्सकेंद्र सरकार ने मखाना बोर्ड की घोषणा की.मखाना उत्पादन, वितरण, मूल्य स्थिरीकरण पर ध्यान.मिथिला क्षेत्र के मखाना ब्रांडों को वैश्विक पहचान दिलाने का लक्ष्य.लेखक : अरविंद झा

केंद्र सरकार ने हाल ही में मखाना बोर्ड बनाने की घोषणा की.  इसका उद्देश्‍य मखाना उत्पादन में वृद्धि करना, वितरण विस्तार, मूल्य स्थिरीकरण, गुणवत्ता मानकीकरण, वैश्विक बाजार में मखाना को जगह दिलाना और यह सुनिश्चित करना है कि किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य मिले. यदि मखाना बोर्ड ने सही कार्य किया तो यह स्थानीय ब्रांडों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बना सकता है, निवेश आकर्षित कर सकता है और उत्पादन का विस्तार कर सकता है. लेकिन, इन उद्देश्‍यों की प्राप्ति के मार्ग में कई बाधाएं और चुनौतियों भी हैं, जिनसे मखाना बोर्ड को निपटना होगा.

एशिया की सबसे बड़ी एकीकृत मखाना प्रसंस्करण कंपनी मिथिला नैचुरल्स के संस्थापक और सीईओ मनीष आनंद लंबे समय से इस तरह की पहल की वकालत कर रहे हैं. पिछले दस वर्षों में मखाना बीज की कीमतें ₹50-60 प्रति किलो से बढ़कर ₹300-400 प्रति किलो हो गई हैं और इसमें और वृद्धि की संभावना है. हालांकि, मखाना बोर्ड के स्थान (दरभंगा, पूर्णिया, या पटना) को लेकर राजनीतिक बहस शुरू हो गई है, लेकिन मिथिला क्षेत्र से एक प्रमुख ब्रांड बनाने पर ज्यादा चर्चा नहीं हो रही है. उद्योग की प्रमुख चुनौतियों का समाधान करना बोर्ड की सफलता के लिए आवश्यक होगा.

स्थानीय व्यवसायों के लिए पूंजी तक पहुंच सुनिश्चित करनाभले ही भारत के 90% मखाना उत्पादन का स्रोत बिहार का मिथिला क्षेत्र (दरभंगा, मधुबनी, पूर्णिया) है, लेकिन यहां के स्थानीय व्यवसायों को गंभीर पूंजी संकट का सामना करना पड़ता है. बैंक जोखिम उठाने से हिचकिचाते हैं, वेंचर कैपिटलिस्ट्स अभी तक बिहार के स्टार्टअप इकोसिस्टम में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं और SEBI नियमों की कठोरता के कारण सामुदायिक फंडिंग भी सीमित है. स्थानीय उद्यमियों को इक्विटी और ऋण जुटाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, जिससे उन्हें स्टॉक वित्तपोषण, कार्यशील पूंजी और ब्रांड निर्माण के लिए आवश्यक धन नहीं मिल पाता.

मखाना बोर्ड को चाहिए कि वह राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय निवेशकों को आकर्षित करे, ऋण वित्तपोषण की सुविधा प्रदान करे, या स्टार्टअप्स के लिए वेंचर फंड स्थापित करे. मखाना को एक सुपरफूड के रूप में वैश्विक बाजार में बढ़ावा देने, व्यापार मेलों में भागीदारी प्रायोजित करने, और सरकार प्रायोजित स्टार्टअप डेलिगेशन का आयोजन करने जैसे प्रयास भी सहायक हो सकते हैं. अगर स्थानीय व्यवसायों को पूंजी सहायता नहीं मिली तो बाहरी निवेशक अंतिम वितरण और ब्रांडिंग पर नियंत्रण कर सकते हैं, जिससे बिहार/मिथिला क्षेत्र के स्टार्टअप्स सिर्फ कच्चे माल के आपूर्तिकर्ता बनकर रह जाएंगे.

इससे क्षेत्र की क्षमता के बावजूद ₹500-1000 करोड़ के ब्रांड बनाने का अवसर खो जाएगा. इसलिए मखाना बोर्ड को पूंजी तक पहुंच को प्राथमिकता देनी चाहिए और अगले 5-7 वर्षों में मिथिला आधारित मखाना ब्रांडों को प्रमुख बाज़ार खिलाड़ी बनाने का लक्ष्य रखना चाहिए.

वैश्विक विपणन और ब्रांडिंग को मजबूती देनामखाना का बाज़ार 2015 में ₹300-400 करोड़ से बढ़कर 2025 तक ₹5000 करोड़ होने की उम्मीद है. वैश्विक मांग में वृद्धि से निर्यात में भी तेजी आई है. बिहार स्थित कई स्टार्टअप्स अंतरराष्ट्रीय बाजारों में अपनी जगह बना रहे हैं. दरभंगा स्थित Shhe Foods ने हाल ही में दुबई फूड शो में $2 मिलियन (₹16 करोड़) का ऑर्डर प्राप्त किया और बड़े सौदों पर बातचीत कर रही है. इसी तरह  OrganicSattva और TirhutWala जैसे स्टार्टअप्स D2C (डायरेक्ट-टू-कंज्यूमर) मॉडल और निर्यात को बढ़ावा दे रहे हैं.

मखाना बोर्ड को चाहिए कि वह इन युवा स्टार्टअप्स की वैश्विक विपणन, ब्रांडिंग और वितरण क्षमताओं को मजबूत करे. इसके लिए एक विशेषज्ञ पैनल गठित किया जा सकता है, जो अमेरिका, यूरोप, मध्य पूर्व और अफ्रीकी बाजारों में विस्तार करने में मदद करे. इस पहल के लिए विपणन, विज्ञापन, स्टॉक वित्तपोषण और विशेषज्ञ टीमों के निर्माण में निवेश आवश्यक होगा.

उत्पादन क्षमता और खेती का विस्तारस्वस्थ स्नैक्स की बढ़ती लोकप्रियता के कारण मखाना की मांग में वृद्धि हुई है. इसमें प्रोटीन, फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट की भरपूर मात्रा होती है और यह लगभग फैट-फ्री है. किसानों को इस मांग को पूरा करने के लिए उत्पादन बढ़ाने की आवश्यकता होगी. अब पारंपरिक पोखर आधारित खेती के अलावा, खेतों में मखाना उत्पादन की नई विधि अपनाई जा रही है.

मनीष आनंद बताते हैं, “खेत में मखाना उगाने की प्रक्रिया धान की खेती के समान होती है. मुख्य अंतर यह है कि मखाना फसल को समतल किया जाता है जिससे कटाई आसान हो. नियंत्रित जल निकासी के माध्यम से कीचड़ बनाया जाता है, जिससे रोतावेटर मशीन से मखाना एकत्र किया जा सकता है.” मखाना बोर्ड को इस विधि को बड़े पैमाने पर अपनाने को बढ़ावा देना चाहिए.

इसके अलावा, मखाना मूल्य श्रृंखला में केवल खेती ही नहीं, बल्कि बीज पॉपिंग, प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन भी शामिल है. मखाना से फ्लेवरयुक्त स्नैक्स, खीर, आटा, कुकीज़ और अन्य उत्पाद बनाए जा सकते हैं. परंपरागत रूप से बीज पॉपिंग दरभंगा/मधुबनी की विशेष पारिवारिक इकाइयों द्वारा की जाती थी, लेकिन अब मशीन-आधारित पॉपिंग को अपनाया जा रहा है. मखाना बोर्ड को अनुसंधान एवं विकास (R&D) को बढ़ावा देकर इस प्रक्रिया का विस्तार करने में मदद करनी चाहिए जिससे उत्पादन की लागत कम हो और किसानों को बेहतर लाभ मिले.

क्‍या मखाना बोर्ड पूरा कर पाएगा सपनामखाना बोर्ड मिथिला मखाना स्टार्टअप्स और व्यापक समुदाय के सपनों को साकार करेगा या यह केवल राजनीतिक विवादों और प्रशासनिक विफलताओं में उलझकर रह जाएगा, यह तो समय ही बताएगा. अगर बोर्ड अपनी जिम्‍मेदारियों का निर्वहन ईमानदारी से करे तो यह बिहार और मिथिला क्षेत्र को विश्व मखाना उद्योग का केंद्र बना सकता है, इसमें कोई शक नहीं है.

(लेखक मिथिला एंजल नेटवर्क के संस्‍थापक हैं.)
Location :New Delhi,New Delhi,DelhiFirst Published :March 08, 2025, 15:26 ISThomebusinessमखाना बोर्ड : उम्‍मीदें हैं हजार, चुनौतियां भी कम नहीं

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