नई दिल्ली. बढ़ती आबादी और औद्योगिकरण के कारण भारत में बिजली की मांग भी तेजी से बढ़ रही है. भारत में प्रचुर मात्रा में कोयला उपलब्ध होने के कारण सरकार भी बिजली उत्पादन के लिए कोयला आधारित बिजली संयंत्र लगाने को प्राथमिकता दे रही है. थर्मल पावर प्लांट चलाने के लिए बहुत ज्यादा पानी की आवश्यकता होती है. लिहाजा जिस इलाके में ये प्लांट लगे हैं, वहां स्थानीय निवासियों और उद्योगों को जल संकट से दो-चार होना पड़ता है. इसका जीता-जागता उदाहरण है महाराष्ट्र का सोलापुर. यहां एनटीपीसी द्वारा लगाए गए कोयला आधारित बिजली संयंत्र के लगने के बाद से गर्मियों में पानी की भारी किल्लत हो जाती है. यह प्लांट यहां 2017 में लगा था. इसके लगने से पहले यहां लोगों को हर दूसरे दिन पेयजल की सप्लाई होती थी. अब गर्मियों के मौसम में कई बार तो हफ्ते में एक दिन पानी नलों में आता है.
यही हाल उन दूसरे स्थानों का भी है, जहां कोयला आधारित पावर प्लांट लगे हैं. भारत के सामने दुविधा यह है कि देश के पास दुनिया की 17% जनसंख्या है, लेकिन केवल 4% जल संसाधन. इसके बावजूद भारत 2031 तक 80 अरब डॉलर के पानी-खपत करने वाले कोयला आधारित संयंत्रों पर खर्च करेगा. ऊर्जा मंत्रालय के एक दस्तावेज़ के अनुसार, इन नए संयंत्रों में अधिकांश देश के सबसे शुष्क इलाकों में प्रस्तावित हैं. रॉयटर्स से बात करने वाले कई विशेषज्ञों का मानना है कि इस थर्मल विस्तार से भविष्य में उद्योग और स्थानीय निवासियों के बीच जल संसाधनों को लेकर टकराव बढ़ सकता है. ऊर्जा मंत्रालय की सूची के अनुसार, 44 में से 37 नई परियोजनाएं ऐसे इलाकों में हैं जिन्हें सरकार ने जल संकटग्रस्त या तनावग्रस्त घोषित किया है. एनटीपीसी, जो 98.5% पानी संकटग्रस्त क्षेत्रों से पानी लेती है, 9 परियोजनाओं में शामिल है.
कोविड के बाद बदली नीति
भारत ने कुछ वर्ष पहले कोयले पर निर्भरता कम करने की कोशिश की थी, लेकिन कोविड महामारी के बाद इस नीति को उलट दिया. भारत ने सौर और हाइड्रो ऊर्जा में भारी निवेश किया है, लेकिन पानी-खपत करने वाली थर्मल बिजली अभी भी आने वाले दशकों में हावी रहेगी. पूर्व ऊर्जा सचिव राम विनय शाही का कहना है “देश में हमारे पास एकमात्र ऊर्जा स्रोत कोयला है. इसलिए कोयला को पानी पर प्राथमिकता दी जाती है.”
पानी की प्यास
2014 से अब तक भारत में पानी की कमी के चलते देशभर में 60.33 अरब यूनिट कोयला आधारित बिजली उत्पादन का नुकसान हुआ है. यह जून 2025 के स्तर पर 19 दिन की बिजली आपूर्ति के बराबर है. महाराष्ट्रर का ही चंद्रपुर सुपर थर्मल पावर स्टेशन भी पानी की कमी से जूझता रहा है. मानसून में कम बारिश होने पर संयंत्र कई यूनिट्स को महीनों तक बंद रखना पड़ता है.
जहां आसानी से मिले जमीन, वहां संयंत्र लगाने को प्राथमिकता
कोयला संयंत्र लगाने के लिए अच्छी-खासी जमीन की जरूरत होती है. भारत में जटिल भूमि कानूनों के कारण जमीन मिलना काफी कठिन काम है. ऐसे में सरकार और कंपनियां उन स्थानों को चुनती हैं जहां भूमि आसानी से मिल सके, भले ही वहां पानी की कमी हो या फिर पानी दूर से लाना पड़े. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ एडवांस स्टडीज, बेंगलुरु के रुड्रोदीप माजूमदार का कहना है कि “कंपनियां ऐसे इलाकों का चयन करती हैं जहां जमीन लेने में रुकावटें कम हों— हालांकि पानी कहीं दूर से करना पड़े. यह हालत इसलिए है क्योंकि भूमि उपलब्धता अभी भी निर्णय का प्रमुख आधार है.”
पूर्व केंद्रीय ऊर्जा मंत्री सुशीलकुमार शिंदे जिन्होंने सोलापुर संयंत्र को लगाने में अहम भूमिका निभाई थी का कहना है कि संयंत्र से हजारों लोगों को रोजगार मिला और किसानों को उनकी जमीन का उचित मूल्य. अगर अब किसी भी तरह की दिक्कत है तो यह स्थानीय प्रशासन की उपेक्षा की वजह है.
सोलापुर के हालात
सोलापुर में थर्मल पावर प्लांट लगने के बाद से पानी की कमी हो गई है. स्थानीय निवासी रजनी थोके का कहना है कि गर्मी में उनका पूरा दिन पानी के इंतजाम में ही निकल जाता है. उनका कहना है, “जब पानी आता है, मैं सिर्फ पानी जमा करना, कपड़े धोना, खाना बनाना… इन चीज़ों पर ही ध्यान देती हूं. बाकी सबकुछ पीछे छूट जाता है.”जब भी स्थानीय जलाशयों तथा नलों में पानी आता है तो पूरा परिवार इकठ्ठा हो जाता है ताकि बर्तन, बाल्टी, टंकी आदि फुल कर सकें. सोलापुर नगरपालिका में कार्यरत सचिन ओम्बासे का कहना है कि आबादी में वृद्धि के हिसाब से जल वितरण प्रणाली में सुधार नहीं हुआ है, लेकिन समस्या को हल करने के लिए वे प्रयासरत हैं.
NTPC ने रॉयटर्स को बताया कि वह सोलापुर संयंत्र में पानी संरक्षण के लिए प्रयासरत है जिसमें रिसायक्लिंग, ट्रीटमेंट, रीयूज़ल जैसी तकनीकों का उपयोग शामिल है. लेकिन संयंत्र की संभावित विस्तार योजनाओं के बारे में उन्होंने कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया. मई 2023 की सरकार की रिपोर्ट के अनुसार, यह संयंत्र उन संयंत्रों में शामिल है जो सबसे कम जल-कुशल हैं. साथ ही इसका क्षमता उपयोग भी सबसे न्यूनतम स्तर पर है.
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