नई दिल्ली. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जबसे भारत सहित दुनियाभर के देशों पर टैरिफ लगाया है, हर कोई अमेरिका के साथ व्यापार समझौता करना चाहता है. चीन इस मामले में कामयाब हो चुका है, जबकि भारत पिछले 2 महीने से लगातार कोशिशें कर रहा है. अब जबकि भारत और अमेरिका के बीच किसी सहमति की उम्मीद की जा रही थी, तभी भारतीय दल वापस आ गया. अब यह कयास लगाए जा रहे कि आखिर इस लंबी बातचीत का नतीजा क्या निकला. भारत को इससे क्या हासिल हुआ और हमने क्या खोया है.
दरअसल, अमेरिका के साथ अंतरिम व्यपार समझौते पर एक और दौर की बातचीत पूरी करने के बाद भारतीय अधिकारी राजेश अग्रवाल के नेतृत्व वाली टीम वापस लौट आई है. उन्होंने कहा कि दोनों देशों में बातचीत जारी रहेगी, क्योंकि कृषि और वाहन क्षेत्र में कुछ मुद्दों को अभी भी सुलझाया जाना बाकी है. एक अधिकारी ने बताया कि वार्ता अंतिम चरण में है और इसके निष्कर्ष की घोषणा 9 जुलाई से पहले होने की उम्मीद है.
भारत के लिए क्यों जरूरी है समझौता
अमेरिका के साथ बातचीत और समझौते भारत के लिए इसलिए महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के जवाबी शुल्क की निलंबन अवधि नौ जुलाई को समाप्त हो रही है. दोनों पक्ष उससे पहले वार्ता को अंतिम रूप देने पर विचार कर रहे हैं. भारत ने अमेरिकी कृषि और डेयरी उत्पादों को शुल्क रियायत देने पर अपना रुख कड़ा बनाए रखा है, क्योंकि ये राजनीतिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र है और भारत के छोटे किसानों के खिलाफ भी.
भारत पर कितना टैरिफ लगा2 अप्रैल को अमेरिका ने भारतीय वस्तुओं पर 26 प्रफीसदी का अतिरिक्त जवाबी शुल्क लगाया, लेकिन इसे 90 दिनों के लिए टाल दिया. हालांकि, अमेरिका द्वारा लगाया गया 10 फीसदी मूल शुल्क अभी भी लागू है, लेकिन भारत खुद पर लगाए अतिरिक्त 26 फीसदी शुल्क से पूरी छूट चाहता है. भारत ने अब तक जिन मुक्त व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं, उनमें से किसी में भी व्यापारिक साझेदार के लिए डेयरी क्षेत्र को नहीं खोला है.
किन चीजों पर बन चुकी है सहमतिअमेरिका कुछ औद्योगिक वस्तुओं, वाहन, विशेष रूप से इलेक्ट्रिक वाहनों, वाइन, पेट्रोकेमिकल उत्पादों और सेब, बादाम समेत अन्य सूखे मेवे और आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों जैसी कृषि वस्तुओं पर शुल्क रियायतें भी चाहता है. भारत प्रस्तावित व्यापार समझौते में कपड़ा, रत्न एवं आभूषण, चमड़े की वस्तुएं, परिधान, प्लास्टिक, रसायन, झींगा, तिलहन, अंगूर और केले जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्रों के लिए शुल्क रियायत की मांग कर रहा है.
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