नई दिल्ली. भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले कमजोर हो रहा है, जो घरेलू और वैश्विक कारकों का परिणाम है. यदि भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी मुद्रा नीति में लचीलापन नहीं अपनाया, तो रुपये में और गिरावट आएगी. भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 86 के नए ऐतिहासिक निम्न स्तर पर पहुंच गया है. बाजार जानकारों का कहना है कि भारती रुपया अगले छह से दस महीनों से 92 रुपये तक गिर सकता है. डॉलर इंडेक्स के मजबूत होने के चलते रुपया कमजोर हुआ है. डॉलर इंडेक्स सितंबर 2024 के अंत से अब तक 8 फीसदी बढ़ चुका है. यह स्थिति भारतीय वित्तीय बाजारों, विशेष रूप से इक्विटी और बॉन्ड, पर गहरा प्रभाव डाल रही है.
मनीकंट्रोल की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय इक्विटी इंडेक्स निफ्टी और सेंसेक्स ने 5 जनवरी 2024 से 5 जनवरी 2025 तक केवल 8.3 फीसदी वार्षिक रिटर्न दिया है, जो अमेरिकी एसएंडपी 500 के 26 फीसदी के रिटर्न की तुलना में काफी कम है. इसके अलावा INR/USD के 3 फीसदी वार्षिक मूल्यह्रास ने इस अंतर को और स्पष्ट कर दिया है. कमजोर विकास दर और शेयर बाजार में गिरावट के चलते आने वाले महीनों में रुपये में और गिरावट की आशंका गहरा गई है.
डॉलर की मजबूती के कारणअमेरिकी अर्थव्यवस्था ने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया है. इसके चलते अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने 2025 के लिए प्रस्तावित चार ब्याज दर कटौतियों में से दो को वापस ले लिया है. डोनाल्ड ट्रंप की विस्तारवादी नीतियां, जैसे कॉर्पोरेट टैक्स कटौती और टैरिफ में बढ़ोतरी, मुद्रास्फीति को बढ़ावा दे रही हैं. इससे फेडरल रिजर्व की सख्त मौद्रिक नीति जारी रहने की संभावना है. यह डॉलर को मजबूती प्रदान कर रही है. इसके अलावा यूरोज़ोन की आर्थिक चुनौतियां और चीन की मुद्रा नीति में लचीलापन भी डॉलर की मजबूती में योगदान दे रहे हैं. चीन ने अपने डॉलर भंडार में कटौती की है और मंदी का मुकाबला करने के लिए अपनी मुद्रा को अधिक लचीला बनाया है.
रुपये का डिफैक्टो पेग कमजोरपिछले दो वर्षों में, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने विदेशी मुद्रा भंडार के आक्रामक उपयोग के माध्यम से INR/USD की स्थिरता बनाए रखी है. हालांकि, यह स्थिति अब अस्थिर हो रही है. अक्टूबर 2024 से भारतीय रिजर्व बैंक के विदेशी मुद्रा भंडार में $47 बिलियन की कमी आई है. RBI की मुद्रा स्थिरता नीति के चलते INR/USD लगभग “पेग” मुद्रा की तरह व्यवहार कर रहा है, जबकि चीनी युआन (CNY) अधिक लचीला हो गया है. इस स्थिति में, तेजी से मजबूत हो रहे डॉलर के कारण आरबीआई की मौद्रिक नीति पर दबाव बढ़ रहा है.
घरेलू कारक और कमजोर रुपया2008 से अब तक डॉलर के मुकाबले रुपया 90 फीसदी गिर चुका है. यह अन्य उभरते बाजारों (38 प्रतिशत) और विकसित बाजारों (21 प्रतिशत) की तुलना में अधिक है. हाल की तिमाहियों में भारतीय कंपनियों के मुनाफे में गिरावट देखी गई है. कमजोर मांग और मार्जिन दबाव के चलते FY25-FY27 के लिए निफ्टी की EPS वृद्धि 11 फीसदी पर सीमित है. यह अमेरिकी S&P 500 के अनुमानित 16 फीसदी की तुलना में कमजोर है.म
रुपये का भविष्यविशेषज्ञों का मानना है कि रुपया/डॉलर 84 से 90-92 के स्तर तक गिर सकता है. ऐसा अमेरिकी GDP में 4.6 फीसदी की वृद्धि, अमेरिकी ट्रेजरी यील्ड के 4.0 फीसदी रहने और रुपये की अधिक मूल्यांकन स्थिति के कारण होगा. विशेषज्ञों का कहना है कि आरबीआई को रुपये की स्थिरता के बजाय अधिक लचीलापन अपनाना चाहिए. मुद्रा अस्थिरता को कम करने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार पर अत्यधिक निर्भरता से बचना होगा. इसके अलावा, विकास को प्रोत्साहित करने के लिए आरबीआई को ब्याज दरों में कटौती की आवश्यकता को टालने पर ध्यान देना चाहिए.
क्या होगा रुपये की कमजोरी असर रुपये की कमजोरी का असर विशेष रूप से बैंकिंग और धातु जैसे दर-संवेदनशील क्षेत्रों पर पड़ेगा. हालांकि, आईटी और फार्मा जैसे निर्यात-उन्मुख क्षेत्रों को इससे फायदा हो सकता है. मजबूत डॉलर के चलते कमोडिटी की कीमतों में गिरावट से ऑटोमोबाइल जैसे धातु-उपभोक्ता क्षेत्रों को भी लाभ हो सकता है.
Tags: Business news, Indian currency, Rupee weaknessFIRST PUBLISHED : January 7, 2025, 12:52 IST
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