नई दिल्ली. विशिष्ट और महत्वपूर्ण इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स (Critical Components) के घरेलू निर्माण को बढावा देने के लिए केंद्र सरकार चाइनीज कंपनियों को भारतीय कंपनियों के साथ संयुक्त उद्यम (JV) में 26 प्रतिशत तक हिस्सेदारी रखने की अनुमति देने पर विचार कर रही है. हालांकि, अन्य श्रेणियों में चीन के निवेश की सीमा को 10 फीसदी तक सीमित रखने का इरादा है. मनीकंट्रोल ने वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों और उद्योग सूत्रों के हवाले से यह जानकारी दी है. केंद्र सरकार चाहती है कि इन संयुक्त उपक्रमों के माध्यम से तकनीकी हस्तांतरण (Technology Transfer) भी हो, क्योंकि इस क्षेत्र में भारत के पास पर्याप्त तकनीकी क्षमताएं नहीं हैं.
सूत्रों के अनुसार, पिछले सप्ताह हुई कई बैठकों में सरकार ने घरेलू इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों को बताया कि चाइनीज निवेश प्रस्तावों का मूल्यांकन केस-बाय-केस आधार पर ही किया जाएगा. इस प्रक्रिया में भारतीय कंपनियों को सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) के साथ सीधा संपर्क रखना होगा. एक वरिष्ठ अधिकारी ने मनीकंट्रोल को बातया कि सरकार चाइनीज कंपनियों को सीमित हिस्सेदारी के साथ निवेश की अनुमति देने पर विचार कर रही है. विशेष इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स के मामले में 26% हिस्सेदारी तक हो सकती है. हर जेवी प्रस्ताव को अलग से जांचा जाएगा, और सामूहिक रूप से कोई स्वीकृति प्रदान नहीं की जाएगी.
नरम पड़ी चाइनीज कंपनियांसूत्रों का कहना है कि भारत में निवेश को लेकर अब चाइनीज कंपनियों का रुख नरम पड़ा है. वे भारत में निवेश की शर्तों को मानने को अब ज्यादा इच्छुक हैं. उनके इस रुख में बदलाव के पीछे अमेरिका के साथ चीन का चल रहा टैरिफ वार है. सरकारी सूत्रों के अनुसार, चीन की कंपनियां इस समय भारत में साझेदार तलाश रही हैं और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के साथ सीमित हिस्सेदारी में निवेश करने को भी तैयार हैं.
लियांचुआंग इलेक्ट्रॉनिक्स भारत में बनाएगी डिस्प्ले और चिपसेटइलेक्ट्रॉनिक्स कंपोनेंट्स बनाने वाली चीन की प्रमुख कंपनी, लियांचुआंग इलेक्ट्रॉनिक्स भारतीय कंपनियों एम्बर इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑप्टीमस इलेक्ट्रॉनिक्स के साथ साझेदारी में डिस्प्ले, कैमरा मॉड्यूल और IC चिपसेट का भारत में निर्माण करने की योजना बना रही है. कंपनी के निदेशक झान शियानन ने इसकी पुष्टि की है. लियांचुआंग इलेक्टॉनिक्स भारत में ओप्पो, वीवो और सैमसंग को एलसीडी डिस्प्ले मॉड्यूल सप्लाई करती है.
गौरतलब है कि लियांचुआंग इलेक्ट्रॉनिक्स, भारत सरकार की हाल ही में घोषित 22,919 करोड़ रुपये की इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट मैन्युफैक्चरिंग स्कीम (ECMS) के तहत आवेदन करने वाली पहली चाइनीज कंपनी बन गई है. भारत सरकार ने 26 अप्रैल को इस स्कीम के लिए पोर्टल और दिशानिर्देश जारी किए थे.
भारतीय कंपनियों भी तलाश रही है साझेदारभारतीय कंपनियां भी अब इलेक्ट्रॉनिक्स कंपोनेंट्स का भारत में निर्माण करने के लिए चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और ताइवान की कंपनियों के साथ साझेदारी की संभावनाएं तलाश रही हैं. डिक्सन टेक्नोलॉजीज, टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स, केन्स टेक्नोलॉजीज, माइक्रोमैक्स, एम्बर एंटरप्राइजेज, ऑप्टीमस इलेक्ट्रॉनिक्स, सिरमा एसजीएस, मुनोत इंडस्ट्रीज और मुरुगप्पा समूह जैसी कंपनियां इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट मैन्युफैक्चरिंग स्कीम में आवेदन करने की तैयारी कर रही हैं. जापान की TDK कॉर्पोरेशन, ताइवान की फॉक्सकॉन, ऑस्ट्रिया की AT&S और जापान की मुराटा मैन्युफैक्चरिंग जैसी वैश्विक कंपनियों ने भी इस स्कीम के तहत भारत में निवेश में रुचि दिखाई है.
गुणवत्ता और डिज़ाइन पर फोकसकेंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव स्पष्ट कर चुके हैं कि विदेशी निवेश को एफडीआई नीति परिपत्र 2020 के अनुसार स्वीकृति दी जाएगी. उन्होंने कहा कि केवल उन्हीं कंपनियों को प्राथमिकता दी जाएगी जिनके पास डिज़ाइन क्षमताएं होंगी और जो सिक्स सिग्मा गुणवत्ता मानकों का पालन करेंगी. डिक्सन के सीईओ अतुल लाल का कहना है कि सिक्स सिग्मा गुणवत्ता और डिज़ाइन टीमें अनिवार्य करने का फैसला स्वागत योग्य है. यह भारत में स्थानीय तकनीकी विशेषज्ञता विकसित करने में बहुत काम आएगा.
इंडिया इलेक्ट्रॉनिक्स एंड सेमीकंडक्टर एसोसिएशन (IESA) के अध्यक्ष अशोक चंदक ने भी सरकार के इस कदम की सराहना करते हुए कहा कि डिज़ाइन क्षमताएं भारत को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में मजबूती प्रदान करेंगी. साथ ही उन्होंने चेताया कि MSME कंपनियों के लिए सिक्स सिग्मा गुणवत्ता स्तर को हासिल करना काफी चुनौतीपूर्ण हो सकता है.
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