नई दिल्ली. केंद्रीय आईटी और इलेक्ट्रॉनिक्स मंत्री अश्विनी वैष्णव ने गुरुवार को कहा कि पहली ‘मेड इन इंडिया’ 28-90 एनएम की सेमीकंडक्टर चिप इस साल बाजार में आएगी. राष्ट्रीय राजधानी में सीआईआई एनुअल बिजनेस समिट को संबोधित करते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा, “हमने एक टारगेटेड एप्रोच का उपयोग करते हुए एक विशेष सेगमेंट को टारगेट किया है, जिसकी बाजार हिस्सेदारी 60 प्रतिशत है.” केंद्रीय मंत्री ने कहा, “आज हमारे देश में छह सेमीकंडक्टर प्लांट्स का निर्माण हो रहा है. पहली मेड-इन-इंडिया 28-90 एनएम चिप इस साल बाजार में आ जाएगी.”
केंद्रीय मंत्री ने कहा, “कई शीर्ष अर्थशास्त्री चाहते हैं कि हम सेवाओं पर ध्यान केंद्रित करें. मैन्युफैक्चरिंग और सेवाएं दोनों ही विकास के अगले स्तर के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण हैं. हमें जहां भी अवसर मिले, अपना काम बढ़ाना चाहिए. हमारे पास अपना खुद का आईपी, उत्पाद, डिजाइन और मानक होना चाहिए.” आइए जानते हैं कि 28-90 एनएम चिप क्या होती है और किस काम आती है.
28-90 nm चिप टेक्नोलॉजी
आज जब दुनियाभर में सेमीकंडक्टर को लेकर रेस तेज हो चुकी है, तो हर कोई 5 nm और 3 nm जैसी एडवांस टेक्नोलॉजी की बात कर रहा है. लेकिन क्या आपने सोचा है कि भारत जैसे देशों के लिए असली अवसर शायद वहा है, जहां टेक्नोलॉजी पूरी तरह से नई भी नहीं और आउटडेटेड भी नहीं, यानी 28 से 90 nm के बीच की सेमीकंडक्टर रेंज. दरअसल, 90 nm और 28 nm नोड्स (nodes) ऐसे मैन्युफैक्चरिंग स्टेप्स हैं जिनसे चिप्स बनती हैं. यहां “nm” यानी नैनोमीटर ट्रांजिस्टर की लंबाई को दर्शाता है—जितना छोटा nm, उतना ज्यादा पावरफुल और एनर्जी-एफिशिएंट चिप. लेकिन साथ में उसका निर्माण भी महंगा और जटिल होता है.
क्या होता है नोड
सेमीकंडक्टर की दुनिया में नोड (Node) उस तकनीकी स्तर को कहते हैं जिस पर एक चिप को बनाया जाता है. आसान भाषा में कहें तो नोड का मतलब है चिप पर इस्तेमाल होने वाले सबसे छोटे इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट (जैसे ट्रांजिस्टर) का साइज. इसे नैनोमीटर (nm) में मापा जाता है, जैसे 90 nm, 28 nm, 7 nm आदि.
उदाहरण से समझिए
अगर एक चिप 90 nm नोड पर बनी है, तो उसका ट्रांजिस्टर 90 नैनोमीटर जितना छोटा है.
अगर वही चिप 28 nm नोड पर बने, तो उसके ट्रांजिस्टर और भी छोटे होंगे.
90 nm टेक्नोलॉजी एक ठोस शुरुआत
2003-2005 के आसपास 90 nm चिप्स पहली बार बड़े स्तर पर बनाई गईं. उस समय इंटेल, TSMC और IBM जैसी कंपनियों ने इसे अपनाया. इसमें ‘strained silicon’ और ‘silicon-on-insulator’ जैसे नए इनोवेशन आए, जिससे चिप की स्पीड बढ़ी और एनर्जी की खपत कम हुई. उस दौर में CPUs, RAM और ग्राफिक्स कार्ड जैसी चीजों में इनका इस्तेमाल हुआ. आज भले ही यह नोड पुराना हो चुका है, लेकिन इसकी जरूरत अभी खत्म नहीं हुई. कई सस्ते, लो-पावर गैजेट्स जैसे माइक्रोकंट्रोलर, सिग्नल प्रोसेसर और बेसिक IoT डिवाइसेज आज भी 90 nm या उससे बड़े नोड्स पर ही चलते हैं.
28 nm: परफॉर्मेंस और प्राइस का बैलेंस
2011 में जब 28 nm टेक्नोलॉजी आई, तो यह 32 nm और 22 nm के बीच की एक ‘हाफ नोड’ थी. इसने सेमीकंडक्टर की दुनिया में नई जान फूंकी क्योंकि इसमें ‘High-k metal gate’ जैसी तकनीक से पावर की खपत 30-50% तक घटाई गई और स्पीड भी बढ़ी.AMD Radeon HD 7970 जैसे हाई परफॉर्मेंस ग्राफिक्स कार्ड, Qualcomm Snapdragon 410 जैसे मोबाइल प्रोसेसर और Altera जैसे FPGA डिवाइसेज इसी नोड पर बने हैं. इस नोड में SRAM सेल का आकार भी बहुत छोटा होता है—सिर्फ 0.16 माइक्रोमीटर स्क्वायर, जो 90 nm से पांच गुना छोटा है.
भारत और 28-90 nm का भविष्य
भारत के सेमीकंडक्टर मिशन के तहत फिलहाल हम 28 nm तक के चिप निर्माण की योजना बना रहे हैं. इसका कारण भी साफ है:
इसके लिए EUV (Extreme Ultraviolet) जैसे महंगे सिस्टम की जरूरत नहीं पड़ती.
DUV (Deep Ultraviolet) लिथोग्राफी से ही 28 nm तक के चिप्स बनाए जा सकते हैं.
इन चिप्स की डिमांड IoT, ऑटोमोबाइल, वियरेबल्स और सैटेलाइट नेविगेशन जैसी कई इंडस्ट्रीज में बनी हुई है.
TSMC जैसी बड़ी कंपनियां भी 28 nm को एक ‘sweet spot’ मानती हैं—जहां परफॉर्मेंस, कीमत और स्थिरता का सही संतुलन मिलता है.
क्या यही भारत का गेमचेंजर हो सकता है?
28 से 90 nm के बीच के ये नोड्स भारत के लिए एक मजबूत शुरुआत हो सकते हैं. जहां पश्चिमी देश एडवांस नोड्स में व्यस्त हैं, वहीं भारत अपने डिजिटल उत्पादों के लिए 28 nm जैसी टेक्नोलॉजी से आत्मनिर्भरता हासिल कर सकता है. इससे भारत केवल मोबाइल और कंप्यूटर ही नहीं, बल्कि ऑटो, रक्षा और उपग्रह टेक्नोलॉजी में भी बड़ी छलांग लगा सकता है.
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