चमत्कार! केवल 1 रुपये प्रति यूनिट में आपके घर पर बनेगी बिजली, IIT बॉम्बे ने निकाला तोड़

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कोई कितना भी अमीर हो या गरीब, बिजली के बढ़ते बिल से हर किसी को परेशान होते देखा जा सकता है. ज्यादा गर्मी है तो घरों में एसी, फ्रिज और कूलर जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स काफी ज्यादा बिजली लेते हैं. सर्दी में घरों में गर्म रखने के लिए बिजली की अधिक खपत होने लगती है. ऐसे समय में अगर कोई तकनीक हमारे घरों की छत से ही ज़्यादा और सस्ती बिजली बना दे, तो क्या वो किसी चमत्कार से कम होगी? आप कहेंगे कि सोलर पैनल लगाकर ऐसा किया जा सकता है, इसमें क्या चमत्कार है? लेकिन यकीन मानिए एक चमत्कार जैसी तकनीक बनी है और भी भारत में.

दरअसल IIT बॉम्बे के वैज्ञानिकों ने अपनी कड़ी मेहनत से एक ऐसा नया सोलर सेल तैयार किया है जो अब तक की पारंपरिक तकनीक से करीब 25-30 फीसदी ज्यादा बिजली बना सकता है. अभी जो सोलर पैनल 20 फीसदी के करीब एनर्जी को बिजली में बदलते हैं, नई तकनीक से यह क्षमता 30 फीसदी तक पहुंच गई है. इससे न केवल बिजली ज्यादा बनेगी, बल्कि इसकी लागत भी काफी कम हो जाएगी. अभी जहां एक यूनिट सोलर बिजली की कीमत 2.5 से 4 रुपये तक होती है, वहीं इस तकनीक से यह लागत घटकर सिर्फ 1 रुपये प्रति यूनिट तक आ सकती है.

टैंडम सोलर सेल में इस्तेमाल होने वाला मैटिरियल भारत में

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस काम को संभव किया है प्रोफेसर दिनेश काबरा और उनकी टीम ने. यह टीम IIT बॉम्बे के नेशनल सेंटर फॉर फोटावोल्टाइक रिसर्च एंड एजुकेशन (NCPRE) में काम कर रही है. उन्होंने एक खास तरह का सोलर सेल बनाया है, जिसे “टैंडम सोलर सेल” कहा जाता है. इसमें ऊपर की परत में ‘हेलाइड पेरोव्स्काइट’ नाम का एक खास पदार्थ इस्तेमाल किया गया है, जो बहुत कम रोशनी में भी बेहतर बिजली बनाता है. नीचे की परत में पहले से इस्तेमाल होने वाला सिलिकॉन है. दोनों मिलकर एक ऐसा संयोजन बनाते हैं, जिससे बिजली ज्यादा बनती है.

यह तकनीक न केवल कारगर है, बल्कि इसमें इस्तेमाल होने वाला कच्चा माल भारत में ही उपलब्ध है. अभी तक चीन जैसे देशों से ऐसी सामग्री आयात करनी पड़ती थी, जो सोलर पैनल में लगती थी. नई तकनीक में यूज होने वाला मैटिरियल भारत में ही बनेगा और चीन जैसे देशों पर भारत की निर्भरता को कम करेगा. पहले पेरोव्स्काइट की सबसे बड़ी कमी यह थी कि इसकी उम्र बहुत कम होती थी, लेकिन IIT बॉम्बे की टीम ने इसे 10 साल तक टिकाऊ बना दिया है. यह भी ऊर्जा के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि है.

महाराष्ट्र सरकार और IIT बॉम्बे के कंधों पर बड़ी जिम्मेदारी

इस तकनीक को जमीन पर उतारने की जिम्मेदारी अब महाराष्ट्र सरकार और IIT बॉम्बे से जुड़े एक स्टार्टअप ART-PV इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने ली है. वे दिसंबर 2027 तक इसे बाजार के लिए पूरी तरह तैयार करने की दिशा में काम कर रहे हैं. इस स्टार्टअप के पीछे वही प्रोफेसर काबरा हैं, जिन्होंने इस तकनीक को डेवलप किया है. खास बात यह है कि इसके लिए भारत में ही मशीनें और उपकरण बनाए जाएंगे.

यह तकनीक सिर्फ बड़े-बड़े सोलर फार्मों तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि इसे घर की छत, गाड़ियों की छत, और यहां तक कि इमारतों की दीवारों में भी लगाया जा सकेगा. यानी कम जगह में ज्यादा बिजली और ज्यादा बचत. यही नहीं, IIT बॉम्बे और महाराष्ट्र सरकार मिलकर इस तकनीक का इस्तेमाल ‘ग्रीन हाइड्रोजन’ यानी साफ और पर्यावरण के अनुकूल हाइड्रोजन बनाने में भी करने जा रहे हैं, जो भविष्य की ऊर्जा जरूरतों के लिए बेहद अहम है.

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