Last Updated:March 22, 2025, 13:20 ISTSovereign Gold Bond: साल 2015 में केंद्र सरकार सॉवेरन गोल्ड बॉन्ड स्कीम लेकर आई थी. यह योजना निवेशकों के लिए बहुत फायदेमंद साबित हुई लेकिन समय के साथ-साथ सरकार के लिए सिरदर्द बन गई.हाइलाइट्ससॉवरेन गोल्ड बॉन्ड स्कीम से सरकार को नुकसान हुआ.सोने की कीमतों में वृद्धि से योजना महंगी साबित हुई.निवेशकों को 200% रिटर्न और सालाना ब्याज मिला.Sovereign Gold Bond: साल 2015 में केंद्र सरकार, खासकर वित्त मंत्रालय में बैठे बड़े-बड़े अफसरों ने सोने के आयात को कम करने और डिजिटल निवेश को बढ़ावा देने के लिए एक तरकीब निकाली.. वह थी ‘सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड स्कीम’ इस योजना को लेकर सरकार की सोच सही थी लेकिन अधिकारियों ने दूर की नहीं सोची, इसलिए यह योजना अब मोदी सरकार के लिए घाटे का सौदा साबित हो रही है. दरअसल, सोने की कीमतों में भारी वृद्धि और ब्याज भुगतान के चलते यह योजना सरकार के लिए आर्थिक चुनौतियां पैदा कर रही है. आइये आपको समझाते हैं कैसे
2015 में वित्त मंत्रालय ने सोने के आयात और उस पर होने वाले खर्च को कम करने के लिए गोल्ड बॉन्ड लॉन्च करने का फैसला किया. इस स्कीम में सोने की कीमतों से जुड़े रिटर्न और साथ में निवेश पर अलग से सालाना ब्याज देने का ऑफर दिया गया. लेकिन, सोने की कीमतों में उछाल के कारण यह सरकारी योजना महंगी साबित हुई और इसके परिणामस्वरूप सरकार पर देनदारियां बढ़ गईं.
सरकार को बड़ी महंगी पड़ी SGB स्कीम
भारत का 10 साल पुराना सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड कार्यक्रम सरकार के लिए सिर्फ़ 13 बिलियन डॉलर का महंगा सौदा साबित हो रहा, जो एक बड़ा आर्थिक बोझ बन गया है. वह भी ऐसे समय में जब सोने की कीमतें आसमान छू रही हैं और इसमें गिरावट का कोई संकेत नजर नहीं आ रहा है.
सरकार की सोच सही, दांव उल्टा पड़ गया
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, सरकार ने सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड स्कीम को डिजाइन करने में कुछ गलतियां की हैं, जो अब आर्थिक सिरदर्द बन रही है. हालांकि, गोल्ड बॉन्ड को लेकर सरकार की सोच सही थी कि सोना खरीदने के बजाय, लोग डिजिटल तरीके से इसमें निवेश करेंगे. इसका फायदा यह होगा कि गोल्ड के आयात पर हर साल खर्च होने वाले 30 बिलियन डॉलर की हार्ड करेंसी में से कुछ की बचत होगी. लेकिन, पिछले 10 सालों में सोने की कीमतों में हुई जबरदस्त बढ़ोतरी से सरकार की यह हर धारणा विफल हो गई.
पहला सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड अपने निर्गम मूल्य से दोगुने से भी ज्यादा पर मैच्योर हुआ, जिससे सरकार की देनदारी और बढ़ी. गोल्ड की बढ़ती कीमतों को देखते हुए देश में डिमांड को कम करने के लिए सरकार ने 2022 में सीमा शुल्क को बढ़ाकर 15% कर दिया.
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लेकिन, सरकार का यह पैंतरा भी उल्टा पड़ गया, क्योंकि इसने सोने की घरेलू कीमतों को बढ़ा दिया, जिससे परिपक्व हो रहे बॉन्ड पर सरकार का खर्च और बढ़ गया. यही वजह रही कि पिछले साल ने गोल्ड पर इंपोर्ट ड्यूटी को घटाकर 6% कर दिया.
200% रिटर्न, साथ में सालाना ब्याज से गदगद निवेशक
भारतीय रिजर्व बैंक ने सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (SGB) 2016-17 सीरीज IV की फाइनल रेडेमप्शन रेट (8,634 रुपये प्रति ग्राम) की घोषणा की है, जो 17 मार्च, 2025 को देय रहा. 17 मार्च, 2017 को जारी सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (एसजीबी) 2016-17 सीरीज IV का निर्गम मूल्य 2,943 रुपये प्रति ग्राम था, अब 17 मार्च, 2025 को फाइनल रेडेमप्शन प्राइस 8,624 रुपये प्रति ग्राम निर्धारित किया गया. इसका मतलब है कि एक निवेशक ने गोल्ड बॉन्ड में निवेश करके 8 वर्षों में 193% का रिटर्न कमाया है, साथ में हर साल मिलने वाले 2.5 फीसदी ब्याज का फायदा भी लिया.
इस आर्थिक बोझ के चलते पिछले कुछ महीनों से इस बात की चर्चा है कि सरकार सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड स्कीम को बंद सकती है. ध्यान दें कि सरकार ने इस वर्ष के लिए अभी तक किसी नए सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड का ऐलान नहीं किया है.
Location :New Delhi,New Delhi,DelhiFirst Published :March 22, 2025, 13:20 ISThomebusinessसोने की तेजी से घाटे में मोदी सरकार, SGB स्कीम पर उल्टा पड़ा दांव
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