ग्‍वार स्कैम: लुट गए थे ‘पढ़े-लिखे’, भारत के इतिहास में सबसे अनोखा घोटाला

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हाइलाइट्स

साल 2011-2012 में ग्‍वार के भाव में आई थी भयंकर तेजी. 2500-3000 से सीधे 33000 रुपये हो गया था ग्‍वार का भाव. इस कृत्रिम तेजी ने हजारों व्‍यापारियों को कर दिया था कंगाल.

नई दिल्‍ली. हमारे देश में बहुत से घोटाले हुए हैं. कभी किसी ने सरकार को मोटा चूना लगा दिया तो किसी पोंजी स्‍कीम वाला हजारों लोगों के करोड़ों रुपये डकारकर चलता बना. आज से 13 साल पहले देश में एक अनोखा घोटाला हुआ था. यह था ग्‍वार स्‍कैम. साल 2011-2012 में समय अचानक देश में कुछ लोगों ने मिलकर दो सीजन में ग्‍वार की फसल (ग्‍वार सीड) का भाव आसमान पर पहुंचा दिया. 2500-3000 रुपये बिकने वाला ग्‍वार साल 2012 में 33,000 रुपये क्विंटल तक बिक गया. हर रोज बढ़ रहे ग्‍वार के रेट को देखकर बहुत से लोगों ने धड़ाधड़ ग्‍वार खरीदना शुरू कर दिया. ग्‍वार का स्‍टॉक करने वालों में ज्‍यादा संख्‍या हरियाणा और राजस्‍थान के व्‍यापारियों की थी. लेकिन, तेजी का यह बुखार जल्‍दी ही उतर गया. दो साल के भीतर ही इसका भाव 4500 रुपये क्विंटल पर आ गिरा. आज भी ग्‍वार का भाव 5000-5400 रुपये क्विंटल है.

ग्‍वार में हुई इस जबरदस्‍त उठा-पठक से जहां कुछ किसान मालामाल हो गए, वहीं हरियाणा और राजस्‍थान के हजारों व्‍यापारियों को मोटा नुकसान हुआ. एक समय ऐसा भी था जब एक क्विंटल ग्‍वार और 10 ग्राम सोने का भाव एक समान हो गया. हर रोज आ रही तेजी की वजह से ग्‍वार का जबरदस्‍त स्‍टॉक हुआ. राजस्‍थान के जोधपुर, बीकानेर, जयपुर, गंगानगर और हनुमानगढ तो हरियाणा के हिसार, आदमपुर मंडी, सिवानी और भिवानी जैसे शहरों में व्‍यापारियों ने जमकर ग्‍वार का स्‍टॉक किया था. यही नहीं इसी ‘ग्‍वार स्‍कैम’ की वजह से राजस्‍थान में एक राजनीतिक दल, जमीदारा पार्टी का भी उदय हुआ. राजस्‍थान विधानसभा चुनाव में इस पार्टी की दो सीटें भी आई थीं.

क्‍या है ग्‍वार?
ग्‍वार एक फसल है. दुनिया का 90 फीसदी ग्‍वार उत्‍पादन भारत में ही होता है. राजस्‍थान और मध्‍यप्रदेश देश के प्रमुख ग्‍वार उत्‍पादक राज्‍य हैं. ग्‍वार का इस्‍तेमाल पशुओं के लिए पशु आहार बनाने में तो होता ही है साथ ही इससे गोंद भी बनाया जाता है. ग्‍वार गम पाउडर रूप में होता है और इसका इस्‍तेमाल कई तरह की चीजें बनाने में होता है. भारत अपने यहां उत्‍पादित कुल ग्‍वार गम का करीब 70 फीसदी निर्यात करता है.

एक शिगुफे ने लुटा दिए करोड़ों रुपये
साल 2011 से पहले ग्‍वार के भाव में कभी बड़ा उतार-चढ़ाव नहीं आया था. 2011 के कटाई सीजन में भाव अचानक बढ़े. उस सीजन में ग्‍वार का रेट लगभग चार गुना तक बढ़ गया. बाजार में एक चर्चा चली की अमेरिका में कच्‍चा तेल निकालने के लिए ग्‍वार से बनाए जाने वाले गम का इस्‍तेमाल बहुत ज्‍यादा मात्रा में शुरू हो गया है. इस वजह से अमेरिका बहुत ज्‍यादा ग्‍वार गम ले रहा है. भविष्‍य में ग्‍वार का भाव एक लाख क्विंटल तक भी पहुंच सकता है. ग्‍वार के भाव 14000 रुपये हो जाने पर अगले बुआई सीजन यानी साल 2012 में किसानों में ग्‍वार को लेकर जबरदस्‍त उत्‍साह देखा गया.

फ्री दिया ग्‍वार का बीज
राजस्‍थान के गंगानगर में ग्‍वार गम निर्यातक एक फर्म ने ग्‍वार की बुआई बढ़ाने के लिए अभियान ही छेड़ दिया. इस फर्म ने किसानों को फ्री में ग्‍वार का बीज दिया. साथ ही आश्‍वासन भी दिया कि वह किसानों के खेत से ही महंगे दाम पर ग्‍वार खरीदकर ले जाएगी. हरियाणा, राजस्‍थान और पंजाब के कुछ इलाकों में बहुत से लोगों ने कपास की फसल की बजाय ग्‍वार बोया.

बढ़ता रहा भाव
साल 2011 में ग्‍वार के दाम बढ़ने का जो सिलसिला जारी हुआ, वह 2012 में बरकरार रहा. पिछले साल से बुआई ज्‍यादा होने के बावजूद भी ग्‍वार का भाव कटाई सीजन शुरू के दस दिन बाद ही 20 हजार रुपये क्विंटल तक पहुंच गया. रोज भाव बढ़ता देख किसानों ने भी मंडियों में कम फसल लेकर आने लगे. आपूर्ति कम होने और भारी मांग से ग्‍वार का भाव देखते ही देखते 33000 रुपये क्विंटल तक पहुंच गया.

कुछ दिन बाद थम गई तेजी
साल 2012 के कटाई सीजन के आखिर में जाकर भाव थम गया. कुछ दिन रेट स्थिर रहने के बाद इसमें गिरावट शुरू हुई. महीने भर बाद यह 20-22000 हजार रुपए क्विंटल पर आ गया. लेकिन, बाजार में कुछ लोग इस गिरावट को अफवाहों के आधार पर आई मंदी बता रहे थे और लोगों को ग्‍वार न बेचने की अपील कर रहे थे. गिरावट थमी नहीं और भाव गिरते-गिरते वापस 5000 रुपये क्विंटल पर आ गया.

व्‍यापारियों के डूब गए करोड़ों रुपये
ग्‍वार के भाव बुरी तरह टूटने से बहुत से लोगों को करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ. जिनको सबसे ज्‍यादा हानि हुई उनमें से अधिकांश व्‍यापारी वर्ग से संबंध रखते थे, जिन्‍हें हरियाणा-राजस्‍थान में ‘समझदार और पढ़ा-लिखा’ माना जाता है. ग्‍वार का स्‍टॉक करने से घाटे में आए कुछ व्‍यापारी इससे उबर नहीं पाए और वे दिवालिया हो गए.

ग्‍वार ने बनवा दी राजनीतिक पार्टी
राजस्‍थान के गंगानगर में एक ग्‍वार गम एक्‍सपोर्ट करने वाली फर्म थी, विकास डब्‍ल्‍यूएसपी. उसी के फाउंडर बी.डी अग्रवाल का मानना था कि ग्‍वार किसानें की किस्‍मत चमकाएगा. ग्‍वार में मंदी आने पर बी.डी अग्रवाल ने ग्‍वार किसानों के तथाकथित हितों की रक्षा के लिए जमीदारा नामक पार्टी बनाई. इस पार्टी ने राजस्‍थान विधानसभा चुनाव लड़ा और दो सीटें हासिल की. एक सीट पर अग्रवाल की बेटी कामिनी विधायक बनी. बाद में बी.डी अग्रवाल और उनकी कंपनी पर कई तरह के आरोप भी लगे.

क्‍यों आई थी इतनी तेजी?
ग्‍वार का हाजिर के साथ ही वायदा बाजार में भी कारोबार होता है. ग्‍वार में हुई इस भयंकर उठा-पठक पर एग्री कमोडिटी एक्‍सपर्ट की राय थी कि यह सब कुछ वायदा कारोबारियों का किया-धरा था. उनका कहना था कि हाजिर में पड़े अपने स्‍टॉक को महंगे भाव पर बेचने के लिए उन्‍होंने पूरी मार्केट को मैन्‍यूपुलेट कर झूठी तेजी का हव्‍वा खड़ा किया. इसकी चपेट में आम व्‍यापारी आ गया और वह बिना सोचे-समझे बाजार की लहर पर सवार हो गया.

Tags: Agriculture, Business news, Rajasthan news

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