China-US Tariff War: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार (2 अप्रैल 2025) को भारत-चीन समेत दुनिया के 57 देशों पर टैरिफ लगाने का ऐलान किया था. अब अमेरिका पर पलटवार करते हुए चीन ने शुक्रवार (4 अप्रैल 2025) को वहां से आयातित सभी प्रोडक्ट्स पर 34 फीसदी एडिशनल टैरिफ लगाने का फैसला किया. सरकारी न्यूज एजेंसी शिन्हुआ के मुताबिक, ये टैरिफ 10 अप्रैल से अमेरिकी चीजों पर लगाए जाएंगे. यह ऐलान चीनी निर्यात पर रेसीप्रोकल टैरिफ (Reciprocal Tariffs) लगाने के अमेरिकी फैसले के बाद की गई है. आइए जानते हैं कि चीनी टैरिफ का अमेरिका समेत दुनिया पर कितना असर होगा?
अमेरिका पर असर
निर्यात पर दबाव: चीन अमेरिकी कृषि प्रोडक्ट्स (जैसे सोयाबीन, मक्का) और औद्योगिक वस्तुओं का बड़ा खरीदार है. अमेरिका ने 2024 में चीन को लगभग 143.5 अरब डॉलर वैल्यू की चीजों का निर्यात किया था. 34 फीसदी टैरिफ इन चीजों को चीनी बाजार में काफी महंगा बना देगा, जिससे मांग में कमी आ सकती है. कृषि (जैसे सोयाबीन, सूअर का मांस, मक्का), मैन्युफैक्चरिंग (जैसे मशीनरी, इलेक्ट्रॉनिक्स) और एयरोस्पेस (जैसे बोइंग विमान) जैसे प्रमुख सेक्टर्स में निर्यात में तेज गिरावट देखी जा सकती है. पहले से ही पिछले ट्रेड टेंशन से प्रभावित अमेरिकी किसान अरबों डॉलर के नुकसान का सामना कर सकते हैं.
कंज्यूमर कीमतों में बढ़ोतरी: अमेरिका में चीनी टैरिफ के जवाब में आयातित वस्तुओं की लागत बढ़ सकती है. इससे इलेक्ट्रॉनिक्स, कपड़े, खिलौने और अन्य उपभोक्ता सामानों की कीमतें प्रभावित हो सकती हैं, जो अमेरिकी नागरिकों के लिए महंगाई का कारण बन सकता है.
शेयर बाजार में अस्थिरता: इस घोषणा से निवेशकों के बीच ग्लोबल ट्रेड वॉर की आशंका से अनिश्चितता बढ़ सकती है, जिसका असर स्टॉक मार्केट पर पड़ सकता है.
इकोनॉमिक ग्रोथ पर खतरा: अगर यह टैरिफ वॉर लंबा खिंचता है, तो अमेरिकी अर्थव्यवस्था की ग्रोथ रेट पर असर हो सकती है. कंपनियों की सप्लाई चेन बाधित होने से प्रोडक्शन कॉस्ट बढ़ सकती है.
दुनिया पर असर
ग्लोबल ट्रेड में तनाव: चीन और अमेरिका दुनिया की 2 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं. इनके बीच टैरिफ वॉर से ग्लोबल ट्रेड बैलेंस बिगड़ सकता है.
सप्लाई चेन पर असर: कई देशों की कंपनियां चीन और अमेरिका दोनों पर निर्भर हैं. टैरिफ से प्रोडक्शन कॉस्ट बढ़ने और सप्लाई चेन में बाधा से ग्लोबल लेवल पर कीमतें प्रभावित हो सकती हैं.
उभरती अर्थव्यवस्थाओं पर दबाव: भारत जैसे देश, जो दोनों के साथ ट्रेड करते हैं, इस टकराव से प्रभावित हो सकते हैं. भारतीय निर्यातकों को अमेरिकी बाजार में कंपटीशन बढ़ने और चीनी माल की डंपिंग का सामना करना पड़ सकता है.
कमोडिटी कीमतों में उतार-चढ़ाव: चीन द्वारा दुर्लभ धातुओं (जैसे गैडोलीनियम, यिट्रियम) के निर्यात पर सख्ती का संकेत देने से तकनीकी और डिफेंस इंडस्ट्री में इस्तेमाल होने वाली चीजों की कीमतें बढ़ सकती हैं.
भारत के लिए मौके
मैन्युफैक्चरिंग का हब बनने का मौका- अमेरिका और यूरोपीय कंपनियां चीन पर निर्भरता कम करना चाहती हैं. भारत एक बड़ा बाजार और सस्ती लेबर वाला देश है, इसलिए चाइना+1 स्ट्रैटेजी में भारत को जगह मिल सकती है.
निर्यात बढ़ सकता है- अमेरिका को अगर चीन से आयात में दिक्कत होती है, तो वह भारत जैसे देशों से सामान लेना शुरू कर सकता है. इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मा, टेक्सटाइल, ऑटो पार्ट्स जैसे सेक्टर्स में भारत को फायदा हो सकता है.
विदेशी निवेश बढ़ने का मौका- कई मल्टीनेशनल कंपनियां चीन से बाहर अपने प्लांट शिफ्ट करना चाहती हैं. अगर भारत अपनी नीतियां आसान बनाए, तो निवेश भारत में आ सकता है.
डिजिटल टेक्नोलॉजी में फायदा- अमेरिका-चीन टेक वॉर के कारण भारत जैसे देशों को सस्ते ऑप्शन मिल सकते हैं और लोकल टेक्नोलॉजी को बढ़ावा मिल सकता है.
भारत को नुकसान भी:
ग्लोबल अनिश्चितता- जब बड़े देश आपस में लड़ते हैं, तो पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था डगमगाती है. भारत की ग्रोथ पर भी असर पड़ सकता है, खासकर अगर विदेशी डिमांड कम हो जाए।
इनपुट कॉस्ट बढ़ सकती है- भारत भी बहुत सारे रॉ मटेरियल्स चीन से आयात करता है. टैरिफ वॉर से ये महंगे हो सकते हैं, जिससे भारत की कंपनियों की लागत बढ़ेगी.
करेंसी वोलैटिलिटी- ट्रेड वॉर के चलते ग्लोबल मार्केट्स में डॉलर, युआन, और रुपया जैसे करेंसी में उतार-चढ़ाव बढ़ सकता है. इससे ट्रेडिंग मुश्किल हो जाती है.
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