आपका मकान मालिक आपकी सैलरी से ज्यादा कमाएगा.. AI भी समझ गया पीड़ा, बोला- बात तो सही है

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देश की सिलिकॉन सिटी देखने में जितनी आकर्षक लगती है, असल में उतनी ही पीड़ा देने वाली भी है. खासकर शहर में रहने वाले किराये के लोगों के लिए तो आकर्षक नहीं है. चमकती सड़कों और टेक जायंट्स कंपनियों की चकाचौंध के पीछे एक कड़वी हकीकत छुपी है. हमेशा से मकानों के किराये को लेकर बदनाम इस शहर में किराये के सामने सैलरी बौनी पड़ने लगी है. सालाना किराया अब सैलरी के बराबर पहुंच रहा है. सॉफ्टवेयर इंजीनियर्स से लेकर मिड-लेवल प्रोफेशनल्स तक हर कोई इससे परेशान है. कंपनियां मामूली वेतनवृद्धि दे रही हैं, लेकिन महंगाई और किराए की दौड़ उससे कहीं आगे निकल चुकी है. अगर यही ट्रेंड रहा, तो एक दिन किराया सैलरी से भी ज्यादा हो जाएगा. सोचिए, वह स्थिति कैसी होगी.

बेंगलुरु के टेक हब में एक डरावना ट्रेंड सामने आ रहा है. किराये की बढ़ोतरी अब सैलरी इंक्रीमेंट को पीछे छोड़ रही है. एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर को हाल ही में 7.5 फीसदी सैलरी हाइक मिली, लेकिन उसके मकान मालिक ने किराया 10 फीसदी बढ़ा दिया. उससे सोशल मीडिया पर अपना दर्द लिखा, “अगर ऐसा ही चलता रहा, तो एक दिन मेरा किराया मेरी सैलरी से भी ज्यादा हो जाएगा!”

सैलरी हाइक कम, महंगाई ज्यादायह कोई अकेली कहानी नहीं. कई लोगों ने बताया कि उन्हें तो केवल 5-7 फीसदी तक ही सैलरी हाइक मिली, जबकि महंगाई 10 फीसदी से ऊपर है. एक यूजर ने कहा, “इंफ्लेशन के इस दौर में कंपनियों को कम से कम 10 फीसदी तो देना चाहिए.” यह समस्या सिर्फ बेंगलुरु तक सीमित नहीं. हैदराबाद जैसे शहरों में भी हालात ऐसे ही हैं. एक यूजर ने लिखा, “हमारी आधी सैलरी किराए में चली जाती है, बाकी आधी टैक्स में.”

कुछ लोगों ने तो सरकार और कंपनियों पर सीधा हमला बोला. एक पोस्ट में लिखा गया, “10 फीसदी से कम सैलरी हाइक देना अपराध है! इंफ्लेशन के आंकड़े दबाए जाते हैं, और कंपनियां उसका फायदा उठाकर कर्मचारियों को कम हाइक देती हैं. इस बीच, किराया, ग्रोसरी, बिजली बिल सब 10-15 फीसदी सालाना बढ़ रहे हैं. अब वक्त आ गया है कि हम मेट्रो शहरों की इस कड़वी सच्चाई को स्वीकार करें.”

अर्बन स्कैम चल रहा है!एक यूजर ने तो इसे “अर्बन स्कैम” बताया. उसने कहा, “सैलरी धीरे-धीरे बढ़ती है, किराया रफ्तार से भागता है. 7.5 परसेंट हाइक अच्छा लगता है, लेकिन बिजली बिल +12%, किराया +10%, दूध +15%, बचत तो माइनस में चली जाती है.

यह जीने का नहीं, बस टिके रहने का खर्च है. इस स्पडी से, एक दिन आपका मकान मालिक आपकी सैलरी से ज्यादा कमाएगा. यह महंगाई नहीं, बल्कि बिना कानून का ‘लाइफस्टाइल टैक्स’ है!” इस बहस ने एलन मस्क के AI टूल Grok तक भी ध्यान खींचा. कुछ यूजर्स ने पूछा- “क्या सच में किराया सैलरी से ज्यादा हो सकता है?” जवाब था – हां, यह पूरी तरह संभव है.

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