नई दिल्ली. ट्रेन से सफर करना मजेदार होता है. यही वजह है कि तमाम लोग फ्लाइट के बजाए ट्रेन से सफर करना पसंद करते हैं. अब तो सेमी हाई स्पीड ट्रेन यानी वंदेभारत एक्सप्रेस भी शुरू हो चुकी है. यह ट्रेन सबसे आधुनिक ट्रेन है. इसमें सफर करने का अपना अलग ही मजा है. सभी तरह की ट्रेनों गतव्य तक पहुंचाने के लिए इंजन ही खास होता है. अलग अलग ट्रेनों में अलग अलग तरह का इंजन लगाया जाता है. लेकिन एक बात ज्यादातर लोगों को नहीं पता होगी कि ट्रेन के इंजन का असली नाम क्या है? लोग इंजन नाम से जानते हैं, आइए बताते हैं.
सामान्य भाषा में इसे इंजन बोलते हैं लेकिन रेल मैन्युअल के अनुसार इसे लोकोमोटिव कहते हैं. शार्ट में लोको भी बोला जाता है. चूंकि बोलचाल की भाषा में इंजन कहते हैं, यही वजह है कि आम लोग भी इसे इंजन के नाम से जानते हैं, असली नाम से कम ही लोग ही परिचित होंगे. आप भी इसका असली नाम जान लीजिए. जिससे भविष्य में आपसे कोई पूछे तो झट से जवाब दे सकें.
13 हजार से अधिक लोकोमोटिव
मौजूदा समय 13 हजार के करीब पैसेंजर ट्रेनें चलती हैं. वहीं मालगाड़ी को मिला लिया जाए तो संख्या 23 हजार तक पहुंच जाती है. पैसेंजर ट्रेनों में लोकल ट्रेनें और ईएमयू शामिल हैं. इनमें अलग से इंजन नहीं लगता है. कोच में इंजन जुड़ा होता है. आधुनिक ट्रेन वंदेभारत इसी श्रेणी की है. देश में कुल इंजनों की संख्या 13 हजार से अधिक है.
इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव में बदला जा रहा है
भारतीय रेलवे धीरे धीरे जीरो कार्बन की ओर जा रही है. इसी को ध्यान में रखते हुए धीरे धीरे डीजल इंजनों को इलेक्ट्रिक में बदला जा रहा है. अभी 10 हजार से अधिक इलेक्ट्रिक और करीब चार हजार डीजल इंजन हैं. इस तरह 63 फीसदी इलेक्ट्रिक और 37 फीसदी डीजल इंजन हैं.
सीएनजी लोकोमोटिव भी
भारतीय रेलवे लोकोमोटिव में कई तरह के बदलाव कर चुका है. नाइट्रोजन से चलने वाला लोकोमोटिव भी तैयार हो चुका है. इसके लिए हरियाणा में प्लांट बनाया जा रहा है. जल्द ही नाइट्रोजन ट्रेन भी दौड़ेगी. वहीं, सीएनजी लोकोमोटिव भी बनाया जा चुका है. ( इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (आईसीएाफ) ने पहली बार कम्प्रेस्ड नेचुरल गैस (सीएनजी) से चलने वाली मल्टीपल यूनिट्सशुरू कीं.
सबसे शक्तिशाली लोकोमोटिव और उसकी खासियत
डब्ल्यूएजी-12बी: भारत का सबसे शक्तिशाली इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव, 12,000 हॉर्सपावर. यह 6,000 टन से अधिक वजन खींच सकता है और 120 किमी/घंटा की अधिकतम गति तक पहुंचता है. इसे मधेपुरा, बिहार में फ्रांसीसी कंपनी अल्स्टॉम के साथ बनाया गया है. यह डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर के लिए डिज़ाइन किया गया है और इसमें हेल्थहब तकनीक है, जो स्थिति-आधारित रखरखाव को सक्षम बनाती है.
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