भारत की वो 8 कंपनियां मंदी की चपेट में, जिनके नाम का चलता है सिक्का, आपके पास इनके शेयर तो नहीं?

Must Read

Last Updated:March 13, 2025, 10:55 ISTअमेरिकी मंदी की आशंकाएं, टैरिफ वॉर और कमजोर रेवेन्यू ग्रोथ के कारण भारत की टॉप 10 आईटी कंपनियों ने 88,000 करोड़ रुपये का नुकसान झेला है. टीसीएस, इंफोसिस जैसी कंपनियों के शेयर गिरे हैं. इस सेक्टर की 8 नामी कंपनि…और पढ़ेंहाइलाइट्सभारतीय आईटी कंपनियों ने 88,000 करोड़ रुपये का नुकसान झेला.TCS, Infosys, HCL Tech और Tech Mahindra मंदी की चपेट में.अमेरिकी मंदी और टैरिफ वॉर ने आईटी सेक्टर को प्रभावित किया.जिस सेक्टर को भारत की इकॉनमी का गौरव कहा जाता है, इस समय वही संकट के समय से गुजर रहा है. पिछले कुछ महीनों भारत की नामी आईटी कंपनियों के शेयरों में बड़ी गिरावट देखी गई है, जिससे निवेशकों के मन में एक डर बैठ गया है. इसके पीछे कारण हैं- अमेरिका में मंदी की आशंका, टैरिफ वार, और कमजोर रेवेन्यू ग्रोथ. इसी के चलते टॉप-10 आईटी कंपनियों ने लगभग 88,000 करोड़ रुपये का नुकसान झेला है. इसी स्थिति से निफ्टी आईटी इंडेक्स भी मंदी के गर्त में जाता नजर आ रहा है.

भारत की सबसे बड़ी सॉफ्टवेयर सर्विस निर्यातक कंपनी टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS) के शेयरों में लगभग 23% की गिरावट आई है, जिससे निवेशकों के 3.7 लाख करोड़ रुपये की संपत्ति लुढ़ग गई है. टॉप 10 आईटी कंपनियों में से आठ कंपनियां मंदी की चपेट में हैं, जिनमें इंफोसिस (Infosys), एचसीएल टेक (HCL Tech) और टेक महिंद्रा (Tech Mahindra) भी शामिल हैं. एलटीआईमाइंडट्री (LTIMindtree) सबसे ज्यादा प्रभावित हुई है, जिसके शेयरों में 33 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है. वहीं, विप्रो (Wipro) ने इस मुश्किल दौर में तुल्नात्मक रूप से बेहतर प्रदर्शन किया है, लेकिन उसके शेयर भी 16 फीसदी नीचे हैं.

हालांकि, तीसरी तिमाही (Q3) के नतीजों से थोड़ी राहत मिली थी, लेकिन उसके बाद से हालात और बिगड़ गए हैं. बढ़ते टैरिफ वार, अमेरिकी फेड द्वारा ब्याज दरों में कटौती में देरी, और मंदी की आशंका ने निवेशकों के विश्वास को हिला कर रख दिया है. बता दें कि जिन कंपनियों के शेयरों अपने पिछले हाई से 20 फीसदी से ज्यादा नीचे गिर जाते हैं, उन्हें आमतौर पर मंदी के शेयर माना जाता है.

कितना है अमेरिकी मंदी का खतराअमेरिका में मंदी का खतरा वैश्विक बाजारों के लिए एक बड़ी चिंता का विषय बना हुआ है. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए टैरिफ ने आर्थिक स्थिरता को लेकर चिंताएं बढ़ा दी हैं. विश्लेषकों का मानना है कि भू-राजनीतिक और टैरिफ संबंधी जोखिम अमेरिकी और यूरोपीय उद्यमों की शॉर्ट टर्म स्थिरता को प्रभावित कर रहे हैं, जिसका असर भारत के आईटी सेक्टर पर भी पड़ सकता है. जे.पी. मॉर्गन के मुख्य अर्थशास्त्री ने इस साल अमेरिका में मंदी की संभावना को 40 फीसदी आंका है और चेतावनी दी है कि अमेरिकी शासन में विश्वास की कमी देश की निवेश डेस्टिनेशन के रूप में छवि को नुकसान पहुंचा सकती है. इस स्थिति ने गोल्डमैन सॉक्स और मॉर्गन स्टेनली के अर्थशास्त्रियों को अमेरिकी जीडीपी विकास दर के अनुमान को क्रमशः 1.7% और 1.5% तक घटाने के लिए मजबूर किया है.

कमजोर रेवेन्यू ग्रोथग्लोबल ब्रोकरेज फर्म मॉर्गन स्टेनली ने भारत की बड़ी आईटी कंपनियों के लिए अमेरिकी डॉलर रेवेन्यू ग्रोथ के अनुमान को 100-200 आधार अंक कम कर दिया है. फर्म का मानना है कि FY26 में विकास दर 4.5% और FY27 में 6% रहने की संभावना है. विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिकी प्रशासन के टैरिफ संबंधी रुख और चल रहे भू-राजनीतिक तनाव के कारण ग्राहक “वेट-एंड-वॉच” की रणनीति अपना रहे हैं, जिससे आईटी खर्च पर निर्णय लेने में देरी हो सकती है.

AI का खतरा भी बरकरारआर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का तेजी से बढ़ना भी आईटी सर्विस इंडस्ट्री के लिए नई चुनौतियां लेकर आया है. जनरेटिव AI (जेनAI) के अपनाने से सॉफ्टवेयर निर्यातकों के लिए प्रतिस्पर्धात्मक परिदृश्य बदल सकता है. इकॉनमिक्स टाइम्स ने कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज को कोट करते हुए लिखा, FY26 में जेनAI के बढ़ते उपयोग से नई कंपनियों को फायदा होगा, जबकि पुरानी कंपनियों को चुनौती का सामना करना पड़ सकता है. AI के माध्यम से प्रोडक्टिविटी बढ़ाने का लक्ष्य कंपनियों के लिए प्राथमिकता बना हुआ है, लेकिन इससे आईटी सेवा कंपनियों के रेवेन्यू में कमी आ सकती है.

वैल्यूएशन संबंधी चिंताएंहाल ही के सुधारों के बावजूद निफ्टी आईटी का P/E रेश्यो (प्राइस टू अर्निंग्स रेश्यो) निफ्टी के P/E की तुलना में अब भी ऊंचा बना हुआ है. मोतीलाल ओसवाल के अनुसार, निफ्टी आईटी का वर्तमान प्रीमियम 37% है, जो COVID-19 के दौरान देखे गए टॉप वैल्यूएशन से भी अधिक है. विश्लेषकों का मानना है कि आईटी कंपनियों के मूल्यांकन में और गिरावट की संभावना है.

P/E रेश्यो किसी कंपनी के शेयर की कीमत और उसकी प्रति शेयर कमाई (EPS) का अनुपात होता है. यह निवेशकों को बताता है कि कंपनी की कमाई के मुकाबले शेयर कितने महंगे हैं. P/E रेश्यो निवेशकों को यह समझने में मदद करता है कि कोई शेयर ओवरप्राइस्ड है या अंडरप्राइस्ड, जिससे वे निवेश संबंधी फैसले ले सकते हैं.
Location :New Delhi,New Delhi,DelhiFirst Published :March 13, 2025, 10:54 ISThomebusinessभारत की वो 8 कंपनियां मंदी की चपेट में, जिनमें नौकरी पाने को तरसते हैं युवा

stock market, share market, market update, trading news, trade news, nifty update,bank nifty, oxbig news, oxbig news network, hindi news, hindi news, business news, oxbig hindi news

English News

- Advertisement -

More articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisement -

Latest Article

- Advertisement -