गर्त में जा रहा दीदी का पश्चिम बंगाल, न कानून व्यवस्था सही न माली हालत, लोगों की कमाई भी घटी

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नई दिल्ली. आरजी कर (RG Kar) मेडिकल कॉलेज में महिला डॉक्टर से रेप और हत्या के बाद उबर रहा पश्चिम बंगाल किसी समय में भारत का गौरव था. यहां से देश की आजादी के बड़े नेताओं ने जन्म लिया. आजादी के बाद पश्चिम बंगाल आर्थिक गतिविधियों का बड़ा सेंटर बन गया था. भारत की जीडीपी का 10 फीसदी से अधिक हिस्सा यहीं से आता था. प्रदेश में लम्बे समय तक कम्युनिस्ट पार्टी ने शासन किया. पश्चिम बंगाल की दीदी बनकर उभरीं ममता बनर्जी ने कम्युनिस्ट पार्टी को उखाड़ फेंका और अब उन्हें खुद शासन करते हुए 13 साल से अधिक का समय हो चला है. इन 13 वर्षों में भी हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं. न तो कानून-व्यवस्था में ही सुधार है और न ही आर्थिक स्तर पर तरक्की हो रही है.

संजीव सान्याल और आकांक्षा अरोड़ा की ‘रिलेटिव इकोनॉमिक परफॉर्मेंस ऑफ इंडियन स्टेटस: 1960-71 टू 2023-24‘ की रिपोर्ट पर गौर करें तो यह बात और भी पुख्ता हो जाती है कि पश्चिम बंगाल लगातार गर्त में गया है. संजीव सान्याल और आकांक्षा अरोड़ा प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य हैं. इनकी इस रिपोर्ट में बताया गया है कि फिलहाल (2023-24 में) पश्चिम बंगाल का भारत की जीडीपी में हिस्सा सिर्फ 5.6% रह गया है. यह इशारा है देश के विकास में प्रदेश की कम होती भागीदारी का. इसका और गहरा अर्थ ये भी है कि राज्य में उत्पादन भले ही बढ़ा हो, लेकिन यह अन्य राज्यों की तुलना में बहुत धीमा रहा है.

कैसे समृद्धि से गर्त की ओर गया पश्चिम बंगाल
भारत के आजादी के बाद के वर्षों में पश्चिम बंगाल देश के सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक योगदानकर्ताओं में से एक था. 1960-61 में राज्य का भारत की जीडीपी में 10.5% योगदान था, जो उसे तीसरे स्थान पर रखता था. इससे आगे सिर्फ उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र का नाम था.

इस आर्थिक समृद्धि की जड़ें कोलकाता में थीं, जो उस समय भारत का एक प्रमुख औद्योगिक केंद्र था. यहां जूट, इस्पात, वस्त्र, और रसायन इंडस्ट्री का प्रभुत्व था. 1960-61 में पश्चिम बंगाल की प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत का 127.5% थी, यानी यहां के लोग औसत भारतीय से 27.5% अधिक कमा रहे थे.

1960 के दशक में पश्चिम बंगाल का आर्थिक प्रदर्शन शानदार था, लेकिन इसके बाद राज्य की आर्थिक स्थिति धीरे-धीरे कमजोर होती गई. 1990-91 तक इसका भारत की जीडीपी में हिस्सा घटकर 7.9% रह गया. यह गिरावट जारी रही. यहां तक कि 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद भी जब देश के अन्य राज्य तेजी से विकास कर रहे थे, तब भी पश्चिम बंगाल तरक्की की राह नहीं पकड़ सका.

अभी के हालात तो बहुत खराब
2023-24 में पश्चिम बंगाल का भारत की जीडीपी में हिस्सा सिर्फ 5.6% रह गया. इस आंकड़े के साथ यह अब देश के सबसे तेजी से गिरते हुए राज्यों में से एक हो गया है. पश्चिम बंगाल की प्रति व्यक्ति आय भी इसी तरह गिरावट का शिकार हुई. 1980-81 तक राज्य की प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से कम हो चुकी थी, और 2023-24 तक यह राष्ट्रीय औसत का केवल 83.7% रह गई. यानी पश्चिम बंगाल का औसत नागरिक अब राष्ट्रीय औसत से 16.3% कम कमा रहा है.

कारोबार के अनुकूल नहीं माहौल
पश्चिम बंगाल की आर्थिक गिरावट के पीछे कई कारण हैं. सबसे प्रमुख कारणों में से एक है राजनीतिक अस्थिरता और इंडस्ट्रियल ठहराव. 1970 के दशक से राज्य में औद्योगिक अशांति, हड़तालें और राजनीतिक अस्थिरता का दौर शुरू हुआ, जिसने निवेशकों को हतोत्साहित किया और कई उद्योग बंद हो गए.

राज्य में लंबे समय तक चले वामपंथी नीतियों को भी इसका एक कारण माना जाता है. ये नीतियां श्रमिकों की सुरक्षा और शोषण को रोकने के उद्देश्य से बनाई गई थीं, लेकिन उन्होंने एक इंडस्ट्री के खिलाफ एक वातावरण बना दिया. कई व्यवसाय बंद हो गए या अन्य राज्यों में शिफ्ट हो गए, जहां व्यापार के लिए बेहतर माहौल था.

आर्थिक सुधारों को अपनाने में पिछड़ा
पश्चिम बंगाल 1991 के आर्थिक सुधारों को अपनाने में धीमा रहा. जबकि दक्षिण और पश्चिम के राज्यों ने इन सुधारों का फायदा उठाकर औद्योगिकीकरण और सर्विस क्षेत्रों में ग्रोथ की. पश्चिम बंगाल पीछे रह गया. इसके साथ ही राज्य का पूरा विकास पिछड़ गया, जिससे नए व्यवसायों को आकर्षित करने की क्षमता भी जाती रही.

Tags: GDP growth, India GDP, Mamta Banarjee, West bengal





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