नई दिल्ली. दुनिया में मंदी आने की आशंकाएं पिछले लंब समय से जताई जा रही हैं. विश्व की कुछ प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के दबाव में आने के कारण, साल 2025 में मंदी आने का खतरा और बढ गया है. किसी देश की सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में लगातार दो तिमाहियों में गिरावट आने पर कहा जाता है कि उसे देश की अर्थव्यवस्था ‘मंदी’ का शिकार हो गई हैं. अमेरिका, जर्मनी, जापान और न्यूजीलैंड सहित कई देशों की अर्थव्यवस्थाएं इस समय ठीक स्थिति में नहीं हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं और वित्तीय बाजारों में तनाव के संकेत 2025 में संभावित जोखिमों की ओर इशारा करते हैं. आगामी वर्ष चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन अमेरिका और अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं मंदी में प्रवेश करेंगी या नहीं, यह अभी स्पष्ट नहीं है.
यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी इस समय उच्च ऊर्जा कीमतों, भू-राजनीतिक तनावों और अमेरिका तथा चीन के साथ संभावित व्यापार व्यवधानों के कारण दबाव का सामना कर रहा है. इससे देश में मंदी की आशंका बढ़ रही है. ब्रिटेन की हालत भी कुछ अच्छी नहीं है. संशोधित जीडीपी आंकड़ों के अनुसार, ब्रिटेन तीसरी तिमाही में शून्य वृद्धि के साथ ठहराव की स्थिति में है, और मंदी की कगार पर खड़ा है.
जापान की हालत भी पतली दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जापान, इस वर्ष की शुरुआत में अप्रत्याशित रूप से मंदी में चली गई. ऐसा मुख्य रूप से घरेलू मांग में कमजोरी आने से हुआ. 2023 में जापान में औसत घरेलू ऋण ¥6.55 मिलियन तक बढ़ गया, जो औसत आय से अधिक है, जिससे कई परिवार उच्च ब्याज दरों पर ऋण लेने को मजबूर हुए.q
न्यूजीलैंड की जीडीपी जुलाई-सितंबर तिमाही में 1% घटी. अप्रैल-जून में भी देश की जीडीपी में 1.1% गिरावट आई. यह छह महीने की गिरावट 1991 के बाद से, COVID-19 महामारी को छोड़कर, न्यूजीलैंड की सबसे कमजोर आर्थिक प्रदर्शन को दर्शाती है. अमेरिकी अर्थव्यवस्था अभी स्थिर बनी हुई है. गोल्डमैन सॉक्स ने अगले 12 महीनों में अमेरिकी मंदी की संभावना को 20 फीसदी से घटाकर 15 फीसदी कर दिया है.
महंगाई बड़ी चिंताजूलियस बेयर के विश्लेषक भास्कर लक्ष्मीनारायण के अनुसार, “मंदी के कोई संकेत नहीं हैं. यदि बाजार और अर्थव्यवस्था अच्छा कर रहे हैं, तो मूल्य निर्धारण में कुछ तनाव हो सकता है जिससे मुद्रास्फीति बढ़ सकती है; यह इस बात का संकेत है कि अमेरिका में मंदी की बजाय मुद्रास्फीति एक बड़ी चिंता हो सकती है.
एशिया की स्थितिदूरदर्शी इंडिया फंड के राजीव अग्रवाल के अनुसार, उभरते बाजारों से पूंजी प्रवाह के कारण अमेरिकी डॉलर की मजबूती ने जापान को छोड़कर एशिया के देशों के लिए महत्वपूर्ण चुनौतियां पैदा की हैं. इंडीट्रेड कैपिटल के सुदीप बंदोपाध्याय का कहना है कि अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद वैश्विक बाजारों में अनिश्चितता बढेगी. ऐसा उनके टैरिफ बढाने के कारण होगा. इससे वैश्विक व्यापार प्रभावित होगा.
Tags: Business news, India economyFIRST PUBLISHED : December 25, 2024, 16:57 IST
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