IMF ने पाकिस्तान को पैसा तो दिया, लेकिन कड़ी चेतावनी के साथ, ज़रा-सा इधर-उधर हुए तो खेल खत्म!

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पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति लंबे समय से संकटग्रस्त रही है. विदेशी कर्ज का बोझ, कमजोर विदेशी मुद्रा भंडार और बार-बार की आर्थिक अस्थिरता ने इसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) का बार-बार सहारा लेने वाला देश बना दिया है. मई 2025 में, आईएमएफ ने पाकिस्तान के लिए 1 बिलियन डॉलर की एक और किस्त को मंजूरी दी, जो 7 बिलियन डॉलर के विस्तारित फंड सुविधा (एक्सटेंडेड फंड फैसिलिटी) का हिस्सा थी. साथ ही, 1.4 बिलियन डॉलर की रेजिलिएंस एंड सस्टेनेबिलिटी फैसिलिटी (आरएसएफ) के तहत अतिरिक्त फंडिंग की भी मंजूरी दी गई. लेकिन इस बार, आईएमएफ ने सख्त शर्तें लगाईं, जिसने पाकिस्तान की आर्थिक नीतियों और भारत के साथ उसके तनावपूर्ण संबंधों को वैश्विक मंच पर चर्चा का विषय बना दिया.

आईएमएफ ने स्पष्ट कर दिया कि पाकिस्तान को दी गई इस आर्थिक सहायता का उपयोग सरकारी बजट को सपोर्ट देने के लिए नहीं किया जा सकता. सभी फंड्स को विशेष रूप से स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान (SBP) के भंडार को मजबूत करने और बैलेंस ऑफ पेमेंट (BoP) संकट से निपटने के लिए उपयोग करना होगा. आईएमएफ ने चेतावनी दी कि इन शर्तों से कोई भी विचलन पाकिस्तान के बेलआउट प्रोग्राम को खतरे में डाल सकता है. यह शर्तें इसलिए महत्वपूर्ण थीं, क्योंकि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था गहरे संकट में थी. 2024 में उसका बाहरी कर्ज 130 बिलियन डॉलर से अधिक हो चुका था, जिसमें से एक बड़ा हिस्सा चीन के पास था. विदेशी मुद्रा भंडार केवल 15 बिलियन डॉलर के आसपास था, जो तीन महीने के आयात को भी मुश्किल से कवर कर सकता था.

भारत की आपत्ति और कूटनीतिक रणनीति

भारत ने इस बेलआउट के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया. मई 2025 में आईएमएफ की बोर्ड मीटिंग में भारत ने वोटिंग से खुद को अलग रखा और पाकिस्तान की आर्थिक सहायता पर गंभीर सवाल उठाए. भारत ने दो मुख्य चिंताएं जताईं. पहली, पाकिस्तान का आईएमएफ कार्यक्रमों का खराब रिकॉर्ड, और दूसरी, इन फंड्स के आतंकवाद के लिए दुरुपयोग की संभावना. भारत ने बताया कि 1989 के बाद से पिछले 35 वर्षों में पाकिस्तान ने 28 बार आईएमएफ से फंड लिए, लेकिन उसने कभी भी सुधारों को पूरी तरह लागू नहीं किया. भारत ने यह भी आरोप लगाया कि ये फंड्स सीधे या परोक्ष रूप से सीमा पार आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए इस्तेमाल हो सकते हैं.

भारत ने विशेष रूप से 22 अप्रैल 2025 को कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले का हवाला दिया, जिसमें 26 पर्यटकों की मौत हो गई थी. इस हमले ने भारत-पाकिस्तान तनाव को चरम पर पहुंचा दिया. भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान और पाक-अधिकृत कश्मीर (पीओके) में नौ आतंकी ठिकानों पर सटीक हमले किए, जिसमें लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठनों के 70 आतंकियों को मार गिराया गया. भारत ने दावा किया कि पाकिस्तान की सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई आतंकवाद को समर्थन दे रही हैं, और आईएमएफ फंड्स का दुरुपयोग इस तरह की गतिविधियों के लिए हो सकता है.

फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स और भारत की रणनीति

भारत ने अपनी चिंताओं को आईएमएफ तक सीमित नहीं रखा. उसने फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) के मंच पर भी पाकिस्तान को फिर से ग्रे लिस्ट में डालने की जोरदार पैरवी शुरू की. एफएटीएफ एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है जो मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकने के लिए काम करती है. 2022 में पाकिस्तान को एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट से हटाया गया था, जिसके बाद उसे अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से फंड मिलना आसान हो गया था. लेकिन भारत ने तर्क दिया कि पाकिस्तान ने एफएटीएफ की शर्तों को केवल कागजी तौर पर पूरा किया, और वास्तविक धरातल पर आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकने में नाकाम रहा.

भारत ने दस्तावेजों के साथ दावा किया कि पिछले 28 वर्षों में पाकिस्तान को कल्याणकारी योजनाओं के लिए दिए गए फंड्स का एक बड़ा हिस्सा हथियारों की खरीद और सैन्य गतिविधियों में डायवर्ट किया गया. भारत ने इस सबूत को IMF और FATF के साथ शेयर किया और यूरोपीय देशों, अमेरिका और अन्य सहयोगी देशों के साथ इस मुद्दे पर चर्चा की. भारत का मानना था कि अगर पाकिस्तान को फिर से एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में डाला जाता है, तो उसे आईएमएफ और विश्व बैंक जैसे संस्थानों से फंड मिलना मुश्किल हो जाएगा, जिससे उसकी आतंकी गतिविधियों पर लगाम लग सकती है.

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