इस साल केंद्र सरकार अपना विनिवेश (Disinvestment) टार्गेट पूरा कर ही लेगी. इसे पूरा करने के लिए सरकार दो बड़ी सरकारी कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी कम करेगी. पहली कंपनी है देश की सबसे बड़ी बीमाकर्ता एलआईसी (LIC) तो आईडीबीआई (IDBI) बैंक दूसरी कंपनी है. इन दोनों से सरकार को करीब 80,000 करोड़ रुपये तक मिलने के आसार हैं. सरकार ने 2025 के बजट में विनिवेश के जरिए 47,000 करोड़ रुपये जुटाने का टार्गेट रखा था.मनीकंट्रोल की एक रिपोर्ट के अनुसार, सरकार के एक सीनियर अधिकारी ने बताया कि इस साल IDBI बैंक की बिक्री पूरी हो जाएगी. इससे 40,000–50,000 करोड़ रुपये आ सकते हैं. उन्होंने कहा कि इतनी रकम ही बजट के टार्गेट को पूरा करने के लिए काफी है. अब सरकार ने विनिवेश और एसेट मोनेटाइजेशन से आने वाले पैसे को एक ही कैटेगरी में शामिल किया है, जिसे बजट में “मिस्लेनियस कैपिटल रिसीट्स” कहा जाता है.
LIC में 3 फीसदी हिस्सेदारी की बिक्री 2025-26 की चौथी तिमाही में होने की उम्मीद है. इससे सरकार को 20,000–30,000 करोड़ रुपये तक मिल सकते हैं. यह बिक्री OFS यानी ऑफर फॉर सेल के तहत होगी. अधिकारी ने बताया कि सिर्फ LIC की यह बिक्री ही बजट के टार्गेट को पार कर देगी. इससे यह साफ है कि सरकार को अपने पब्लिक सेक्टर कंपनियों के शेयरों के लिए बाजार में अच्छी मांग की उम्मीद है.
डिपार्टमेंट ऑफ इनवेस्टमेंट एंड पब्लिक एसेट मैनेजमेंट (DIPAM) को इन सौदों से बड़ी उम्मीदें हैं. उनके अनुसार इस साल के सौदे बहुत “हाई क्वालिटी” वाले हैं, क्योंकि बाजार का माहौल भी अच्छा है और कुछ कंपनियों को बेचना काफी आसान माना जा रहा है.
मझगांव से सरकार को मिले 3,673 करोड़
सरकार ने 2025-26 के लिए विनिवेश की शुरुआत कर दी है. हाल ही में मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (MDL) की OFS से सरकार को 3,673.42 करोड़ रुपये मिले. आगे चलकर कोल इंडिया, LIC, रेल विकास निगम लिमिटेड (RVNL) और गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (GRSE) जैसी कंपनियों की OFS भी लाइन में हैं.
IDBI बैंक की स्ट्रैटजिक सेल
IDBI बैंक की स्ट्रैटजिक सेल काफी समय से पेंडिंग थी, लेकिन अब यह अंतिम स्टेज में है. सरकार और LIC की कुल 60.72 फीसदी हिस्सेदारी को एक स्ट्रैटजिक बायर को बेचा जाएगा. अधिकारियों के अनुसार ड्यू डिलिजेंस प्रोसेस लगभग पूरा हो चुका है.
पिछले फाइनेंशियल ईयर में सरकार को सिर्फ 30,000 करोड़ रुपये की कमाई विनिवेश से हुई थी, लेकिन इस बार अधिकारियों को उम्मीद है कि ये बड़े सौदे सरकार की फाइनेंशियल स्थिति को मजबूत बनाएंगे और बजट के लिए एक अच्छा सपोर्ट बनेंगे.
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