नई दिल्ली. भारत की अर्थव्यवस्था का लोहा पिछले कुछ समय से वैश्विक रेटिंग एजेंसियां और संस्थान मानते रहे हैं. भारतीय अर्थव्यवस्था का गुणगान करने वालों में अब संयुक्त राष्ट्र का नाम भी जुड़ गया है. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में भारत को उम्मीद की किरण बताया गया है. संयुक्त राष्ट्र की विश्व आर्थिक स्थिति और संभावना, डब्ल्यूईएसपी की छमाही रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था मौजूदा वित्त वर्ष में 6.3 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान है, जो कि सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे ज्यादा है. इसी के साथ यह गति 2026 में जारी रहने की उम्मीद जताई गई है, जिसमें वृद्धि दर 6.4 प्रतिशत रहने का अनुमान है. इसके विपरीत, बढ़ते व्यापारिक तनाव, नीति अनिश्चितता और निवेश में गिरावट से वैश्विक दृष्टिकोण धीमा बना हुआ है.
इस रिपोर्ट को संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग (डीईएसए) के आर्थिक विश्लेषण और नीति प्रभाग के भीतर ग्लोबल इकोनॉमिक मॉनिटरिंग डिविजन ने तैयार किया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक आर्थिक वृद्धि दर अब 2025 में 2.4 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जो 2024 में 2.9 प्रतिशत से कम है और जनवरी के पूर्वानुमान से 0.4 प्रतिशत कम है. वैश्विक चुनौतियों के बीच भारत न केवल अपने प्रमुख विकास आंकड़ों के लिए बल्कि अपनी प्रगति की गहराई के लिए भी खड़ा है, जिसमें तेजी से बढ़ते पूंजी बाजार और मजबूत मैन्युफैक्चरिंग से लेकर रिकॉर्ड तोड़ निर्यात और तेजी से बढ़ते रक्षा क्षेत्र शामिल हैं. ये लाभ सॉलिड नीतिगत विकल्पों, मजबूत घरेलू मांग और भारत के आर्थिक प्रक्षेपवक्र में बढ़ते वैश्विक विश्वास में निहित हैं.
मजबूत घरेलू मांग दे रही सहारा
भारत की वृद्धि मजबूत घरेलू मांग और लगातार सरकारी खर्च से जुड़ी है. इन कारकों ने स्थिर रोजगार को मजबूत किया है और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में मदद की है, जिसके 2025 में भारतीय रिजर्व बैंक की लक्ष्य सीमा के भीतर रहते हुए 4.3 प्रतिशत तक गिरने की उम्मीद है. फाइनेंशियल मार्केट भी आशावादी हैं, जहां निवेशकों के निरंतर विश्वास के कारण शेयर सूचकांकों में शानदार वृद्धि देखी गई है.
अनुकूल नीतियों और मजबूत बाहरी मांग की मदद से मैन्युफैक्चरिंग एक्टिविटी बढ़ रही है. निर्यात, विशेष रूप से रक्षा उत्पादन जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में, लगातार बढ़ रहा है. साथ में, ये संकेतक दिखाते हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था न केवल मजबूत है, बल्कि अनिश्चित वैश्विक माहौल में भी आगे बढ़ रही है. भारत के पूंजी बाजारों ने आर्थिक विकास को गति देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
भारत ने बचत को निवेश में बदला
घरेलू बचत को निवेश में बदलकर भारत के पूंजी बाजारों ने वित्तीय प्रणाली को मजबूत किया है. दिसंबर 2024 तक, शेयर बाजार रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया. भू-राजनीतिक तनाव और घरेलू अनिश्चितताओं के बावजूद इसने कई उभरते बाजारों से बेहतर प्रदर्शन किया. प्राथमिक बाजार भी उतना ही सक्रिय रहा है. इस मजबूत बाजार ने हुंडई और एलजी जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भारत में अपनी स्थानीय सहायक कंपनियों को सूचीबद्ध करने के लिए आकर्षित किया है. यह बदलाव संकेत देता है कि भारत अब केवल एक बाजार नहीं बल्कि ग्लोबल फाइनेंशियल इकोसिस्टम में एक रणनीतिक भागीदार है.
मैन्युफैक्चरिंग का जीवीए हुआ दोगुना
भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर ने पिछले एक दशक में प्रभावशाली वृद्धि दर्ज की है. सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के नेशनल अकाउंट स्टैटिक्स के अनुसार, स्थिर मूल्यों पर मैन्युफैक्चरिंग का ग्रॉस वैल्यू एडेड (जीवीए) लगभग दोगुना हो गया है, जो 2013-14 में 15.6 लाख करोड़ रुपए से बढ़कर 2023-24 में अनुमानित 27.5 लाख करोड़ रुपए हो गया है.
भारत का कुल निर्यात 2024-25 में रिकॉर्ड 824.9 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया, जो 2023-24 में 778.1 बिलियन डॉलर से 6.01 प्रतिशत अधिक है. यह 2013-14 में 466.22 बिलियन डॉलर से एक महत्वपूर्ण छलांग है, जो पिछले दशक में निरंतर वृद्धि को दर्शाता है.
रक्षा उत्पादन में बढोतरी
भारत का रक्षा उत्पादन वित्त वर्ष 2023-24 में एक नया मील का पत्थर छू गया, जिसमें स्वदेशी विनिर्माण का मूल्य बढ़कर 1,27,434 करोड़ रुपए हो गया. यह 2014-15 में 46,429 करोड़ रुपए की तुलना में 174 प्रतिशत की शानदार वृद्धि को दर्शाता है.
देश के रक्षा निर्यात में भी असाधारण वृद्धि देखी गई है. 2013-14 में 686 करोड़ रुपए के मामूली निर्यात से 2024-25 में निर्यात बढ़कर 23,622 करोड़ रुपए हो गया. यह पिछले दशक की तुलना में 34 गुना वृद्धि है. भारतीय रक्षा उत्पाद अब लगभग 100 देशों को भेजे जा रहे हैं, जो सामरिक रक्षा उपकरणों के ग्लोबल सप्लायर के रूप में भारत की बढ़ती प्रतिष्ठा को दर्शाता है.
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