भारत-चीन समेत दुनियाभर के सेंट्रल बैंक इस मेटल से भर रहे अपना खजाना, क्या है वजह?

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नई दिल्ली. भारत और चीन की तगड़ी खरीदारी के चलते सोने की कीमतों में बीते महीनों में रिकॉर्ड उछाल देखने को मिला है. वैश्विक अनिश्चितताओं और भू-राजनीतिक तनावों के बीच भारत और चीन की ओर से सोने को सुरक्षित निवेश के तौर पर तेजी से अपनाया जा रहा है. यही वजह है कि जून 2025 तक सोना 14.7% की तेजी के साथ 2,294 डॉलर प्रति औंस तक पहुंच चुका है, जबकि 12 अप्रैल को ये 2,431.52 डॉलर के सर्वोच्च स्तर पर गया था. भारत में भी सोने की कीमतें जनवरी 2024 में जहां 60,000 रुपये प्रति 10 ग्राम थीं, वो जून 2025 में 71,132 रुपये तक पहुंच गईं. अप्रैल में रिकॉर्ड 73,958 रुपये प्रति 10 ग्राम का आंकड़ा छुआ गया.सोने को आर्थिक और राजनीतिक संकट के समय एक सुरक्षित विकल्प (Safe Haven) माना जाता है. वैश्विक मंदी की आशंका, महंगाई, डॉलर में उतार-चढ़ाव और अमेरिका-चीन ट्रेड तनाव के चलते निवेशकों का रुझान सोने की तरफ बढ़ा है. यही नहीं, उच्च ब्याज दरों और शेयर बाजार के महंगे वैल्यूएशन के बीच पोर्टफोलियो डाइवर्सिफिकेशन के लिए भी गोल्ड को अहम माना जा रहा है.

आरबीआई के पास कितना सोना

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने मार्च 2025 तक 879.6 टन सोना जमा कर लिया है, जो उसके कुल विदेशी मुद्रा भंडार का 11.7% है. 2024 में RBI ने 72.6 टन और 2025 में अब तक 57.5 टन सोना खरीदा है. खास बात ये है कि 2024 में RBI ने 102 टन सोना इंग्लैंड से वापस भारत मंगवाया और अब लगभग 512 टन (58%) सोना देश में ही सुरक्षित रखा गया है. रूस-यूक्रेन युद्ध और पश्चिमी देशों द्वारा रूस के डॉलर रिजर्व फ्रीज किए जाने के बाद भारत ने सोने को रणनीतिक संपत्ति के रूप में महत्व देना शुरू किया है.

भारत में घरेलू स्तर पर भी सोने की मजबूत मांग बनी हुई है. देश में 24,000 से 25,000 टन तक निजी स्वामित्व में सोना है. 87% से ज्यादा घरों में सोना मौजूद है, जो मुख्य रूप से शादी-ब्याह और त्योहारों में इस्तेमाल होता है. 2024 में भारत की गोल्ड डिमांड में 8% की वृद्धि दर्ज की गई. हालांकि, ऊंची कीमतों के चलते अब हल्के गहनों और निवेश उत्पादों में रुचि बढ़ी है. अप्रैल 2025 में भारत का गोल्ड इंपोर्ट 3.1 अरब डॉलर रहा. मुद्रा की स्थिरता और चालू खाता घाटे को नियंत्रित करने के मकसद से भी RBI की गोल्ड पॉलिसी अहम मानी जा रही है. FY24 में भारत का कुल गोल्ड इंपोर्ट 45.4 अरब डॉलर रहा, जो चालू खाता घाटे को 1-2% तक बढ़ा सकता है. इसी के चलते 2024 में गोल्ड पर इंपोर्ट ड्यूटी 15% तक कर दी गई थी, लेकिन मांग में कोई बड़ी कमी नहीं आई है.

चीन में सोना

चीन की बात करें तो पीपल्स बैंक ऑफ चाइना (PBoC) के पास मार्च 2025 तक 2,279.6 टन सोना है, जो उसके फॉरेन रिजर्व का 4.9% हिस्सा है. चीन लगातार 17 महीने तक सोना खरीदता रहा है और सिर्फ 2023 में 224.88 टन और 2024 की पहली तिमाही में 27.06 टन सोना जोड़ा है. इसके साथ ही चीन ने अमेरिका के ट्रेजरी बॉन्ड में अपनी हिस्सेदारी घटा दी है. फरवरी 2024 में चीन ने 22.7 अरब डॉलर के अमेरिकी बॉन्ड बेचे और अब उसकी होल्डिंग घटकर 775 अरब डॉलर रह गई है.

चीन के उपभोक्ता भी कमजोर युआन, रियल एस्टेट संकट और शेयर बाजार की अनिश्चितता के बीच गोल्ड में निवेश को प्राथमिकता दे रहे हैं. 2024 की पहली तिमाही में चीन में गोल्ड बार और सिक्कों की मांग 68% तक बढ़ी है. साथ ही, PBoC द्वारा चलाए गए प्रमोशनल कैंपेन और इनोवेटिव उत्पादों जैसे गोल्ड बीन्स ने भी खुदरा मांग को बढ़ाया है.

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भारत और चीन की संयुक्त मांग अब वैश्विक गोल्ड डिमांड का लगभग 50% है. गोल्डमैन सैक्स का अनुमान है कि 2025 के अंत तक सोना 2,700 डॉलर प्रति औंस तक पहुंच सकता है, वहीं जेपी मॉर्गन इसे 2,500 डॉलर तक जाते हुए देख रहा है. हालांकि, भारत जैसे देशों के लिए बढ़ती कीमतें चिंता की वजह भी हैं, खासकर ग्रामीण इलाकों में जहां सोना बचत का पारंपरिक माध्यम रहा है. गोल्ड की यह दौड़ न केवल निवेश की रणनीति है बल्कि वैश्विक आर्थिक व्यवस्था में डॉलर पर निर्भरता को चुनौती देने की कवायद भी है. BRICS देशों के बीच डॉलर के विकल्प पर चर्चा और गोल्ड-आधारित रिजर्व संपत्तियों की खोज, इस बदलते ट्रेंड का संकेत देती है.

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