Last Updated:January 16, 2025, 15:49 ISTमहंगाई कई तरह की होती है जैसे मांग-जनित, लागत-जनित, मुद्रास्फीति, संरचनात्मक आदि. यह वस्तुओं और सेवाओं के दामों में तेजी से हो रही बढ़ोतरी है जिसपर RBI नजर रखता है और इसे 4-6% के दायरे में रखने का प्रयास करता है. महंगाई को काबू करने का काम भारत में आरबीआई को सौंपा गया है.हाइलाइट्सवस्तुओं और सेवाओं के दामों में तेज वृद्धि महंगाई है.RBI यह सुनिश्चित करता है कि महंगाई 4-6% सालाना रहे.मांग बढ़ने, लागत बढ़ने, या मुद्रा आपूर्ति बढ़ने से महंगाई आती है.नई दिल्ली. वस्तु और सेवाओं के दाम में अचानक तेज बढ़ोतरी को महंगाई कहा जाता है. हर देश कीमतों को एक तय दायरे में रखने का प्रयास करता है ताकि जनता को इससे परेशानी न हो. भारत में यह काम आरबीआई को सौंपा गया है. भारतीय रिजर्व बैंक यह सुनिश्चित करता है कि महंगाई में बस 4-6 फीसदी सालाना वृद्धि ही हो. इससे अधिक महंगाई बढ़ने पर आरबीआई सतर्क हो जाता है और इसे काबू करने के लिए विभिन्न प्रयास किये जाते हैं.
महंगाई भी कोई एक प्रकार की नहीं होती इसलिए इससे निपटने के तरीके भी अलग-अलग होते हैं. आज हम आपको बताएंगे कि महंगाई कितने तरह की होती है और इनका मतलब क्या होता है.
1. मांग-संचालित महंगाई (Demand-Pull Inflation)यह तब होती है जब वस्तुओं और सेवाओं की मांग उत्पादन क्षमता से अधिक हो जाती है. उदाहरण के लिए, त्योहारों के समय या आर्थिक विकास के दौरान जब लोगों की क्रय शक्ति बढ़ जाती है, तो मांग ज्यादा होने से महंगाई बढ़ जाती है.
2. लागत-संचालित महंगाई (Cost-Push Inflation)इस प्रकार की महंगाई तब होती है जब उत्पादन लागत बढ़ने के कारण वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें बढ़ जाती हैं. इसका मुख्य कारण कच्चे माल, मजदूरी या ऊर्जा लागत में वृद्धि हो सकती है.
3. मुद्रास्फीति (Monetary Inflation)जब बाजार में मुद्रा की आपूर्ति अधिक हो जाती है, लेकिन यह वस्तुओं और सेवाओं की उपलब्धता से मेल नहीं खाती, तो मुद्रास्फीति पैदा होती है. यह महंगाई केंद्रीय बैंक की नीतियों और सरकार की वित्तीय नीतियों से प्रभावित होती है.
4. संरचनात्मक महंगाई (Structural Inflation)यह महंगाई तब होती है जब किसी अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक समस्याएं, जैसे परिवहन, वितरण या उत्पादन तंत्र की कमियां, कीमतों में वृद्धि का कारण बनती हैं.
5. कोर महंगाई (Core Inflation)इसमें खाद्य और ऊर्जा जैसे अस्थिर वस्तुओं की कीमतों को छोड़कर अन्य वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में वृद्धि को मापा जाता है.
6. हाइपरमहंगाई (Hyperinflation)यह अत्यधिक और तेज महंगाई है, जिसमें कीमतें बहुत कम समय में तेजी से बढ़ती हैं. हाइपरमहंगाई आमतौर पर आर्थिक संकट या राजनीतिक अस्थिरता के कारण होती है.
7. सौम्य महंगाई (Mild Inflation)यह नियंत्रित और धीमी गति से होने वाली महंगाई है, जो सामान्यतः आर्थिक विकास के लिए आवश्यक मानी जाती है.
8. ओपन और छिपी हुई महंगाई (Open and Suppressed Inflation)ओपन महंगाई वह होती है, जब कीमतें खुलकर बढ़ती हैं और उपभोक्ता इसे सीधे महसूस करते हैं. वहीं, छिपी हुई महंगाई तब होती है जब कीमतें स्थिर रहती हैं, लेकिन वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता या मात्रा घट जाती है.
9. घरेलू और आयातित महंगाई (Domestic and Imported Inflation)घरेलू महंगाई तब होती है जब देश के अंदर स्थानीय कारणों से महंगाई बढ़ती है. आयातित महंगाई तब होती है जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि के कारण देश में महंगाई होती है.
10. गठित या संरचित महंगाई (Creeping or Gradual Inflation)यह धीमी और लंबे समय तक चलने वाली महंगाई है, जो सामान्य आर्थिक गतिविधियों का हिस्सा मानी जाती है.
Location :New Delhi,DelhiFirst Published :January 16, 2025, 15:49 ISThomebusinessएक नहीं कई तरह की होती है महंगाई, सबके हैं अलग-अलग मतलब, क्या जानते हैं आप?
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