डॉलर की बॉसगीरी खत्म कर रहा एशिया, दूसरी करेंसी में हो रहे ट्रेड, अमेरिका के रुतबे पर चोट!

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जब भी किसी को विदेश में पैसा भेजना होता है, तब पहले रुपये को डॉलर में कन्वर्ट कराना पड़ता है. फिर डॉलर से उस देश की करेंसी में बदलना पड़ता है, जिस देश में भेजा गया है. यानी दो बार कन्वर्ट कराना पड़ता है. दो बार करेंसी बदलवाने में फीस के तौर पर एक्स्ट्रा पैसा भी चुकाना पड़ता है. अब दुनिया धीरे-धीरे इस झंझट से बाहर निकलने की कोशिश कर रही है. कई देश और कंपनियां अब सीधा लेन-देन करना चाहते हैं. डॉलर को बीच में लाए बिना ही इस प्रक्रिया को पूरा करना चाह रहे हैं. जैसे-जैसे ग्लोबल ट्रेड में अनिश्चितता बढ़ रही है और डॉलर की स्थिति डगमगा रही है, वैसे-वैसे कई देशों को ये बदलाव जरूरी महसूस हो रहा है.

ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, आजकल दुनिया के कई बैंक और ब्रोकर इस कोशिश में लगे हैं कि डॉलर के बिना भी अंतरराष्ट्रीय लेन-देन किए जा सकें. अभी तक जब दो देशों की करेंसी का लेन-देन होता था, तो ज़्यादातर बार डॉलर को बीच में लाना पड़ता था. मसलन, अगर एक मिस्र की कंपनी को फिलीपींस की मुद्रा (पेसो) चाहिए, तो पहले वह अपनी करेंसी को डॉलर में बदलेगी और फिर डॉलर से पेसो खरीदेगी. लेकिन अब कई कंपनियां सीधे मिस्र की मुद्रा से पेसो में लेन-देन करना चाहती हैं, जिससे डॉलर की जरूरत ही ना पड़े.

अमेरिका पर भरोसा नहीं रहा!इस बदलाव का कारण यह है कि बहुत से देशों को अब अमेरिका की नीतियों पर भरोसा नहीं रह गया है. अमेरिका की व्यापार नीतियां अब उतनी स्थिर नहीं रहीं. कई बार अमेरिकी डॉलर को राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल किया गया है. खासकर रूस पर लगे प्रतिबंधों के बाद यह मुद्दा खूब उछला है. इससे कई देशों को डर लगने लगा है कि अगर भविष्य में उनके साथ भी ऐसा हुआ तो वे क्या करेंगे, क्योंकि वे अमेरिकी डॉलर पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं.

चीन ने शुरू कर दिया कामब्लूमबर्ग की इस रिपोर्ट को कैथरीन बोसले, हैरी सुहारटोनो, और ताओ झांग ने तैयार किया है. इन्होंने लिखा है कि चीन इस बदलाव का नेतृत्व कर रहा है. वह अपनी करेंसी “युआन” को अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ज़्यादा इस्तेमाल में लाना चाहता है. इसके लिए चीन ने ब्राज़ील, इंडोनेशिया और कई खाड़ी देशों के साथ सीधा करेंसी लेन-देन करने के समझौते किए हैं. चीन ने एक अलग पेमेंट सिस्टम (Cross-Border Interbank Payment System) भी बनाया है, जिसका इस्तेमाल शुरू हो चुका है.

इसका असर भारत जैसे विकासशील देशों पर भी पड़ रहा है. इंडोनेशिया में एक विदेशी बैंक ने युआन से लेन-देन करने के लिए एक अलग टीम बनाई है, ताकि स्थानीय कंपनियों की मांग पूरी की जा सके. यूरोप की कई कंपनियां भी अब यूरो और युआन के बीच सीधे सौदे करना चाहती हैं. ये सब संकेत हैं कि दुनिया अब धीरे-धीरे “डॉलर-मुक्त” व्यापार की तरफ बढ़ रही है.

डॉलर का पुल अब और नहीं!हालांकि, अभी भी डॉलर का इस्तेमाल बहुत बड़े पैमाने पर होता है. हर दिन होने वाले करेंसी लेन-देन में लगभग 13% तो सिर्फ दो देशों की करेंसी के बीच डॉलर के ज़रिए होते हैं. यानी डॉलर एक पुल की तरह काम करता है. लेकिन अब उस पुल के दूसरी तरफ लोग अपनी-अपनी नाव चलाना चाहते हैं.

युआन आधारित लेन-देन अभी महंगे हैं, लेकिन युआन पर मिलने वाले सस्ते लोन इस महंगे सौदे को भी फायदेमंद बना देते हैं. कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि डॉलर के मुकाबले युआन से लोन लेना तीन गुना तक सस्ता हो सकता है.

चीन के करीब जा रहे हैं देश2025 तक चीन का दक्षिण-पूर्व एशिया, यूएई और सऊदी अरब में व्यापार बहुत तेजी से बढ़ा है, जबकि अमेरिका और यूरोप के साथ व्यापार में उतनी बढ़ोतरी नहीं हुई. इससे भी यह साफ है कि अब दुनिया के कई देश अमेरिका से दूर और चीन के करीब जा रहे हैं.

इस बीच, अमेरिका में ट्रंप की वापसी और उनके डॉलर को लेकर दिए गए बयान भी इस चिंता को और गहरा करते हैं. उन्होंने खुद डॉलर की ताकत पर सवाल उठाए हैं और अमेरिकी फेडरल रिजर्व की आलोचना की है. इससे भी डॉलर की स्थिरता को लेकर दुनिया भर में चिंता बढ़ी है.

हालांकि, विशेषज्ञ मानते हैं कि डॉलर की जगह किसी और मुद्रा का लेना इतना आसान नहीं है. इसमें समय लगेगा. लेकिन जो बदलाव शुरू हो चुका है, वह बताता है कि दुनिया की अर्थव्यवस्था अब एक नए मोड़ पर खड़ी है.

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