चीन में लगातार घट रहा स्टील प्रोडक्शन, भारत पर होगा सीधा असर, कितना फायदा कितना नुकसान? जानिए

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चीन में इन दिनों स्टील का उत्पादन लगातार घट रहा है, और इसका सीधा असर उस कच्चे माल पर पड़ रहा है जिससे स्टील बनता है- यानी लौह अयस्क (Iron Ore). मूडीज रेटिंग्स की मई 2025 की एक रिपोर्ट के अनुसार, आने वाले 12 से 18 महीनों के दौरान लौह अयस्क की कीमतें 80 से 100 अमेरिकी डॉलर प्रति टन के बीच रह सकती हैं. इसकी वजह दो हैं- एक तो चीन में स्टील की मांग और उत्पादन में गिरावट, और दूसरी ओर वैश्विक बाजार में लौह अयस्क की सप्लाई बढ़ना. चीन दुनिया का सबसे बड़ा लौह अयस्क खरीदने वाला देश है. वह पूरी दुनिया के समुद्री व्यापार का करीब दो-तिहाई हिस्सा अकेले खरीदता है. ऐसे में उसकी मांग में आई गिरावट का असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा.

इस स्थिति का असर भारत पर पड़ सकता है, क्योंकि हम लौह अयस्क का एक बड़ा निर्यातक देश हैं. भारत खासकर ओडिशा, कर्नाटक और गोवा जैसे राज्यों से चीन को बड़ी मात्रा में लौह अयस्क भेजता है. लेकिन अब जब चीन में स्टील का उत्पादन कम हो रहा है, तो वहां से नए ऑर्डर आने की संभावना भी घट रही है. इससे भारत की खनन कंपनियों जैसे एनएमडीसी (NMDC) और वेदांता (Vedanta) की आय में गिरावट आ सकती है. इसके अलावा, जब वैश्विक बाजार में लौह अयस्क की कीमतें गिरती हैं, तो कंपनियों को प्रति टन कम पैसे मिलते हैं, जिससे उनका मुनाफा भी घट सकता है. ऐसे में भारत को चीन के अलावा जापान, दक्षिण कोरिया और अन्य देशों में नए ग्राहक ढूंढने की जरूरत होगी. हालांकि नए बाजार यदि खोजे जाएं तो कुछ हद तक राहत दे सकते हैं, लेकिन उन बाजारों की मांग कभी भी चीन जितनी बड़ी नहीं होगी.

केवल नुकसान ही नहीं, कुछ फायदे भी

यह स्थिति भारत के लिए पूरी तरह नुकसानदेह नहीं है. कुछ मायनों में यह हमारी घरेलू स्टील इंडस्ट्री के लिए फायदे का सौदा भी हो सकती है. भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा स्टील उत्पादक देश है. अगर लौह अयस्क की कीमतें गिरती हैं, तो टाटा स्टील, जेएसडब्ल्यू स्टील और सेल जैसी कंपनियों को सस्ता कच्चा माल मिलेगा. इससे उनके उत्पादन की लागत घटेगी और वे घरेलू तथा अंतरराष्ट्रीय बाजारों में और अधिक प्रतिस्पर्धी बन सकेंगी.

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साथ ही, जब भारत में लौह अयस्क की उपलब्धता बढ़ेगी (क्योंकि निर्यात घटेगा), तो इसका इस्तेमाल देश के भीतर बुनियादी ढांचे के निर्माण में किया जा सकेगा. ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसी योजनाओं के तहत बनने वाले बड़े प्रोजेक्ट्स को गति मिलेगी. लेकिन अगर वैश्विक बाजार में स्टील की कीमतें भी नीचे जाती हैं, तो इससे भारतीय कंपनियों के मुनाफे पर भी दबाव पड़ सकता है.

राज्यों पर भी पड़ेगा असर

यह पूरी स्थिति भारत के ओडिशा, कर्नाटक और छत्तीसगढ़ पर भी असर डालेगी, जहां लौह अयस्क का खनन बड़े पैमाने पर होता है. यदि निर्यात कम हुआ तो इन राज्यों की आमदनी पर असर पड़ेगा. खनन से जुड़ी नौकरियां भी खतरे में आ सकती हैं और राज्य सरकारों को मिलने वाला रॉयल्टी टैक्स भी घट सकता है. इसके अलावा, खनन कंपनियां भविष्य में नई खदानों की खोज या आवश्यक बुनियादी ढांचे पर निवेश करने से बच सकती हैं, जिससे लंबे समय में उत्पादन पर नकारात्मक असर हो सकता है.

नए बाजार तलाशने होंगे सरकार को

ऐसे में भारत सरकार के लिए यह समय बेहद महत्वपूर्ण है. अब जरूरत है कि सरकार रणनीतिक तरीके से नए निर्यात बाजार तलाशे. जापान, दक्षिण कोरिया और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ व्यापारिक संबंधों को और मजबूत किया जा सकता है. साथ ही, देश के भीतर स्टील उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए ‘गति शक्ति’ जैसी योजनाओं को तेज किया जा सकता है. सरकार चाहे तो निर्यात शुल्क में कटौती कर सकती है या उन राज्यों को वित्तीय सहायता दे सकती है जिनका खनन क्षेत्र प्रभावित हो रहा है. इसके अलावा, अगर भारत उच्च गुणवत्ता वाला लौह अयस्क तैयार करने पर ध्यान दे, तो वह अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपनी स्थिति मजबूत बनाए रख सकता है.

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