दुनिया को हरित ऊर्जा (ग्रीन एनर्जी) की ओर बढ़ाने और स्मार्ट टेक्नोलॉजी के लिए डेटा सेंटर बनाने के लिए बड़ी मात्रा में खनिजों (Minerals) की जरूरत है. इन खनिजों पर चीन अपनी पकड़ लगातार मजबूत कर रहा है. चीनी कंपनियां वैश्विक स्तर पर बड़ी खदानों में निवेश कर रही हैं, जिससे कई महत्वपूर्ण खनिजों पर उनका दबदबा बढ़ रहा है. यह स्थिति न केवल पश्चिमी देशों के लिए चिंता का विषय है, बल्कि ग्लोबल सप्लाई चेन पर भी इसका असर पड़ने के पूरे-पूरे आसार हैं.
आज की वैश्विक अर्थव्यवस्था में खनिजों की भूमिका बेहद अहम है, खासकर ग्रीन एनर्जी और स्मार्ट टेक्नोलॉजी में. चीन ने इसे अच्छे से पहचानते हुए खनिज संसाधनों पर अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है. पिछले साल चीनी कंपनियों ने लगभग 16 अरब डॉलर (1,30,000 करोड़ रुपये) का निवेश वैश्विक खदानों में किया, जो पिछले एक दशक का सबसे बड़ा निवेश है. इनमें अफगानिस्तान, घाना, और जाम्बिया जैसे देशों में तांबा, सोना और अन्य खनिजों की खदानें शामिल हैं.
तांबे पर विशेष फोकसचीन ने तांबे जैसे खनिज पर विशेष ध्यान दिया है, जो इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) और ग्रीन एनर्जी से जुड़े उपकरणों के लिए महत्वपूर्ण है. 2023 में, चीनी कंपनियों ने अपने कुल विदेशी निवेश का 60 फीसदी तांबे में डाला है. इसके अलावा, इलेक्ट्रिक-व्हीकल बैटरी के लिए जरूरी लिथियम और कोबाल्ट जैसे मिनरल्स में भी चीनी कंपनियों का निवेश लगातार बढ़ रहा है. उदाहरण के लिए, गनफेंग लिथियम ने अर्जेंटीना से ऑस्ट्रेलिया तक फैले अपने खनिज क्षेत्र का विस्तार किया है.
चीनी खनन कंपनियां अब दुनिया के सबसे बड़े खनिज उत्पादकों में गिनी जाती हैं. ज़िजिन (Zijin) माइनिंग, जो सर्बिया से लेकर सुरिनाम तक खनिज संपत्तियों का मालिक है, अब बीएचपी जैसे दिग्गज खनन समूह के बराबर उत्पादन कर रहा है. सीएमओसी (CMOC), एक अन्य चीनी कंपनी, अब दुनिया की सबसे बड़ी कोबाल्ट उत्पादक बन चुकी है.
उत्पादन बढ़ा रहा, इस्तेमाल भीचीन न केवल इन खनिजों का उत्पादन बढ़ा रहा है, बल्कि अपने घरेलू इंडस्ट्री के लिए इनका उपयोग भी कर रहा है. बीते साल के पहले 9 महीनों में चीन ने तांबे का 12 फीसदी, कोबाल्ट (Cobalt) का 21 फीसदी और बॉक्साइट (Bauxite) का 20 फीसदी अधिक आयात किया है. इन खनिजों का उपयोग चीन में बैटरी, सौर पैनल और इलेक्ट्रिक वाहनों के उत्पादन में किया जा रहा है.
यह सारा खनिज चीन की बड़ी इंडस्ट्री की जरूरत के लिए धातु उत्पादन के आधार को सपोर्ट करता है, जो किसी भी अन्य देश से कहीं आगे है. रिफाइन्ड मिनरल्स की बात करें तो चीन बैटरी-ग्रेड लिथियम का लगभग 60%, निकेल का 65%, कोबाल्ट का 70% और नियोडिमियम जैसे दुर्लभ तत्वों की 90 फीसदी वैश्विक आपूर्ति करता है. कुछ चीनी खनन कंपनियां सप्लाई चेन में और आगे बढ़ गई हैं, जैसे ज़िजिन अब कॉपर फॉइल भी बनाता है. इन धातुओं का उपयोग चीन के कारखानों में किया जाता है, जो दुनिया के लगभग आधे इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs), 80 फीसदी लिथियम-आयन बैटरी और सोलर पैनल का निर्माण करते हैं.
अमेरिका को क्यों चिंतित होने की जरूरत?पश्चिमी देश, विशेषकर अमेरिका, इस स्थिति से चिंतित हैं. अमेरिका अपने खनिजों का आधे से अधिक हिस्सा आयात करता है, जिसमें चीन उसकी आपूर्ति का बड़ा हिस्सा है. अमेरिका ने मिनरल्स के भंडारण और घरेलू खदानों के निर्माण के लिए योजनाएं शुरू की हैं. हालांकि, अभी भी इसे चीन पर निर्भरता से पूरी तरह से मुक्त होने में समय लगेगा. चीन का यह कदम वैश्विक खनिज आपूर्ति शृंखला पर उसका दबदबा और मजबूत कर रहा है. अगर पश्चिमी देश समय पर सही कदम नहीं उठाते, तो यह निर्भरता और बढ़ सकती है.
Tags: America vs china, China and america, China CompanyFIRST PUBLISHED : January 2, 2025, 14:19 IST
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