चीन की इकॉनमी इस समय टेंशन में दिख रही है. वजह है अमेरिका के साथ ट्रेड वॉर. इस झगड़े के तहत मैन्युफैक्चरिंग और एक्सपोर्ट के आर्डर काफी घट गए हैं. इतने कम हो गए हैं कि कोविड-19 महामारी के बाद से सबसे निचले स्तर पर पहुंच गए हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा चीनी सामानों पर 145 फीसदी तक बढ़ाए गए अमेरिकी टैरिफ ने चीन के एक्सपोर्ट की डिमांड को तेजी से घटाया है. चीन ने अपने टैरिफ और व्यापार प्रतिबंधों के साथ जवाबी कार्रवाई की है, लेकिन उससे उसी की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंच रहा है, जो काफी हद तक एक्सपोर्ट पर निर्भर है. बीजिंग बढ़ते खर्च के जरिए विकास को प्रोत्साहित करने की कोशिश कर रहा है, लेकिन अर्थशास्त्रियों ने 2025 में चीन की विकास दर के पूर्वानुमान को घटाकर केवल 3.5 फीसदी कर दिया है.
चीन के राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो ने अप्रैल 2025 में बताया कि कारखानों की गतिविधि का सूचकांक (PMI) 49 तक गिर गया, जो मार्च के 50.5 से बहुत कम था. अगर यह सूचकांक 50 से नीचे जाता है, तो इसका मतलब है कि कारखानों में कामकाज सिकुड़ रहा है. निर्यात ऑर्डर का सूचकांक तो और भी नीचे, 44.7 तक गिर गया, जो 2022 के बाद सबसे कम था. यह स्थिति कोविड-19 के बाद से सबसे खराब थी.
चीन के लाखों मजदूर भूख की कगार पर!चीन की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा निर्यात पर टिका था. चीन अमेरिका को खासकर काफी ज्यादा निर्यात करता है. लेकिन ट्रंप के नए टैरिफ ने अमेरिकी आयातकों को ऑर्डर रद्द करने या टालने पर मजबूर कर दिया. इससे चीन के लाखों कारखाना मजदूरों की आजीविका खतरे में पड़ गई. गोल्डमैन सैक्स का अनुमान है कि 1 से 2 करोड़ नौकरियां अमेरिकी खरीद पर निर्भर थीं.
चीन के लीडर शी जिनपिंग ने दृढ़ता दिखाई. उन्होंने कहा, “चीन कभी भी अमेरिका के सामने घुटने नहीं टेकेगा.” उन्होंने अमेरिकी सामानों पर भी 100 फीसदी से ज्यादा टैरिफ लगाए और बैटरी व हाई-टेक उत्पादों के लिए जरूरी खनिजों के निर्यात पर रोक लगा दी. बुधवार के ताजा आंकड़ों से पता चलता है कि अडिग रणनीति से चीन की अर्थव्यवस्था को शॉर्ट टर्म में नुकसान होगा, जो पिछले साल अपनी ग्रोथ के लगभग एक तिहाई के लिए निर्यात पर निर्भर थी. अर्थशास्त्रियों ने 2025 में चीन की आर्थिक वृद्धि के अनुमान को 5 फीसदी से घटाकर 3.5 फीसदी कर दिया.
क्या था ट्रंप का मकसददूसरी ओर, ट्रंप का मकसद था अमेरिका के व्यापार घाटे को कम करना और नौकरियां वापस लाना. उन्होंने न केवल चीन, बल्कि स्टील, एल्यूमिनियम, कार, और दवाओं पर भी टैक्स लगाए. लेकिन कई अर्थशास्त्री मानते थे कि भारी-भरकम टैक्स लगाना सही तरीका नहीं है.
इस ट्रेड वॉर का असर सिर्फ चीन और अमेरिका तक सीमित नहीं रहा. दक्षिण कोरिया और जापान के एक्सपोर्ड भी कम हुए, और दोनों देशों के बीच जहाजों से माल ढुलाई लगभग ठप हो गई. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने चेतावनी दी कि यह वॉर वैश्विक अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाएगा.
क्या चीन और अमेरिका समझौता कर पाएंगे? कुछ संकेत मिले कि अमेरिका टैरिफ कम करने को तैयार है, और चीन ने भी कुछ अमेरिकी सामानों पर टैक्स माफ किए हैं. लेकिन दोनों देशों के बीच समाधान के लिए कोई ठोस बातचीत शुरू नहीं हुई.
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