पाकिस्‍तान से युद्ध के बाद ब्रह्मोस की बढ़ी डिमांड, एक मिसाइल की कितनी कीमत, नाम के पीछे रोचक कहानी

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नई दिल्‍ली. ऑपरेशन सिंदूर के जरिये भारत ने न सिर्फ पाकिस्‍तान को धूल चटाई, बल्कि भारतीय कंपनियों के लिए कमाई के रास्‍ते भी खोल दिए हैं. इस ऑपरेशन में इस्‍तेमाल किए गए हथियारों का लोहा पूरी दुनिया ने माना और अब कई देश इन्‍हें खरीदने की लाइन में लग गए हैं. खासकर सुपरसोनिक मिसाइल ब्रह्मोस को. इस मिसाइल को भारतीय वैज्ञानिकों ने रूस के साथ मिलकर तैयार किया है और इसकी क्षमताओं को लेकर दुनियाभर में चर्चा हो रही है.

ब्रह्मोस की डिमांड की खूबियों की वजह से बढ़ती जा रही है. सबसे खास बात ये है कि यह मिसाइल स्‍टील्‍थ टेक्‍नोलॉजी के साथ एडवांस्‍ड गाइडेंस सिस्‍टम से भी लैस है और यह आसानी से दुश्‍मन देश के रडार को धोखा दे सकती है. यह मिसाइल 10 मीटर से लेकर 15 किलोमीटर तक की ऊंचाई पर उड़ान भरने में सक्षम है. ब्रह्मोस मिसाइल को ‘फायर एंड फर्गेट’ मिसाइल भी कहा जाता है. इसका मतलब है कि एक बार इसे फायर कर दिया गया तो फिर आपको कोई चिंता करने की बात नहीं, अपने लक्ष्‍य को भेदने के बाद ही यह मिसाइल रुकेगी. एक ब्रह्मोस मिसाइल की कीमत करीब 34 करोड़ रुपये है.

फिलिपींस ने खरीदी 3,225 करोड़ की मिसाइल

पिछले महीने यानी अप्रैल में फिलिपींस को 37.5 करोड़ डॉलर (करीब 3,225 करोड़ रुपये) की ब्रह्मोस मिसाइल की सप्‍लाई की गई है. फिलिपींस ने यह ऑर्डर साल 2022 में ही दिया था और अब उसे आपूर्ति भी कर दी गई है. ब्रह्मोस के उत्‍पादन में 50.5 फीसदी हिस्‍सेदारी भारतीय कंपनियों के पास है, जबकि 49.5 फीसदी हिस्‍सा रूस के पास. इसका पहला सफल परीक्षण 12 जून, 2001 को किया गया था और तब से अब तक यह काफी एडवांस्‍ड हो चुकी है.

क्‍यों नाम पड़ा ब्रह्मोस?

इस मिसाइल का नाम सुनकर ज्‍यादातर लोगों को यही लगता होगा कि इसे भारत के भगवान ब्रम्‍हा के नाम पर रखा गया है. लेकिन, असल में ऐसा नहीं है. डीआरडीओ ने इस मिसाइल को जमीन, समंदर और हवा तीनों ही जगह पर मार करने लायक सक्षम बनाया है. इसका मतलब है कि इस मिसाइल को तीनों ही जगहों से फायर किया जा सकता है. इसे सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल की श्रेणी में रखा गया है. इसका मतलब है कि मिसाइल ध्‍वनि से भी ज्‍यादा तेज गति से और लंबी दूरी तक जा सकती है. अब बात करते हैं कि इसका ब्रह्मोस नाम कैसे पड़ा. इसे दो नदियों के नाम पर रखा गया है. भारत की ब्रह्मपुत्र नदी से ब्रम्‍ह शब्‍द और रूस की मोक्‍स्‍वा नदी से मोस शब्‍द मिलाकर इसे ब्रह्मोस नाम दिया गया है.

कहां-कहां से आ रहे ऑर्डर

वियतनाम : चीन के साथ तनातनी के बाद वियतनाम इस मिसाइल को खरीदने की होड़ में सबसे आगे खड़ा है. उसने 70 करोड़ डॉलर (लगभग 6 हजार करोड़ रुपये) का ऑर्डर दिया है, ताकि चीन के खिलाफ समंदर में सुरक्षा को और मजबूत बनाया जा सके.

मलेशिया : ब्रह्मोस को खरीदने की होड़ में मलेशिया भी है और उसने अपने सुखोई Su-30MKM फाइटर जेट विमान के लिए यह मिसाइल खरीदने का ऑर्डर दिया है.

दक्षिण-पूर्व एशियाई देश : भारत की इस सुपरसोनिक मिसाइल को खरीदने की रेस में दक्षिण पूर्व एशियाई देश थाईलैंड, सिंगापुर और ब्रूनेई भी शामिल हो गए हैं और उनकी भारत सरकार के साथ बातचीत चल रही है.

लैटिन अमेरिकी देश : वैसे तो अमेरिका हथियारों का सबसे बड़ा विक्रेता है, लेकिन लैटिन अमेरिकी देशों ने भी भारतीय मिसाइल में रुचि दिखाई है. ब्राजील, चिली, अर्जेंटीना और वेनेजुएला ने अपने तटीय क्षेत्रों को सुरक्षित बनाने के लिए नेवल वॉरशिप पर लोड करने के लिए ब्रह्मोस मिसाइल खरीदने का ऑर्डर दिया है.

मध्‍य एशियाई देश : मौजूदा समय में सबसे ज्‍यादा अशांत मध्‍य एशियाई देश ही हैं और यहां के कई देशों ने ब्रह्मोस मिसाइल के लिए ऑर्डर दिया है. इसमें एजिप्‍ट, सऊदी अरब, यूएई, कतर और ओमान जैसे देशों ने भारत सरकार से बातचीत शुरू कर दी है.

अफ्रीकी देश : दक्षिण अफ्रीका और बुल्‍गेरिया ने भी भारत की इस एडवांस्‍ड मिसाइल को खरीदने में रुचि दिखाई है और इन दोनों की बातचीत लगभग निर्णातक स्‍तर पर पहुंच चुकी है.

यूपी के सीएम ने भी खूबी को सराहा

ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत ने पाकिस्‍तान के नूर खान व अन्‍य एयरबेस पर ब्रह्मोस मिसाइलें दागी थी. तस्‍वीरों में भी देखा गया कि इन मिसाइलों ने पाकिस्‍तान में किस कदर तबाही मचा दी. इसके बाद यूपी के सीएम योगी आदित्‍यनाथ की एक तस्‍वीर भी सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रही थी, जिसमें वह ब्रह्मोस मिसाइल के साथ नजर आ रहे हैं. सीएम योगी ने कहा था, ‘अगर आपने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान ब्रह्मोस मिसाइल की ताकत नहीं देखी तो इस बारे में पाकिस्‍तान से पूछ लीजिए.’

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