3 महीने पहले
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बजट भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने विकसित भारत के लिए 9 प्राथमिकताओं की घोषणा की, लेकिन स्वास्थ्य को इनमें जगह नहीं मिली है।
सरकार ने कैंसर की 3 अहम दवाओं पर कस्टम ड्यूटी जीरो कर दी है। अब इन दवाओं के आयात पर किसी तरह का टैक्स नहीं लगेगा। इसकी वजह से कैंसर का इलाज सस्ता होगा। इसके अलावा वित्त मंत्री ने नए मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल खोलने की भी बात कही है।
इस बजट से आयुष्मान भारत योजना में बड़ी राहत की उम्मीद की जा रही थी, लेकिन ऐसी कोई बड़ी घोषणा नहीं हुई है।
सेहत को जरूरत से 73% कम बजट दे रही सरकार
- 2017 की नेशनल हेल्थ पॉलिसी में 2024-25 तक हेल्थ सेक्टर पर GDP का 2.5% खर्च करने का टारगेट था। इसमें केंद्र और राज्य सरकार, दोनों के खर्च शामिल थे।
- इस टारगेट को पूरा करने के लिए इस साल हेल्थ सेक्टर पर कुल 8.2 लाख करोड़ रुपए खर्च किया जाना चाहिए था। इसमें राज्य सरकार को 60% और बाकी 40% केंद्र सरकार को खर्च करना था।
- इस हिसाब से केंद्र का हेल्थ बजट हर साल 3.3 लाख करोड़ रुपए होना चाहिए था, जबकि इस बजट में 91 हजार करोड़ करोड़ रुपए दिए गए। यह जरूरत का सिर्फ 27% है।

हेल्थ बजट पर खर्च बढ़ाने के मामले में UPA आगे, NDA पीछे
2004 में भारत का हेल्थ बजट 9200 करोड़ रुपए था और 2013 में 27,147 हजार करोड़ रुपए। यानी, UPA के दस साल में 295% हेल्थ बजट बढ़ा। यानी, एवरेज ग्रोथ रेट 29.5% रहा।
जबकि मोदी सरकार के 10 साल यानी, 2014 से 2023 के बीच हेल्थ बजट 245% बढ़ा। यानी, एवरेज ग्रोथ रेट 24.5% रहा। इस तरह NDA, UPA सरकार के मुकाबले हेल्थ बजट पर 4% कम खर्च करती है।

सेहत का 53% खर्च आम लोगों की जेब से
बजट में हेल्थ सेक्टर को जरूरी हिस्सेदारी नहीं मिलने का सीधा असर आम लोगों की जेब पर पड़ता है। वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत में सेहत पर होने वाले कुल खर्च में से 53% लोगों को अपनी जेब से देना पड़ता है।
जबकि हाई इनकम वाले विकसित देशों में भी आम लोग अपनी सेहत पर 10 से 15% ही खर्च करते हैं। बाकी का खर्च सरकार उठाती है।

नेपाल, भूटान जैसे देश भारत से ज्यादा सेहत पर खर्च करते हैं
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत सरकार और आम लोगों ने मिलकर 2023 में सेहत पर GDP की 3.2% रकम खर्च की। इसी दौरान अमेरिका में यह आंकड़ा 16% रहा। भारत के पड़ोसी नेपाल, चीन और भूटान भी इस मामले में आगे नजर आते हैं। सेहत पर खर्च के मामले में भारत सिर्फ पाकिस्तान-बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देश से आगे है।

एडमिट होने से 30 गुना ज्यादा खर्च दवाओं पर
CMIE-CPHS सर्वे के अनुसार जब एक भारतीय इलाज पर 100 रुपए खर्च करता है तो उसमें से 42.3 रुपए दवाओं पर जाता है। डॉक्टर की फीस, हॉस्पिटलाइजेशन और मेडिकल टेस्ट को मिलाकर भी सिर्फ 8.6 रुपए ही खर्च होता है।
रिपोर्ट के मुताबिक बीमार पड़ने के बाद हेल्थ एन्हांसमेंट सर्विस और दवाओं का खर्च जेब पर सबसे ज्यादा बोझ डालते हैं।


किसी भी बीमारी की स्थिति में अस्पताल में भर्ती होने पर औसत खर्च।

बजट में फंड की कमी, इसका सीधा असर हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर पर
देश में हेल्थ सर्विस को सही ढंग से चलाने के लिए जितने पैसों की जरूरत है, बजट में उसका 27% ही मिल पाया है। यह जितनी जरूरत है उससे 73% कम है। देश में हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर का हाल भी इसी आंकड़े जैसा है। देश के अस्पतालों में जितने बेड की जरूरत है, उसके मुकाबले 37% बेड ही उपलब्ध हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार 1 लाख आबादी पर कम-से-कम 100 MBBS डॉक्टर उपलब्ध होने चाहिए। भारत में 1 लाख आबादी पर 70 से 75 डॉक्टर ही उपलब्ध हैं। अमेरिका में इतनी ही आबादी पर 255 डॉक्टर हैं।
अगर आयुर्वेद, होम्योपैथी और प्राकृतिक चिकित्सक को शामिल भी कर लें तो भारत में डॉक्टरों का आंकड़ा WHO के मानक को पार कर सकता है। WHO अपनी गणना में केवल MBBS डॉक्टरों को ही शामिल करता है।

स्केचः संदीप पाल
ग्राफिक्स: कुणाल शर्मा, विपुल शर्मा
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