Utkarsh Sharma Exclusive Interview: गदर और गदर 2 जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्मों में काम कर चुके एक्टर उत्कर्ष शर्मा की फिल्म ‘वनवास’ 20 दिसंबर को रिलीज हुई है. ये फिल्म पिता और बच्चों के रिश्तों पर आधारित है. फिल्म में अहम रोल निभा रहे उत्कर्ष ने एबीपी न्यूज से फिल्म पर और फिल्म की अलग कहानी पर इंट्रेस्टिंग बातें कीं.
उन्होंने बातचीत में फैमिली, बुजुर्गों के लिए प्यार और इज्जत, और सिर पर माता-पिता का हाथ होने पर इमोशनल बात बता डाली. उन्होंने कहा कि वो लोग बेहद लकी हैं जिनके माता-पिता अब भी उनके साथ हैं.
बुजुर्गों को रिस्पेक्ट देने की बात पर क्या बोले उत्कर्ष?
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक, पूरी दुनिया में साल 2050 तक करीब दो तिहाई पॉपुलेशन 60 साल की उम्र के लोगों की हो जाएगी. ऐसी कई रिपोर्ट्स हैं जिनमें इग्जैक्ट संख्या तो नहीं है, लेकिन ये बात साफ है कि लाखों बुजुर्ग अपना बुढ़ापा अकेलेपन में काटने के लिए मजबूर हैं.
हर साल हजारों की संख्या में कोर्ट में ऐसे केस पहुंचते हैं जब बुजुर्ग अपने ही बच्चों से गुजारा भत्ता और रिस्पेक्ट पाने के लिए गुहार लगाते हैं. जब ये बात हमने उत्कर्ष से की क्योंकि उनकी फिल्म वनवास भी बुजुर्गों और बच्चों के रिश्ते पर आधारित है, तो उन्होंने इसके जवाब में कहा-
”अगर आप 2005 के पहले देखें तो ज्यादा जॉइंट फैमिली थीं, आज वो कम हो गई हैं. अगर मैं मुंबई की ही बात करूं तो लोग सुनकर अचंभे में आ जाते हैं कि कोई जॉइंट फैमिली में रह रहा है. पहले तो बहुत नॉर्मल था जॉइंट फैमिली में रहना लेकिन अब वो नॉर्मल नहीं रह गया है.”
क्या वजहे हैं जो बच्चे नहीं दे पा रहे बुजुर्गों को टाइम?
उत्कर्ष ने इसकी वजहों पर बात करते हुए बदलते हुए लाइफस्टाइल को इसका जिम्मेदार ठहराया. उन्होंने कहा, ”जैसे-जैसे टेक्नॉलजी बढ़ी है और डिमांडिंग जॉब्स बढ़ी हैं जिनकी वजह से वर्कलाइफ बैलेंस नहीं बचा है. इनकी वजह से टाइम नहीं मिल पाता और जो थोड़ा सा भी वक्त मिलता है वो फोन में चला जाता है.”
उत्कर्ष ने आगे कहा, ”आजकल लोग यूट्यूब और इंस्टाग्राम पर क्विक एंटरटेनमेंट ले ले रहे हैं, पहले तो कम से कम टीवी पर लोग फैमिली के साथ बैठकर टाइम बिताते थे. अब तो न्यूक्लियर फैमिली का भी न्यूक्लियर हो चुका है लोग ऐटम से प्रोटॉन और न्यूट्रॉन में बंट चुके हैं (यानी फैमिली छोटी से छोटी होती जा रही हैं.)”
क्या यूथ की है ये गलती?
उत्कर्ष शर्मा ने बताया कि- ”इसमें यूथ को पूरी तरह से जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है क्योंकि वो जानबूझकर ऐसा नहीं कर रहा है कि वो अपने माता-पिता को टाइम नहीं दे पा रहा है. बल्कि वो उनसे हो जा रहा है. ये उनकी भी गलती नहीं है. अल्टीमेटली वो जो काम कर रहे हैं वो भी माता-पिता के लिए ही कर रहे हैं. इसी वजह से बैलेंस बना भी हुआ है कि बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो अपने बुजुर्गों को ख्याल रखते हैं. बस उनके पास टाइम नहीं बचा है.”
रामायण और महाभारत के आदर्शों पर बोले उत्कर्ष शर्मा
उत्कर्ष शर्मा ये भी कहते हैं कि वो लोग बहुत भाग्यशाली हैं जो अपने पैरेंट्स के साथ जी पाते हैं. बहुत से लोग ऐसा नहीं कर पाते क्योंकि ज्यादतर लोगों अपनी मिडिल एज में ही अपने माता-पिता को खो देते हैं. उन्होंने कहा कि हमारी परंपरा रही है कि हम अपने बुजुर्गों का सम्मान करें. यही महाभारत और रामायण भी सिखाया गया है, बस उस पर थोड़ी सी धूल जम गई है.
माता-पिता हैं ऊपर वाले का आशीर्वाद
उत्कर्ष ने ये भी बताया कि सिर्फ आपके माता-पिता और फैमिली है जो आपके पैदा होते ही आपको मिल जाते हैं. वरना बाकी सारी चीजें तो आपको कमानी ही पड़ती हैं. घर और गाड़ी तो आप दूसरा ले सकते हों, फैमिली दूसरी नहीं मिलती और न ही माता-पिता. उन्होंने फिल्म के बारे में भी यही बताया कि इस फिल्म में यही बात एंटरटेनिंग वे में समझाई गई है.
कानून ने दिया है बुजुर्गों को विशेष अधिकार
सीनियर सिटिजन एक्ट 2007 के मुताबिक, बुजुर्गों को दो विशेष अधिकार मिले हैं. पहला ये कि अगर संतान उन्हें गुजारे के लिए खर्च नहीं देती तो वो उनसे हर महीने भत्ता पाने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं. वहीं दूसरा अधिकार ये हैकि बच्चे बुजुर्गों को घर से निकाल नहीं सकते, जबकि बुजुर्गों को ये अधिकार है कि परेशान करने वाली बालिग संतान को वो घर से निकाल सकते हैं. इसके लिए बुजुर्गों को या तो कोर्ट जाना होगा या फिर एसडीएम से शिकायत करनी होगी.
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