उन्हें यह फिल्म बनाने का विचार कैसे आया। इस बारे में उन्होंने बताया कि इस फिल्म पर उनकी अपनी जिंदगी की भी छाप है। 2002 में हिंदू कॉलेज में पढ़ाई के सिलसिले में वह दिल्ली आए। इससे पहले वह कोलकाता, मेघालय और देहरादून में रह चुके हैं। इन सभी जगहों में उन्हें भी अपने रंग के कारण कई बार मज़ाक और कई बार अपमान का शिकार होना पड़ा।
By Navodit Saktawat
Publish Date: Sun, 18 May 2025 04:57:56 PM (IST)
Updated Date: Sun, 18 May 2025 05:10:05 PM (IST)
क्या डार्क कॉमेडी के ज़रिए ‘काला सच’ भी बताया जा सकता है? 30 मई को रिलीज़ होने वाली नवोदित डायरेक्टर दिबाकर दास रॉय की फिल्म ‘दिल्ली डार्क’ दरअसल ऐसी ही कोशिश है। पत्रकार प्रेरणा कुमारी से बातचीत में फिल्म के निर्देशक रॉय ने बताया कि दिल्ली की पृष्ठभूमि पर बनी यह फिल्म नाइजीरिया के छात्र माइकल ओकेके की कहानी है जिसे भारत की राजधानी में एमबीए की पढ़ाई और फिर यहीं बसने के अपने सफर के दौरान नस्लीय भेदभाव और अश्वेत रंग के प्रति दुराग्रह का सामना करना पड़ता है।
- अपने फिल्मी सफर के बारे में दिबाकर ने बताया कि अपने कॉलेज के दौरान उन्होंने थियेटर में काम किया। इसके बाद उन्होंने विज्ञापन के क्षेत्र में काम किया।
- 2011 में उन्होंने अपने दोस्तों के साथ प्रोडक्शन हाउस शुरू किया। इसके बाद छिटपुट काम करते हुए और विदेशी प्रोडक्शन टीम्स के लिए परिवहन और लॉजिस्टिक संभालते हुए आज वह फिल्म निर्देशक बनने के मुकाम तक पहुंचे हैं।
- फिल्मी दुनिया से पुराना संबंध नहीं होने के कारण इस सफर में कई दिक्कतें भी हुईं लेकिन ऐसे लोग भी मिले जिन्होंने ‘कनेक्शन्स’ के बजाय कॉन्टेंट को तरज़ीह दी।
- रॉय ने बताया कि इस सफर में कई बार वह अवसाद के दौर से भी गुज़रे लेकिन धैर्य और परिजनों-मित्रों के सहयोग से वह इससे उबर गए।
- कामकाज और निजी जिंदगी के बीच संतुलन के बारे में उनका कहना है कि हमारे पास ऐसे कई लोगों के उदाहरण हैं जिन्होंने अपने काम के लिए पूरी जिंदगी समर्पित कर दी।
- फिर भी वह इस मामले में सम्यक् दृष्टिकोण के पक्षधर है। उनका मानना है कि हमारी जिंदगी हमारे कामकाज या हमारे जुनून से काफी बड़ी है।
कॉर्पोरेट में हर आदमी की एक निश्चित जिम्मेदारी होती है
- बता दें दिवाकर राय ने दिल्ली डार्क फिल्म कॉर्पोरेट स्टुडियोज़ के बजाय अपने दम पर बनाई है।
- स्वतंत्र फिल्म निर्माण के बारे में उन्होंने बताया कि कॉर्पोरेट में हर आदमी की एक निश्चित जिम्मेदारी होती है।
- वहीं खुद फिल्म बनाने के कारण उन्हें इससे जुड़े छोटे-बड़े हर काम में दखल देना पड़ता।
- दिल्ली डार्क मुंबई फिल्म फेस्टिवल में पहले ही काफी सुर्खियां बटोर चुकी है।
- इसका टालिन ब्लैक नाइट्स फिल्म फेस्टिवल में भी प्रीमियर हुआ है।
- इसमें 73 देशों की फिल्में दिखाई गई हैं।
- फिल्म को समीक्षकों और आम लोगों दोनों ने ही काफी पसंद किया।
प्रेरणा कुमारी, पत्रकार
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