मेहता ने कहा कि आतंकवाद एक बीमारी की तरह है और हमें इससे आंख में आंख डालकर लड़ना होगा।
फिल्म बनाने पर निर्देशक पर उठे थे सवाल
हंसल मेहता (Hansal Mehta) ने इंस्टाग्राम पर पोस्ट शेयर करते हुए कैप्शन में लिखा, “’शाहिद’, ‘ओमेर्टा’ और ‘फराज’ सिर्फ फिल्में नहीं थीं। वे उस समय के बारे में थीं, जिसमें हम रह रहे हैं, सांस ले रहे हैं। ये फिल्में राज्य प्रायोजित आतंक, कट्टरपंथ और युवाओं को बरगलाकर हिंसा में धकेलने के बारे में बात करती हैं। ‘ओमेर्टा’ और ‘फराज’ में हमने जो घटनाएं दिखाईं, वो खौफनाक घटना पहलगाम से मिलती हैं। ‘ओमेर्टा’ ने उन ताकतों को लेकर बेबाक नजरिया पेश किया जो ऐसे जघन्य कृत्यों को पोषित करती हैं। ‘फराज’ की कहानी दिल दहला देने वाली है और बताती है कि कैसे मासूमियत को निशाना बनाया जाता है। ‘शाहिद’ सुधार की अपील थी, हमारे युवाओं को नफरत का शिकार होने से पहले वापस लाने की बात थी।“
पोस्ट में मेहता ने बताई आपबीती; आलोचकों को दिखाया आइना
उन्होंने आगे बताया, “मेरा जवाब है नहीं, ये कहानियां एक ऐसे सिस्टम के बारे में हैं, जो घृणा और भय के साथ धर्मों का नाम लेकर सीमाओं को पार करती हैं। एक ऐसी व्यवस्था जो विभाजन को बढ़ावा देती है। एक ऐसी व्यवस्था जो युवाओं का ब्रेनवॉश करती है, खून-खराबे का महिमामंडन करती है और आतंक को सामान्य बनाती है।“
मेहता ने अपनी पोस्ट में आगे कहा कि हमें इन चीजों को अनदेखा नहीं करना है, बल्कि उसका सामना करना है। उन्होंने कहा, “क्या बीमारी को नकारना या इससे मुंह मोड़ना जागरूकता है? मेरा मानना है कि यह कायरता है, जो हमारे लिए खतरनाक है। हमें मुंह मोड़ना बंद कर देना चाहिए। हमें इस घृणा, इस बीमारी की आंखों में आंखें डालकर देखना चाहिए। तभी हम ठीक होंगे और बदलाव आ सकेगा।”
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