4 जुलाई 1916 को पुरानी दिल्ली में जन्मी नसीम बानो ने 1930 और 1940 के दशक में अपनी खूबसूरती और अभिनय की ताकत से सिनेमा जगत को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। जब हिन्दी सिनेमा में स्वर्णलता, मुमताज शांति और नूरजहां सरीखी अभिनेत्रियों का बोलबाला था, तब भी नसीम की चमक फीकी नहीं पड़ी। गजब की खूबसूरत थीं, इस बात का जिक्र साहित्यकार, उपन्यासकार सआदत हसन मंटो ने अपनी एक रचना में भी किया था।
भारत की पहली स्टाइल आइकन
नसीम बानो सिर्फ खूबसूरत ही नहीं थीं, बल्कि वह उस जमाने की सबसे स्टाइलिश अभिनेत्रियों में भी गिनी जाती थीं। उन्हें भारत की पहली स्टाइल आइकन भी कहा जाता है। उनकी बेटी सायरा बानो ने भी मां के नक्शे कदम पर चलते हुए फिल्मों में खूब नाम कमाया।
18 जून को हिंदी सिने जगत की मशहूर हस्ती की पुण्यतिथि है। नसीम बानो का जन्म रोशन आरा बेगम के रूप में एक ऐसे परिवार में हुआ, जहां कला और संगीत की गहरी जड़ें थीं। उनकी मां चमियान बाई, जिन्हें शमशाद बेगम के नाम से भी जाना जाता था, उस दौर की मशहूर गायिका और तवायफ थीं। नसीम की परवरिश दिल्ली में हुई, जहां उन्होंने क्वीन मैरी हाई स्कूल में पढ़ाई की। उनकी मां चाहती थीं कि वह डॉक्टर बनें, लेकिन नसीम का दिल तो सिनेमा में बसता था, और उनकी धड़कन उसी के लिए धड़कती थी।
नसीम की असली पहचान; जूते उतारकर प्रवेश
नसीम की असली पहचान 1939 में आई सोहराब मोदी की फिल्म ‘पुकार’ से बनी, जिसमें उन्होंने महारानी नूरजहां का किरदार निभाया। इस फिल्म का प्रभाव इतना गहरा था कि दर्शक सिनेमा हॉल में जूते उतारकर प्रवेश करते थे, मानो वे मुगल दरबार में कदम रख रहे हों।
समय की रूढ़ियों को तोड़ा
नसीम बानो की कहानी न केवल एक अभिनेत्री की है, बल्कि एक ऐसी महिला की है, जिसने अपने समय की रूढ़ियों को तोड़ा और भारतीय सिनेमा में अमिट छाप छोड़ी।
नसीम का सपना था कि वह भी बड़े पर्दे पर चमकें। इस सपने को हकीकत में बदलने की शुरुआत तब हुई, जब बॉम्बे की एक यात्रा के दौरान सोहराब मोदी ने उन्हें अपनी फिल्म ‘खून का खून’ में अभिनय के लिए चुना। हालांकि, नसीम की मां नहीं चाहती थीं कि उनकी लाडली अभिनय की दुनिया में कदम रखे। मां के विरोध के बावजूद नसीम ने भूख हड़ताल कर अनुमति हासिल की, और इस तरह उनके सिनेमाई सफर की शुरुआत हुई।
सायरा बताती हैं, “वह सिर्फ एक मां नहीं थीं, बल्कि एक ऐसी शख्सियत थीं, जिन्होंने मुझे जीवन में आगे बढ़ने का उद्देश्य दिया और असीम प्यार लुटाया।” नसीम का करियर 1950 के दशक तक चला। उन्होंने न केवल अपने अभिनय से बल्कि अपनी सादगी, मेहनत और नए प्रयोग से सिनेमा जगत को समृद्ध किया। 18 जून 2002 को 85 वर्ष की आयु में मुंबई में उनका निधन हो गया, लेकिन विरासत आज भी हिंदी सिनेमा के मुरीदों में जिंदा है।
सोर्स: आईएएनएस
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