हंसल मेहता ने पुराना दर्द किया साझा
हंसल मेहता ने बताया कि उनकी फिल्म दिल पे मत ले यार!! के एक डायलॉग को लेकर राजनीतिक दल के कार्यकर्ताओं ने उन पर हमला किया था। उनका चेहरा काला कर दिया गया, उनका ऑफिस तहस-नहस कर दिया गया, और यह सब 20 राजनीतिक हस्तियों, 10,000 से अधिक दर्शकों और मूकदर्शक बनी मुंबई पुलिस के सामने हुआ।
मेहता ने कहा, “इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि सत्ता में कौन है। ये लोग जब चाहें आक्रामक हो सकते हैं और जब चाहें दोस्ताना रवैया अपना सकते हैं, यह सब उनके राजनीतिक और निजी स्वार्थों के लिए होता है।”
कलाकारों ने दिखाई यूनिटी
बुधवार को हंसल मेहता की पोस्ट पर कई कलाकारों और फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोगों ने रिएक्शन दिया। उन्होंने कहा कि उन्होंने इस घटना को एक पीड़ित की तरह नहीं, बल्कि यह दिखाने के लिए साझा किया कि 25 साल बाद भी हालात नहीं बदले हैं।
“हम हमेशा बेवकूफ बनाए जाते हैं”
मेहता ने कहा कि यह केवल सत्ता पक्ष बदलने का मामला नहीं है, बल्कि पूरी राजनीतिक व्यवस्था ही एक जैसी है। उन्होंने कहा, “इंदिरा गांधी के दौर से ही इस तरह की राजनीति जारी है। नाम बदलते हैं, चेहरे बदलते हैं, पार्टियां बदलती हैं, लेकिन सत्ता का चरित्र वही रहता है। हमें बार-बार मूर्ख बनाया जाता है। मैं किसी पार्टी का समर्थन नहीं करता, मेरा मानना है कि हमाम में सब नंगे हैं।”

कुणाल कामरा का अड़ियल रवैया
कुणाल कामरा ने इस विवाद पर झुकने से इनकार कर दिया है। उन्होंने कहा, “मुझे इस भीड़ से डर नहीं लगता और मैं अपने बिस्तर के नीचे छुपकर इस विवाद के शांत होने का इंतजार नहीं करूंगा।” इसके विपरीत, इंडियाज गॉट टैलेंट के एक विवादित बयान के बाद रणवीर अल्लाहबादिया और समय रैना को माफी मांगनी पड़ी थी।
स्टैंड-अप कॉमेडी पर बढ़ता हमला
भारत में समय-समय पर स्टैंड-अप कॉमेडियन्स को निशाना बनाया जाता रहा है। इस पर हंसल मेहता ने कहा, “अक्सर इस तरह की आलोचना उन चुटकुलों पर होती है जो वास्तव में अच्छे भी नहीं होते, लेकिन हर तरह के विचारों और असहमति के लिए जगह होनी चाहिए, जब तक कि वह केवल शब्दों तक सीमित है। हिंसा, गुंडागर्दी, धमकी और अपमान के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए।”

क्या हमें हास्य-व्यंग्य की समझ नहीं?
मेहता का मानना है कि भारतीय समाज में खुद पर हंसने की प्रवृत्ति कम है। उन्होंने उदाहरण दिया कि कैसे गोल्डन ग्लोब्स में हॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता रॉबर्ट डी नीरो, अल पचीनो और क्लिंट ईस्टवुड पर तंज कसा गया, फिर भी वे खुलकर हंस रहे थे। उन्होंने कहा, “हमारी संस्कृति में यह स्वाभाविक नहीं है, हम अत्यधिक संवेदनशील हैं।”
धर्म को लेकर बढ़ी संवेदनशीलता
पिछले 10-15 सालों में धर्म को लेकर बढ़ती संवेदनशीलता पर हंसल मेहता ने असहमति जताई। उन्होंने कहा, “जब मैंने 2012 में शाहिद बनाई थी, तब भी धार्मिक आधार पर विभाजन क्लियर था। इसमें दोनों पक्षों ने अपनी भूमिका निभाई है।”
दुनिया की स्थिति काफी चिंताजनक
मेहता का मानना है कि पूरी दुनिया में असहिष्णुता बढ़ रही है। उन्होंने कहा, “आज दुनिया पहले से कहीं ज्यादा बुरे दौर से गुजर रही है और कुछ बड़ा बदलाव जरूर होगा।”
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क्या हंसल मेहता अब राजनीतिक फिल्म बनाएंगे?
राजनीतिक फिल्मों पर बढ़ते खतरे के बीच, क्या हंसल मेहता इस विषय पर फिल्म बनाएंगे? इस पर उन्होंने कहा, “बिल्कुल, मैं राजनीतिक फिल्म बनाऊंगा, लेकिन पूरी संवेदनशीलता के साथ। यदि आपकी मंशा सिर्फ एक कहानी कहने की हो और लोगों को आत्ममंथन का मौका मिले, तो कोई आपको धमका नहीं सकता। समस्या तब होती है जब फिल्म किसी खास विचारधारा को बढ़ावा देने के लिए बनाई जाती है। “उन्होंने यह भी खुलासा किया कि उन्होंने एक राजनीतिक फिल्म बना ली है, लेकिन अभी तक उसे रिलीज़ नहीं किया गया है।
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