मुंबई2 मिनट पहलेलेखक: वीरेंद्र मिश्र/अभिनव त्रिपाठी
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2007 में रिलीज हुई फिल्म माय फ्रेंड गणेशा एक एनिमेशन वाली फिल्म थी। फिल्म में गणेश जी के कैरेक्टर को 2D एनिमेशन से तैयार किया गया था।
टीवी पर आने वाले कार्टून कैरेक्टर्स एनिमेशन के जरिए तैयार किए जाते हैं। जब टेक्नोलॉजी विकसित नहीं थी, तब स्केच के जरिए ये कैरेक्टर्स बनाए जाते थे। जैसे टॉम एंड जेरी का उदाहरण लीजिए।
टॉम एंड जेरी के सारे कैरेक्टर्स को हाथ के जरिए कागज पर डिजाइन किया गया था। उठने-बैठने, दौड़ने-खेलने और खाने-पीने सहित सारे एक्शंस को एक पेपर पर उतार लिया जाता था। फिर कलर करने के बाद उसे स्कैन किया जाता था। स्कैनिंग के बाद इसे रील पर कॉपी करके अंत में रिलीज कर दिया जाता था। यह 2D एनिमेशन के तहत होता था। ऐसे हजारों स्केच बनते थे, तब जाकर एक सीन क्रिएट होता था।
बाद में समय के साथ टेक्नोलॉजी बेहतर हुई। इसके बाद 3D एनिमेशन आया। इसे कंप्यूटर की मदद से तैयार किया जाने लगा।
रील टु रियल के नए एपिसोड में एनिमेटेड फिल्मों की मेकिंग प्रोसेस पर बात करेंगे। इसके लिए हमने कई एनिमेटेड फिल्में बनाने वाले डायरेक्टर राजीव एस रुइया और सुमन देब से बात की।


एनिमेटेड फिल्मों की शूटिंग 6 चरणों में होती है..
- स्क्रिप्ट राइटिंग- सबसे पहले फिल्म की कहानी लिखी जाती है। इसमें कैरेक्टर्स, सीक्वेंस और डायलॉग्स का जिक्र होता है।
- कैरेक्टर डिजाइन- एनिमेटेड कैरेक्टर्स का आर्ट वर्क (स्केच) तैयार किया जाता है। जैसे कैरेक्टर्स दिखने में कैसे होंगे, उनकी बॉडी लैंग्वेज कैसी होगी। यह स्केच फिल्म माय फ्रेंड गणेशा के लिए तैयार किया गया था।
- स्टोरी बोर्डिंग- इस प्रक्रिया में कहानी यानी स्क्रिप्ट को चित्रों में तब्दील किया जाता है। फ्लो के हिसाब से हर सीन का एक खाका यानी फ्रेम तैयार किया जाता है। इस तस्वीर में स्टोरी बोर्ड का एक नमूना देख सकते हैं।
- डबिंग- कैरेक्टर्स को ध्यान में रखते हुए वॉयस ओवर आर्टिस्ट डबिंग करते हैं।
- एनिमेशन- डबिंग के बाद एनिमेशन का काम शुरू होता है। 2D एनिमेशन के समय फ्रेम दर फ्रेम एनिमेशन किया जाता था। 3D में कंप्यूटर सॉफ्टवेयर के जरिए एनिमेशन तैयार किया जाता है।
- साउंड और म्यूजिक- फिल्म बनने के बाद बैकग्राउंड म्यूजिक और साउंड पर काम होता है। इसके बाद एडिटिंग स्टार्ट होती है। एडिटिंग के बाद फिल्म रिलीज कर दी जाती है।
एनिमेटेड फिल्मों में डबिंग का रोल सबसे ज्यादा डबिंग वैसे तो पोस्ट प्रोडक्शन का पार्ट है, लेकिन एनिमेटेड फिल्मों के साथ ऐसा नहीं है। यहां पहले डबिंग की जाती है, उसके बाद पूरी मूवी बनती है।
इन तीन प्रोसेस के तहत एनिमेटेड फिल्मों की डबिंग होती है…
- फिल्म की शूटिंग शुरू होने से पहले ही एनिमेटेड कैरेक्टर्स की प्री-डबिंग कर ली जाती है।
- इसके बाद उस डबिंग को एडिटिंग टेबल पर भेजा जाता है। वहां से डबिंग पार्ट एडिट करके एनिमेटर्स के पास भेजा जाता है।
- एनिमेटर्स फिर उस डबिंग पार्ट को कैरेक्टर्स के साथ मैच कराते हैं। जैसी डबिंग होगी, एनिमेटेड कैरेक्टर्स का लिप मूवमेंट भी उसी हिसाब से होगा।

20 मिनट की एनिमेटेड फिल्म बनाने में 3 महीने का समय लगता है सुमन के मुताबिक, अगर 20 मिनट का कोई बॉलीवुड एनिमेटेड फिल्म बनाना है, तो उसमें 3 महीने का समय लग सकता है। इस पूरे प्रोसेस में प्री-प्रोडक्शन, प्रोडक्शन और पोस्ट-प्रोडक्शन का काम शामिल होता है। वहीं, अगर कोई इंटरनेशनल प्रोजेक्ट है, तो इसे बनाने में 7-8 महीने का वक्त लग जाता है।
माय फ्रेंड गणेशा- रियल और एनिमेटेड कैरेक्टर को साथ दिखाने वाली पहली फिल्म फिल्म माय फ्रेंड गणेशा में कैरेक्टर को लाइव कम्पोजिट एनिमेशन से क्रिएट किया गया था। यह इंडिया की पहली फिल्म थी, जिसमें रियल लाइफ कैरेक्टर्स के साथ एनिमेटेड कैरेक्टर को भी दिखाया गया था। इस फिल्म को बनाने में डेढ़ साल का लंबा वक्त लगा था।
इसके डायरेक्टर राजीव एस रुइया ने कहा ‘इस फिल्म को बनाने में बहुत स्ट्रगल करना पड़ा था। मैं शुरुआत में इसे फिल्म नहीं बल्कि सीरियल के तौर पर बनाना चाहता था। उस वक्त टीवी शोज का बहुत ज्यादा क्रेज था।
एक प्रोड्यूसर थे, जिन्हें मर्डर मिस्ट्री टाइप की फिल्म चाहिए थी। मैंने उन्हें एक कहानी सुनाई, जो उन्हें पसंद नहीं आई। फिर मैंने उन्हें माय फ्रेंड गणेशा की कहानी सुनाई।
प्रोड्यूसर को स्टोरी तो पसंद आ गई, लेकिन उन्होंने इसे समय से पहले की फिल्म बता दिया। उन्हें डर था कि कहीं फिल्म पिट न जाए। फिर मैंने उन्हें समझाते हुए कहा कि सर मुझे एक फिक्स अमाउंट दे दीजिए, मैं पहले आपको एक प्रोमो शूट करके दिखाता देता हूं। इसके बाद मैंने प्रोमो शूट किया, जो उन्हें काफी पसंद आया और इस तरह माय फ्रेंड गणेशा बन गई।’

फिल्म माय फ्रेंड गणेशा थिएटर में तो फ्लॉप थी, लेकिन इसे टीवी पर काफी पसंद किया गया था।
खंभे को कैरेक्टर मानकर ऋतिक रोशन ने बोला डायलॉग राजीव ने कहा कि एनिमेटेड फिल्मों की मेकिंग के दौरान एक्टर्स का को-ऑपरेशन बहुत जरूरी होता है।
एनिमेशन फिल्म ‘मैं कृष्णा हूं’ का एक किस्सा सुनाते हुए उन्होंने कहा, ‘इस फिल्म में ऋतिक रोशन ने भी काम किया था। एक सीन था, जहां ऋतिक के किरदार को भगवान श्रीकृष्ण से बात करनी थी। हालांकि, श्रीकृष्ण का कैरेक्टर तो एनिमेशन वाला था।
ऋतिक को समझ नहीं आ रहा था कि वे डायलॉग्स कैसे बोलें, क्योंकि सामने तो कोई था ही नहीं। फिर मैंने उनके सामने एक लाइट का खंभा रख दिया। उन्होंने उसी खंभे को देखकर अपने डायलॉग्स बोले। फिर जब ऋतिक ने डबिंग के वक्त वो शॉट देखा तो काफी इंप्रैस हो गए।’

ऋतिक इसी सीन को फिल्माने से पहले काफी झिझक रहे थे।
4-5 घंटे में ऋतिक ने दिए थे 80 शॉट राजीव ने आगे कहा, ‘जब इस फिल्म की शूटिंग शुरू हुई थी, तब एक दिन ऋतिक मेरे पास आए और कहा- 5 मिनट में पूरी फिल्म की कहानी बता दो। उनकी यह डिमांड सुन कर मैं हैरान रह गया।
हालांकि श्रीकृष्ण का ही आशीर्वाद था कि मैंने पूरी कहानी 5 मिनट में सुना दी। यह सुनकर वे बहुत खुश हुए थे। उनके साथ शूटिंग शुरू करने से पहले हमने पूरी तैयारी कर ली थी। हमारी तैयारी इस लेवल की थी कि एक दिन हमने 4-5 घंटे के भीतर 80 शॉट लिए थे, जो उनकी उम्मीद से परे था।’
अभी एनिमेटेड फिल्मों को लेकर माहौल सकारात्मक नहीं, पैसे लगाने की जरूरत राजीव ने कहा कि इस वक्त हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में एनिमेटेड फिल्मों को लेकर सकारात्मक माहौल नहीं है। बड़े प्रोड्यूसर्स ऐसे प्रोजेक्ट्स में पैसे ही नहीं लगाते। उन्हें लगता है कि उनका पैसा डूब जाएगा।
कम से कम एक बार हॉलीवुड की तरफ ही देख लेना चाहिए।वहां जंगल बुक जैसी एनिमेशन बेस्ड फिल्में बनती हैं और कमाई भी खूब करती हैं। यहां के बच्चे उन फिल्मों को बहुत चाव से देखते हैं। मैं चाहता हूं कि बड़े प्रोडक्शन हाउस वाले आगे आएं और एनिमेशन बेस्ड फिल्मों में ज्यादा से ज्यादा इन्वेस्ट करें।
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