मूवी रिव्यू- सेक्टर 36: विक्रांत मैसी और दीपक डोबरियाल की दमदार एक्टिंग, पटकथा पर थोड़ा और काम करना चाहिए था

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8 मिनट पहले

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विक्रांत मैसी और दीपक डोबरियाल की फिल्म ‘सेक्टर 36’ नेटफ्लिक्स पर रिलीज हो चुकी है। मैडॉक फिल्म्स और जियो स्टूडियो के बैनर तले बनी यह फिल्म निठारी हत्याकांड जैसी सत्य घटना से प्रेरित है। इस फिल्म की लेंथ 2 घंटा 3 मिनट है। दैनिक भास्कर ने इस फिल्म को 5 में से 3.5 स्टार रेटिंग दी है।

फिल्म की कहानी क्या है?

प्रेम सिंह (विक्रांत मैसी) बच्चों को अगवा करके उनकी बेरहमी से हत्या कर देता है। झुग्गीबस्ती से लगातार बच्चे गायब हो रहे हैं। लोग अपने बच्चों के गायब होने की शिकायत पुलिस स्टेशन में करते हैं। लेकिन इंस्पेक्टर राम चरण पांडे (दीपक डोबरियाल) इस मामले को गंभीरता से नहीं लेते हैं। कहानी में नया मोड़ तब आता है, जब इंस्पेक्टर राम चरण पांडे की बेटी उस घटना का शिकार होते-होते बचती है। इसके बाद इंस्पेक्टर राम चरण पांडे पूरे जोश के साथ केस को सॉल्व करने में जुट जाता है। इस केस में प्रेम सिंह के मालिक बस्सी (आकाश खुराना) का भी नाम सामने आता है। मामला हाई प्रोफाइल केस से जुड़ जाता है। इंस्पेक्टर राम चरण पांडे इस केस को कैसे सॉल्व करते हैं, उनके सामने क्या-क्या परेशानियां आती हैं। यह सब जानने के लिए आपको पूरी फिल्म देखनी पड़ेगी।

स्टारकास्ट की एक्टिंग कैसी है?

फिल्म की कहानी विक्रांत मैसी और दीपक डोबरियाल के किरदार के इर्द-गिर्द घूमती है। विक्रांत मैसी ने अपने किरदार को बेहद गंभीरता और सटीकता से निभाया है। उनकी बॉडी लैंग्वेज और चेहरे के भाव किरदार की क्रूरता और दर्द को बेहतरीन ढंग से उभारते हैं। दीपक डोबरियाल का भी फिल्म में जबरदस्त किरदार है। शुरुआत में उनका किरदार एक साधारण पुलिस अधिकारी की तरह दिखता है, लेकिन जब कहानी में उनकी बेटी की जान पर बन आती है, तो उनके अंदर का दर्द और गुस्सा पूरी तरह से झलकने लगता है। उनका भावनात्मक अभिनय दर्शकों को प्रभावित करता है। विक्रांत मैसी के अलावा आकाश खुराना, दर्शन जरीवाला, बहारुल इस्लाम और इप्शिता चक्रवर्ती सिंह ने अपने-अपने किरदार के साथ पूरी तरह से न्याय करने की कोशिश की है।

डायरेक्शन कैसा है?

आदित्य निम्बालकर इस फिल्म से डायरेक्शन में डेब्यू कर रहे हैं। कहानी की गहराई और किरदारों के दर्द को बखूबी से पर्दे पर उतरा है। फिल्म शुरू से अंत तक दर्शकों को स्क्रीन से बांधकर रखता है। हालांकि फिल्म की कहानी बीच-बीच में थोड़ा असर खोती रहती है। सेकेंड हाफ में कहानी थोड़ी प्रेडिक्टेबल भी हो जाती है, जिससे थ्रिल का असर थोड़ा कम हो जाता है। पटकथा पर थोड़ी सी और मेहनत की जा सकती थी। फिर भी आदित्य निम्बालकर ने फिल्म की कहानी को पूरी ईमानदारी से कहने की कोशिश की है।

म्यूजिक कैसा है?

डमरू, साया और मान काफिरा जैसे गाने अच्छे हैं। लेकिन जब बैकग्राउन्ड में ‘मन क्यों बहका रे’ जैसे गीत जब बचते हैं। उस मुकाबले फिल्म के गीत कमजोर दिखने लगते हैं। फिल्म का बैकग्राउन्ड ठीक है।

फाइनल वर्डिक्ट, देखे या नहीं?

अगर आप क्राइम थ्रिलर फिल्मों के शौकीन हैं। दमदार एक्टिंग के साथ सच्ची घटनाओं पर आधारित फिल्में देखना पसंद करते हैं, तो यह फिल्म आपको निराश नहीं करेगी। विक्रांत मैसी और दीपक डोबरियाल की परफॉर्मेंस इसे जरूर एक बार देखने लायक बनाती है।





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