अवैध तरीके से भारत में घुसने और रहने के आरोप में गिरफ्तार होने वाले बांग्लादेशियों को वापस भेजने में सरकार के ढीले रवैये पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाए हैं. कोर्ट ने पूछा है कि इस तरह के जो लोग पकड़े जाते हैं, उन्हें उनकी कानूनी सजा पूरी होने के बाद भेजने में देरी क्यों की जा रही है?
जस्टिस जे बी पारदीवाला की अध्यक्षता वाली बेंच ने सुनवाई के दौरान पाया कि पश्चिम बंगाल के डिटेंशन सेंटर्स में इस तरह के 850 लोग हैं. जजों ने सवाल उठाया कि जिन लोगों को फॉरेनर्स एक्ट, 1946 के तहत भारत में घुसपैठ का दोषी पाया गया है, उन्हें अब तक भारत में क्यों रखा गया है? उनकी सजा पूरी होने के बाद उन्हें वापस भेज देना में क्या दिक्कत है?
बेंच ने कहा कि 2009 में जारी भारत सरकार के सर्कुलर का क्लॉज 2(v) कहता है कि इस तरह के लोगों को 30 दिनों के भीतर वापस भेज दिया जाएगा. इस सर्कुलर का सख्ती से पालन क्यों नहीं हो रहा है? सुप्रीम कोर्ट ने यह सवाल कलकत्ता हाई कोर्ट से ट्रांसफर किए गए एक मामले की सुनवाई करते हुए किया है.
जिस मामले की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो रही थी, उस पर कलकत्ता हाई कोर्ट ने 2011 में संज्ञान लेकर सुनवाई शुरू की थी. यह सुनवाई न्यायविद माजा दारूवाला की चिट्ठी के आधार पर शुरू हुई थी. उस चिट्ठी में अनिश्चित समय तक डिटेंशन सेंटर में रह रहे लोगों की स्थिति पर सवाल उठाया गया था. 2013 में यह मामला सुप्रीम कोर्ट ट्रांसफर हो गया था. इस मामले की अगली सुनवाई शुक्रवार, 6 फरवरी को होगी.
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