क्यों महाकुंभ में मौनी अमावस्या का स्नान सबसे विशेष माना गया है, ज्योतिषी ने बताई बड़ी वजह

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Mauni Amavasya 2025: मौनी अमावस्या तो प्रत्येक वर्ष आती है किंतु इस वर्ष कुम्भ पर्व के साथ आई है जिसे यह और विशेष बनाती है. आज के दिवस प्रत्येक अखाड़ा और संत समाज प्रयाग में डुबकी लगाता है.

मौनी अमावस्या में गंगा तट पर कल्पवास और विशेष तिथियों पर गंगा स्नान की परंपरा आदिकालीन और शास्त्रोक्त है. आज भी लोग पूर्णिमा, एकादशी, चौथ, और अमावस्या को पवित्र गंगा में डुबकी लगाकर पाप मुक्त होने का विश्वास रखते हैं. यह आस्था धर्म का सबसे बड़ा सम्बल है. अब शास्त्रीय पक्ष पर दृष्टि डालते हैं.

व्रत चंद्रिका उत्सव अध्याय क्रमांक 35 के अनुसार, माघ मास की अमावस्या मौनी अमावस्या के नाम से प्रसिद्ध है, क्योंकि इस दिन मौन रहकर ही गंगा स्नान करने का विधान है. यदि मौनी अमावस्या सोमवार को हो, तो उसका पुण्य और अधिक होता है. माघ मास में त्रिवेणी स्नान का बड़ा माहात्म्य है, इसलिए भक्तजन यहाँ माघ के पूरे महीने तक संगम के पास कुटिया बनाकर ‘कल्पवास’ करते हैं.

माघ मास में कुछ लोग पूरे महीने व्रत करते हैं, जबकि कुछ लोग केवल फलाहार पर रहते हैं. चटाई पर सोना, तेल न लगाना, शृङ्गार न करना और संयमित जीवन व्यतीत करना आवश्यक नियम हैं. माघ मास का सबसे बड़ा पर्व मौनी अमावस्या है. इस दिन प्रयाग में गंगा-स्नान के लिए विशाल जनसमूह एकत्र होता है.

सन् 1930 में कुम्भ के दौरान मौनी अमावस्या के दिन लगभग ३५ लाख लोगों ने संगम पर स्नान किया था. इस श्रद्धा और भक्ति को देखकर मन गदगद हो जाता है. कालिदास ने लिखा है कि संगम पर स्नान करने से सद्यः मोक्ष की प्राप्ति होती है: ‘समुद्रपल्योजक सन्निपाते, पूतात्मनामश्र कृताभिषेकात्.’

इस तरह, प्राचीन काल से ही हमारे यहाँ मौनी अमावस्या के दिन प्रयाग और अन्य स्थानों पर गंगा स्नान की परंपरा है.

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[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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