ब्राह्मण महासभा में पहुंचे हाईकोर्ट के जज, संविधान निर्माण में गिनाए ब्राह्मणों के योगदान

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<p style="text-align: justify;">कर्नाटक हाईकोर्ट के जस्टिस&nbsp;कृष्ण एस दीक्षित ने संविधान निर्माता डॉ बी आर आंबेडकर के एक कथन जिक्र किया और संविधान निर्माण में ब्राह्मणों के योगदान पर प्रकाश डाला.</p>
<p style="text-align: justify;">जस्टिस दीक्षित ने अखिल कर्नाटक ब्राह्मण महासभा की स्वर्ण जयंती के अवसर पर 18-19 जनवरी को आयोजित दो दिवसीय ब्राह्मण सम्मेलन &lsquo;विश्वामित्र&rsquo; में अपने संबोधन में कहा, &lsquo;&lsquo; डॉ. आंबेडकर ने एक बार भंडारकर इंस्टीट्यूट में कहा था कि यदि बी एन राव ने संविधान का मसौदा तैयार नहीं किया होता तो इसे तैयार होने में 25 साल और लग जाते.&rsquo;&rsquo;</p>
<p style="text-align: justify;">जस्टिस दीक्षित ने कहा कि संविधान की मसौदा समिति के सात सदस्यों में से तीन – अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर, एन गोपालस्वामी अयंगर और बी एन राव ब्राह्मण थे. ब्राह्मणों पर अपना रुख स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि इस शब्द को जाति के बजाय &lsquo;वर्ण&rsquo; से जोड़ा जाना चाहिए.<br /><br /><strong>वेदव्यास मछुआरे, वाल्मीकि अनुसूचित जाति से थे- जस्टिस दीक्षित</strong></p>
<p style="text-align: justify;">उन्होंने कहा कि वेदों का वर्गीकरण करने वाले वेदव्यास मछुआरे के पुत्र थे और रामायण लिखने वाले महर्षि वाल्मीकि या तो अनुसूचित जाति से या अनुसूचित जनजाति से थे. उन्होंने कहा, &lsquo;&lsquo;क्या हमने (ब्राह्मणों ने) उन्हें नीची नजर से देखा है? हम सदियों से भगवान राम की पूजा करते आए हैं और उनके मूल्यों को संविधान में सम्मलित किया गया है.&rsquo;&rsquo;</p>
<p style="text-align: justify;">जस्टिस दीक्षित ने पूर्व में खुद के गैर-ब्राह्मण राष्ट्रवादी आंदोलनों के साथ जुड़े होने का भी उल्लेख किया और कहा कि जस्टिस बनने के बाद उन्होंने अन्य सभी गतिविधियों से खुद को अलग कर लिया है और वह न्यायिक दायरे के भीतर ही ये बातें कर रहे हैं.</p>
<p style="text-align: justify;">इस कार्यक्रम में उपस्थित जस्टिस वी. श्रीशानंद ने ऐसे समारोहों की आवश्यकता का बचाव किया तथा उन आलोचकों को जवाब दिया जिन्होंने व्यापक सामाजिक-आर्थिक संघर्षों के बीच इस सम्मेलन की भव्यता पर सवाल उठाया था.</p>
<p style="text-align: justify;">उन्होंने कहा, &lsquo;&lsquo;कई लोग प्रश्न करते हैं कि ऐसे वक्त में जब लोग भोजन और शिक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं तब ऐसे बड़े आयोजनों की क्या जरूरत है. लेकिन ये आयोजन समुदाय को एक साथ लाने और उससे जुड़े मुद्दों पर चर्चा करने के लिए आवश्यक हैं. ऐसे आयोजन क्यों नहीं किए जाने चाहिए?&rsquo;&rsquo;</p>

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