Last Updated:January 17, 2025, 15:08 ISTRupee vs Indian Economy : भारतीय रुपये में गिरावट की वजह से अर्थव्यवस्था पर चारों तरफ से संकट बढ़ता जा रहा है. निर्यात में गिरावट और आयात बढ़ने से आयात बिल में इजाफा हो रहा तो रिजर्व बैंक भी रुपये में आ रही गिरावट को…और पढ़ेंडॉलर के मुकाबले रुपया 10 साल में 200 फीसदी गिर चुका है.नई दिल्ली. भारतीय अर्थव्यवस्था पर संकट लगातार बढ़ता ही जा रहा है. पहले तो विकास दर गिरकर 5.4 फीसदी पर आ गई और अब रुपया भी लगातार रसातल में जा रहा है. डॉलर के मुकाबले रुपये में आ रही गिरावट का चौतरफा नुकसान हो रहा है और रिजर्व बैंक चाहकर भी इसमें आ रही गिरावट को थाम नहीं सकता है. ऊपर से देश के निर्यात में भी लगातार गिरावट दिख रही तो आयात बढ़ता ही जा रहा है. आयात का आंकड़ा इतना ऊपर चला गया था कि सरकार को इसमें दखल देकर दोबारा आंकड़े जारी करने पड़े. आखिर इन सभी मुसीबतों का कारण क्या है और इससे निपटने का क्या रास्ता है.
फॉरेक्स बाजार में डॉलर के मुकाबले रुपये में आ रही गिरावट से कच्चे तेल, कोयला, वनस्पति तेल, सोना, हीरे, इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी, प्लास्टिक और रसायनों के आयात के लिए अधिक भुगतान करना पड़ रहा है. इस कारण देश का आयात ‘बिल’ भी लगातार बढ़ता जा रहा है. आर्थिक शोध संस्थान जीटीआरआई ने शुक्रवार को बताया कि घरेलू मुद्रा में गिरावट से भारत के सोने के आयात ‘बिल’ में वृद्धि होगी. खासकर जब ग्लोबल मार्केट में सोने की कीमतें सालाना आधार पर 31.25 प्रतिशत बढ़कर जनवरी 2025 में 86,464 डॉलर प्रति किलोग्राम हो गई हैं. जनवरी 2024 में कीमत 65,877 डॉलर प्रति किलोग्राम थी.
सालभर में कितना टूटा रुपया‘ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव’ (जीटीआरआई) ने अपनी रिपोर्ट में कहा, भारतीय रुपया (आईएनआर) पिछले वर्ष 16 जनवरी से अब तक अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 4.71 प्रतिशत कमजोर होकर 82.8 रुपये से 86.7 रुपये पर आ गया है. पिछले 10 वर्षों का आंकड़ा देखें तो जनवरी 2015 से जनवरी 2025 के बीच अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये में 210 प्रतिशत की गिरावट आई और यह 41.2 रुपये से टूटकर 86.7 रुपये पर आ गया है.
चीन की करेंसी में भी गिरावटभारतीय मुद्रा की तुलना में चीनी युआन में 3.24 प्रतिशत की गिरावट आई और यह 7.10 युआन से घटकर 7.33 युआन हो गया. जीटीआरआई के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा कि कुल मिलाकर कमजोर रुपये से आयात ‘बिल’ बढ़ेगा, ऊर्जा तथा कच्चे माल की कीमतें बढ़ेंगी जिससे अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ेगा. पिछले 10 वर्षों के निर्यात आंकड़ों से पता चलता है कि कमजोर रुपये से निर्यात को कोई मदद नहीं मिलती है, जबकि अर्थशास्त्रियों की राय इससे उलट है.
निर्यात को नहीं मिला कोई फायदाअजय श्रीवास्तव के अनुसार, आम राय यह है कि कमजोर मुद्रा से निर्यात को बढ़ावा मिलना चाहिए, लेकिन भारत के दशक भर के आंकड़े एक अलग कहानी बयां करते हैं. उच्च आयात वाले क्षेत्र फल-फूल रहे हैं, जबकि कपड़ा जैसे श्रम-गहन, कम आयात वाले उद्योग लड़खड़ा रहे हैं. 2014 से 2024 तक के व्यापार आंकड़े भी अलग कहानी दर्शाते हैं. 2014 से 2024 की अवधि में कुल वस्तु निर्यात में 39 प्रतिशत की वृद्धि हुई. इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी और कंप्यूटर जैसे उच्च आयात वाले क्षेत्रों में बहुत अधिक वृद्धि देखी गई. आंकड़े बताते हैं कि इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात में 232.8 फीसदी तो मशीनरी और कंप्यूटर निर्यात में 152.4 फीसदी की वृद्धि हुई है.
चाहकर भी नहीं बचा सकते रुपयाश्रीवास्तव ने कहा कि इन प्रवृत्तियों से पता चलता है कि कमजोर रुपया हमेशा निर्यात को बढ़ावा नहीं देता है. यह श्रम-गहन निर्यात को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाता है और कम मूल्य संवर्धन के साथ आयात-संचालित निर्यात को बढ़ावा देता है. बावजूद इसके भारत की वास्तविक स्थिति गंभीर है. भारत के 600 अरब डॉलर से अधिक के विदेशी मुद्रा भंडार का अधिकतर हिस्सा ऋण/निवेश का है, जिसका ब्याज सहित भुगतान किया जाना है. लिहाजा रुपये को स्थिर करने में रिजर्व बैंक और विदेशी मुद्रा भंडार उनकी भूमिका काफी सीमित हो जाती है.
Location :New Delhi,DelhiFirst Published :January 17, 2025, 15:08 ISThomebusinessभारत पर बढ़ता जा रहा संकट! चाहकर भी रिजर्व बैंक कुछ नहीं कर सकता
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