नई दिल्ली. फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) लंबे समय से भारतीय निवेशकों के लिए सुरक्षित और लोकप्रिय विकल्प रहा है. म्यूचुअल फंड और शेयर बाजार की बढ़ती लोकप्रियता के बावजूद, लगभग 15% घरेलू बचत अभी भी एफडी में जाती है. लेकिन एफडी की सुरक्षा के साथ कुछ जोखिम और सीमाएं भी जुड़ी हैं, जिन्हें निवेश से पहले समझना जरूरी है. भारतीय बैंकिंग प्रणाली अच्छी तरह से विनियमित है और एफडी की सुरक्षा को बढ़ावा देती है. हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के दिशा-निर्देशों के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति को प्रति बैंक अधिकतम ₹5 लाख तक की जमा राशि पर सुरक्षा मिलती है. इससे अधिक राशि जोखिम में हो सकती है.
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में एफडी सबसे सुरक्षित मानी जाती हैं, जबकि निजी क्षेत्र और स्मॉल फाइनेंस बैंकों में एफडी पर अधिक ब्याज मिलता है लेकिन जोखिम भी अधिक होते हैं. यस बैंक और ग्लोबल ट्रस्ट बैंक पर लगाए गए प्रतिबंध जैसी घटनाएं निवेशकों को सतर्क रहने का संकेत देती हैं. इसी तरह, कॉरपोरेट एफडी में निवेश से पहले उनकी क्रेडिट रेटिंग, प्रतिष्ठा और लॉक-इन अवधि की जांच करना बेहद जरूरी है.
रिटर्न जो महंगाई से पिछड़ते हैंएफडी पर मिलने वाला ब्याज दर भले ही निश्चित हो, लेकिन वास्तविक रिटर्न महंगाई और करों के चलते घट सकता है. उदाहरण के लिए, यदि किसी उच्च आय वर्ग के व्यक्ति को एफडी पर 8% ब्याज मिलता है, तो कर कटौती के बाद यह केवल 4.88% रह जाता है. यदि महंगाई दर 6% हो, तो वास्तविक रिटर्न नकारात्मक हो जाता है.
इसके अलावा, एफडी में म्यूचुअल फंड या शेयर बाजार के समान कंपाउंडिंग का लाभ नहीं होता, जहां रिटर्न पर कर केवल प्राप्ति के समय लगता है, जिससे समय के साथ धन संचय में मदद मिलती है.
हालांकि एफडी सुरक्षित विकल्प है, लेकिन इसकी सीमित वृद्धि क्षमता इसे दीर्घकालिक धन सृजन के लिए उपयुक्त नहीं बनाती. इक्विटी-आधारित उत्पादों में 7–10 वर्षों के निवेश से जोखिम कम होता है और अधिक रिटर्न मिलता है. इसलिए, निवेशक एफडी के जोखिमों को समझकर अपने निवेश को सुरक्षा और वृद्धि के संतुलन के साथ योजना बनाएं.
Tags: Business newsFIRST PUBLISHED : January 5, 2025, 19:25 IST
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