नई दिल्ली. दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन महाकुंभ शुरू होने में अब बस कुछ ही दिन बचे हैं. 13 जनवरी 2025 से लेकर 26 फरवरी तक प्रयागराज में आयोजित होने वाले महाकुंभ में इस बार करीब 45 करोड़ श्रद्धालु पवित्र स्नान करने आएंगे. श्रद्धालुओं को उत्तम सुविधाएं प्रदान करने को केंद्र और राज्य सरकार दिन-रात जुटी हुई हैं. मूलभूत सुविधाओं के विकास पर पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है. एक अनुमान के अनुसार, इस बार महाकुंभ के आयोजन पर करीब 7500 हजार करोड़ रुपये खर्च होने की उम्मीद है. लेकिन, क्या आपको पता है कि आज से 142 साल पहले महाकुंभ के आयोजन पर कितने पैसे खर्च हुए थे? कितने श्रद्धालु आए थे? नहीं पता तो हम बताते हैं. आज से 142 साल पहले यानी 1882 में महाकुंभ के आयोजन पर 20,288 रुपये खर्च हुए थे, जो आज के हिसाब से 3.6 करोड़ रुपये के बराबर है.
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, अभिलेख बताते हैं कि 1882 के महाकुंभ के दौरान, माघ महीने की सबसे बड़ी स्नान तिथि मौनी अमावस्या पर लगभग 8 लाख श्रद्धालुओं ने संगम में स्नान किया था. उस समय अखंड भारत की जनसंख्या 22.5 करोड़ थी. समय के साथ कुंभ में श्रद्धालुओं की संख्या में भी इजाफा होता गया और साथ ही दुनिया के इस सबसे बड़े धार्मिक आयोजन का खर्च भी बढ़ता गया.
1894 में खर्च हुए 69,427 रुपये1894 के महाकुंभ में लगभग 10 लाख लोग शामिल हुए थे. महाकुंभ के आयोजन पर 69,427 रुपये (आज के लगभग 10.5 करोड़ रुपये) खर्च हुए थे. उस समय भारत की आबादी 23 करोड़ थी. 1906 के कुम्भ में 25 लाख लोगों ने भाग लिया, जब जनसंख्या 24 करोड़ थी और खर्च 90,000 रुपये (आज के हिसाब से 13.5 करोड़ रुपये) हुआ था.
इसी तरह 1918 के कुम्भ के दौरान लगभग 30 लाख श्रद्धालुओंने संगम में पवित्र डुबकी लगाई. प्रशासन ने उस समय 1.4 लाख रुपये (आज के 16.4 करोड़ रुपये के बराबर) का बजट कुंभ आयोजन के लिए आवंटित किया था. 1918 में भारत की आबादी 25.2 करोड़ थी.
1942 में तत्कालीन वायसराय ने भी लगाई थी डुबकी इतिहासकार प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी के अनुसार, 1942 के कुम्भ के दौरान एक उल्लेखनीय घटना घटी. तब भारत के तत्कालीन वायसराय और गवर्नर जनरल लॉर्ड लिनलिथगो ने मदन मोहन मालवीय के साथ प्रयागराज का दौरा किया और संगम में डुबकी लगाई. वायसराय यह देखकर चकित रह गए कि देश के विभिन्न हिस्सों से लाखों लोग कुंभ क्षेत्र में संगम में स्नान कर रहे थे और धार्मिक गतिविधियों में लीन थे.
वायसराय ने मालवीय जी से कुंभ के प्रचार हुए खर्च के बारे में पूछा. मालवीय ने उत्तर दिया, ‘सिर्फ दो पैसे.’ उन्होंने पंचांग दिखाकर समझाया कि पंचांग मात्र दो पैसे में मिलता है. मालवीय ने स्पष्ट किया कि पंचांग से श्रद्धालुओं को त्योहार की तिथियों की जानकारी मिलती है. तिवारी के अनुसार, मालवीय ने वायसराय से कहा, “यह भीड़ नहीं है. यह उन श्रद्धालुओं का संगम है, जिनकी धर्म में अटूट आस्था है.”
Tags: Mahakumbh 2021FIRST PUBLISHED : December 27, 2024, 11:02 IST
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