Former CJI DY Chandrachud: भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के विवादास्पद न्यायाधीश शेखर कुमार यादव की नियुक्ति को लेकर अहम खुलासा किया है. उन्होंने स्वीकार किया कि वह शेखर यादव की नियुक्ति के खिलाफ थे और इसके लिए उन्होंने तत्कालीन CJI रंजन गोगोई को पत्र भी लिखा था. बता दें कि शेखर यादव इन दिनों अपने एक विवादास्पद बयान के कारण चर्चा में हैं जिसमें उन्होंने मुस्लिम समुदाय के खिलाफ टिप्पणी की थी.
पूर्व CJI चंद्रचूड़ ने इस बात का खुलासा किया कि उन्होंने शेखर कुमार यादव की नियुक्ति को लेकर कॉलेजियम को पत्र लिखकर अपना विरोध दर्ज कराया था. उन्होंने ये भी कहा कि ये विरोध केवल शेखर यादव तक सीमित नहीं था बल्कि कई अन्य नामों को लेकर भी उन्होंने आपत्ति जताई थी. उनका मानना था कि न्यायपालिका में नियुक्तियां केवल योग्यता के आधार पर होनी चाहिए न कि किसी व्यक्ति के रिश्ते या पक्षपाती प्रवृत्तियों के कारण.
न्यायाधीशों के बयानों पर जताई चिंता
पूर्व CJI चंद्रचूड़ ने शेखर कुमार यादव के हालिया बयानों पर भी अपनी चिंता व्यक्त की. उनका कहना था कि एक न्यायाधीश को हमेशा ये ध्यान रखना चाहिए कि वह क्या बोल रहा है चाहे वह अदालत के अंदर हो या बाहर. उनका मानना था कि एक न्यायाधीश का बयान किसी समुदाय के खिलाफ नहीं जाना चाहिए. साथ ही न्यायपालिका के निष्पक्षता को प्रभावित नहीं करना चाहिए.
शेखर यादव की विवादित टिप्पणी पर जताई असहमति
शेखर यादव की ओर से धर्मांतरण को लेकर की गई विवादास्पद टिप्पणी पर भी चंद्रचूड़ ने अपनी असहमति जताई. बता दें कि यादव ने कहा था कि अगर धर्मांतरण पर रोक नहीं लगी तो भारत की बहुसंख्यक आबादी अल्पसंख्यक हो जाएगी. इस पर चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायालय को किसी भी समुदाय के खिलाफ पूर्वाग्रह नहीं रखना चाहिए और ऐसे विचार न्यायपालिका की भूमिका से मेल नहीं खाते.
पूर्व CJI चंद्रचूड़ ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश की ओर से बैंगलुरु के एक क्षेत्र को ‘पाकिस्तान’ कहने की घटना का भी उल्लेख किया. उन्होंने कहा कि जैसे ही उन्हें ये सूचना मिली उन्होंने कर्नाटक उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार से मामले का रिकॉर्ड मंगवाया और जब पुष्टि हुई कि ऐसी टिप्पणी की गई थी तो उन्होंने खुले तौर पर इसे अस्वीकार्य बताया.
पूर्व CJI का ऐतिहासिक कार्यकाल
पूर्व CJI चंद्रचूड़ का कार्यकाल विवादों और ऐतिहासिक फैसलों से भरा रहा है. हालांकि उनके रिटायरमेंट तक उन्हें कई मुद्दों पर विरोध का सामना करना पड़ा, लेकिन उनका हमेशा से मानना है कि जब कोई फैसला लिया जाता है तो उसका विरोध और समर्थन दोनों होता है. उनके कई फैसले ऐतिहासिक रहे हैं जिन्हें न्यायपालिका की दिशा में मील के पत्थर के रूप में देखा जाता है.
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