क्या है संभल का रहस्य? 46 साल पहले क्यों बंद हुई शिव मंदिर में पूजा, मारे गए थे कितने हिंदू

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Sambhal Temple News: उत्तर प्रदेश के संभल में 46 साल बाद उत्तर प्रदेश के संभल में प्राचीन मंदिर के कपाट खुले हैं. यहां सोमवार (15 जनवरी 2024) को शिव मंदिर के अंदर पूजा अर्चना हुई. मंदिर के ठीक बगल में मौजूद कुएं की खुदाई की गई है. इस कुएं से तीन मूर्तियां मिली हैं. कुएं में सबसे पहले पार्वती जी की मूर्ति मिली है, जो खंडित थी. इसके बाद कुएं से गणेश और माता लक्ष्मी की मूर्ति भी मिली. मूर्तियां कुएं के भीतर कैसे गईं और खंडित क्यों थी, इसका जवाब जांच के बाद मिलेगा. संभल में अगर अतिक्रमण की कार्रवाई शुरू नहीं होती तो शायद 46 साल बाद भी उस मंदिर के कपाट ना खुल पाते, जहां गर्भगृह में शिवलिंग से लेकर बजरंगबली तक विराजमान हैं. मंदिर कितना पुराना है, इसका पता लगाने के लिए एएसआई को चिट्ठी लिखी गई है और मंदिर सामने आने के बाद 1978 के दंगों का जिक्र भी हो रहा है. क्या है संभलेश्वर का पूरा रहस्य आज हम अपनी इस रिपोर्ट में दिखाते हैं.
गर्भगृह में मिलीं खंडित मूर्तियां
पूरे 46 साल तक भगवान शिव अपने गर्भगृह में इसी तरह मिट्टी में लिपटे हुए थे. पूरे 46 साल तक बजरंग बली की ये प्रतिमा मिट्टी की चादर को ओढ़े हुए थी. 46 साल बाद संभल के प्राचीन मंदिर का ये कपाट खुला तो स्थानीय प्रशासन से लेकर पूरा हिंदुस्तान इस तस्वीर को देखकर हैरान रह गया. धूल का गुबार जब धीरे-धीरे नीचे बैठा तो मंदिर के गर्भगृह में भोलेनाथ से लेकर हनुमान और नंदी से लेकर गणेश भगवान तक मौजूद दिखाई दिए, जिसके बाद यह खबर आग की तरह फैली. इसके बाद उस मंदिर की सफाई की जाने लगी. भोलेनाथ के जलाभिषेक की तैयारियां की जाने लगीं और 15 तारीख को ये तस्वीर सामने आई जब पूरे 46 साल बाद संभल के मंदिर में भगवान की पहली आरती उतारी गई.
मंदिर के बाहर भजन कीर्तन शुरू हो गए और योगी सरकार को इसका श्रेय दिया जाने लगा. 14 को मंदिर मिला… 15 दिसंबर यानि रविवार को आरती हुई और 16 दिसंबर यानि सोमवार को मंदिर परिसर के पास खुदाई शुरू हुई तो कुएं का पता चला. अब आपके मन में सवाल होगा कि 46 साल से ये मंदिर बंद क्यों था? 46 साल तक मंदिर का पता क्यों नहीं चला? 46 साल तक ये पता क्यों नहीं था कि जमीन के नीचे एक कुआं मौजूद है, जिसे रैंप बनाकर ढका जा चुका है और 46 साल बाद पता चला तो कैसे पता चला?
संभल में कैसे शुरु हुई कार्रवाई
पिछले तीन दिनों से संभल में अवैध निर्माण के खिलाफ अतिक्रमण अभियान चलाया जा रहा है. नालों पर बने अवैध स्लैब तोड़े जा रहे थे और इसी कार्रवाई में बिजली चोरी का मामला सामने आया. संभल के खग्गूसराय में बिजली चोरी रोकने के लिए चेकिंग अभियान भी चलाया गया और प्रशासन संभल के उस हिस्से तक पहुंचा जहां तक अमूमन कोई नहीं आता था और सामने आई महादेव के प्राचीन मंदिर के शिखर की तस्वीर.
मंदिर पर तीन तरफ से अतिक्रमण किया जा चुका था बस छोटा सा हिस्सा दिखाई दे रहा था. प्रशासन ने मंदिर के कपाट खुलवाए तो पूरा गर्भगृह सामने आ गया. मंदिर सामने आया तो मंदिर के सामने मौजूद कुआं ढूंढा जाने लगा. मंदिर के सामने वाली जमीन को खोदा गया तो कुआं मिला. 
पलायन कर गए थे हिंदू परिवार 
ऐसा नहीं है कि संभल में सिर्फ एक कुआं मिला है. माना जाता है कि संभल में ऐसे 19 कुएं हैं और प्रशासन लगातार संभल में कुओं को ढूंढकर उनकी खुदाई कर रहा है. मंदिर से 100 मीटर दूर मस्जिद के बाहर बने चबूतरे को तोड़ा गया जिसके नीचे कुआं बताया जा रहा है. मंदिर बंद क्यों था, इसकी वजह समझने के लिए थोड़ा पीछे चलते हैं. 46 साल पहले संभल के जिस इलाके में मंदिर मिला है, वहां 42 हिंदू परिवार रहते थे, लेकिन 1978 में हुए दंगों के बाद हिंदू परिवार इस इलाके से पलायन कर गए थे. 
संभल का सामाजित ताना-बाना कब बिगड़ा था.. कैसे बिगड़ा था.. किसने बिगड़ा था ये बताने और समझाने के लिए यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आजादी के वक्त से लेकर 1996 तक के आंकड़े गिना रहे हैं. जबकि बीजेपी के विरोधी योगी आदित्यनाथ के बयान को ही झुठला रहे हैं. आजादी के वक्त यानि 1947 में संभल में 55 फीसदी मुसलमान और 45 फीसदी हिंदू रहते थे, लेकिन संभल की मौजूदा स्थिति की बात करें तो यहां 85 फीसदी मुस्लिम और 15 फीसदी हिंदू हैं.
यूपी के संभल ने वजूद में आने के बाद कई दंगे देखे हैं, लेकिन सबसे बड़ा दंगा 46 साल पहले साल 1978 में हुआ था. तब संभल के इसी खग्गूसराय मोहल्ले को बनियों का मोहल्ला कहा जाता था, लेकिन दंगों के बाद हिंदू परिवार यहां से पलायन करने लगे. 1978 में होली के आसपास भड़के दंगे को संभल का सबसे भयानक दंगा कहा जाता है. यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ विपक्ष से पूछ रहे हैं कि दंगों के दोषियों को क्यों कभी सजा नहीं मिली.
हालांकि एक सच ये भी है कि 1978 में जब यूपी के संभल में दंगे हुए थे, उस वक्त यूपी में जनता पार्टी की सरकार थी और राम नरेश यादव यूपी के मुख्यमंत्री थे. केंद्र में भी जनता पार्टी की सरकार थी, जिसके साथ मौजूदा बीजेपी जो तब जनसंघ थी उस सरकार का हिस्सा थी. 1978 में गृह मंत्री चौधरी चरण सिंह थे. देश के प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई थे, जबकि इसी सरकार में लाल कृष्ण आडवाणी सूचना और प्रसारण मंत्री थे.
1978 के दंगे में कितने लोगों की हुई थी मौत
इस सवाल का जवाब देने के तौर पर हमें आईपीसीएस यानि इंस्टीट्यूट ऑफ पीस एंड कंफ्लिक्ट स्टडीज की एक रिपोर्ट मिली, जिसमें 1947 से लेकर 2003 तक भारत में हुए सांप्रदायिक दंगों का ब्योरा था. बी राजेश्वरी की इस रिपोर्ट के पेज नंबर 9 पर लिखा है कि मार्च 1978 में संभल के दंगों में 23 हिंदुओं की मौत हुई थी, जबकि 2 मुसलमान मारे गए थे. 
हिंसा की शुरुआत तस्करों के दो गुटों से हुई थी. संभल में हिंदुओं औऱ मुसलमानों के बीच व्यापार को लेकर भी दुश्मनी थी और मुसलमान वहां हिंदुओं को उनकी संपत्ति से बेदखल करना चाहते थे और एक बार फिर पिछले महीने जब मस्जिद में सर्वे को लेकर संभल में दंगे भड़के तो पूरा इतिहास भूगोल खंगाला जाने लगा है. पिछले महीने दंगों के बाद ही संभल में गैर कानूनी निर्माण के खिलाफ अतिक्रमण हटाने का अभियान शुरू हुआ था, जिसके बाद संभल का प्राचीन कार्तिकेय महादेव मंदिर सामने आया.
सीएम योगी का विपक्ष पर निशाना
संभल का मुद्दा अब पूर देश में जोर पकड़ने लगा है. यूपी के मुख्यमंत्री ने विधानसभा में विपक्ष पर तंज कसते हुए कहा, ”1947 से अब तक संभल में 209 हिंदुओं की हत्या हुई और एक भी बार निर्दोष हिंदुओं के लिए दो शब्द नहीं कहे. घड़ियाली आंसू बहाने वाले लोगों ने निर्दोष हिंदुओं के बारे में दो शब्द नहीं कहे.” उन्होंने कहा,”संभल में बजरंग बली का जो मंदिर आज निकल रहा है. 1978 से उस मंदिर को इन लोगों ने खुलने नहीं दिया.”   
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