हाइलाइट्सदेश में गिरती खपत चिंता का विषय है. ऊंची ब्याज दरों से मांग कम है. RBI दरें कम करने के मूड में नहीं है. नई दिल्ली. वित्त वर्ष 2025 की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में देश की सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की वृद्धि दर 5.4 फीसदी रही. अप्रैल-जून तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 6.7 फीसदी रही थी. लंबी चली बारिश के कारण खुदाई रुकने से खनन और उत्खनन उद्योग की गतिविधियां ठप पड़ने और विर्निमाण की वृद्धि दर में गिरावट ने जीडीपी ग्रोथ रेट को सात तिमाहियों के निचले स्तर पर ला दिया. मैन्यूफेक्चरिंग का कुल सकल मूल्य वर्धित (जीवीए) उत्पादन में 17 फीसदी हिस्सा है. वहीं, खनन और उत्खनन उद्योग का जीडीपी में योगदान 2.2% से 2.5% तक है. आर्थिक विकास की गति का पहिया थमते ही भारतीय रिजर्व बैंक की ओर सबकी निगाहें लग गई हैं. सरकार व अर्थशास्त्रियों के साथ आम लोगों को भी लगता है कि आरबीआई ब्याज दरों में कटौती करके ही अब देश के विकास को दोबारा पटरी पर ला सकता है.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल तो भारतीय रिजर्व बैंक से ब्याज दरें घटाने की मांग सार्वजनिक रूप से कर चुके हैं. ब्याज दरों में कटौती का सवाल जब कल मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन से भी पूछा गया तो उन्होंने कहा, “जीडीपी के आंकड़े सबको दिख रहे हैं, आरबीआई को भी. वे (आरबीआई) जानते हैं कि उन्हें क्या करना है, मैं इस विषय पर कमेंट नहीं करुंगा.” स्पष्ट है कि नागेश्वरन भी इशारों में आरबीआई को वक्त की नजाकत को समझने की सलाह दे रहे हैं.
अंटी में आए पैसा तो बने बात अर्थशास्त्री चेता रहे हैं कि ऊंची ब्याज दरें और राजकोषीय घाटे को कम करने पर जोर दिए जाने का असर चालू वित्त वर्ष की जीडीपी वृद्धि पर पड़ सकता है. इसका नमूना दूसरी तिमाही में दिख भी चुका है. महंगाई को काबू करने के चक्कर में अगर केंद्रीय बैंक ब्याज दरें नहीं घटाता है तो इसका नकारात्मक असर होना लाजिमी है. इसकी बानगी दूसरी तिमाही के आंकड़ों में दिख भी चुकी है. देश में मांग बढ़ाने को लोगों के हाथ में ज्यादा पैसा होना जरूरी है. इसका एक विकल्प ब्याज दरों को कम कर लोगों को सस्ता लोन उपलब्ध कराना है.
यदि आरबीआई रेपो रेट घटाता है, तो होम लोन, कार लोन और अन्य व्यक्तिगत ऋणों की ब्याज दरें भी कम होंगी. इससे उपभोक्ताओं के लिए उधारी लेना सस्ता हो जाएगा, जिससे खर्च बढ़ सकता है. कम ब्याज दरें व्यवसायों को नए निवेश करने को प्रोत्साहित कर सकती हैं. यह छोटे और मध्यम उद्योग (MSMEs) के लिए विशेष रूप से फायदेमंद हो सकता है. इससे देश में व्यापारिक गतिविधियों और औद्योगिक उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा. यह आर्थिक विकास को गति देने में सहायक होगा. कम ब्याज दरें रोजगार सृजन और जीडीपी वृद्धि में सहायक हो सकती हैं.
जिद पर अड़ा है आरबीआई भारतीय रिजर्व बैंक ने अपने रूख को भले ही ‘न्यूट्रल’ कर लिया है, लेकिन अब तक उसने रेपो रेट घटाने का कोई संकेत नहीं दिया है. यूरोपियन सेंट्रल बैंक और अमेरिकी सेंट्रल बैंक फेड ब्याज दरों में कटौती कर चुके हैं. लेकिन, आरबीआई इन दोनों के नक्शेकदम पर नहीं चला. आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने लगातार अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर इस बात पर जोर दिया कि पॉलिसी रेट में बदलाव दूसरों को देखकर करना जरूरी नहीं है. साथ ही दास ये भी स्पष्ट कर चुके हैं कि उनके लिए महंगाई को ‘तय सीमा के भीतर लाना’ पहली प्राथमिकता है.
ऐसा नहीं है कि ब्याज दरों को ऊंचा रखकर, भारतीय रिजर्व बैंक ने महंगाई पर काबू पा लिया है. अक्टूबर 2024 में, अखिल भारतीय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) पर आधारित सालाना मुद्रास्फीति दर 6.21 फीसदी रही. यह भारतीय रिजर्व बैंक की तय सीमा से ज़्यादा है. अक्टूबर में खुदरा मुद्रास्फीति भी 14 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई. इससे स्पष्ट है कि महंगाई रोकने में ब्याज ऊंची ब्याज दर उतनी कारगर नहीं रही है, जितना सोचा गया है.
Tags: Economic growth, GDP growth, Interest Rates, Reserve bank of indiaFIRST PUBLISHED : November 30, 2024, 12:15 IST
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